सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लिया। अम्बा जी ने तलवार मारकर आत्महत्या करने की चेष्टा की। अम्बा जी के खजाने से सिंधिया ने पचपन लाख रुपये निकाल कर अपने अधिकार में कर लिए। इसके बाद अम्बाजी फिर मेवाड़ में सिंधिया की तरफ से सूबेदार बनाकर भेजा गया। परन्तु थोड़े दिनों में उसकी मृत्यु हो गयी। उसके मरने पर उसकी समस्त सम्पत्ति पर उसके मित्र जालिमसिंह ने अपना अधिकार कर लिया। राणा के मन्त्री. सतीदास ने सत्तर हजार रुपये देकर यशवंतराव भाऊ से कमलमीर का दुर्ग ले लिया। सन् 1809 ईसवी में अमीर खाँ ने अपनी सेना के साथ मेवाड़ पर आक्रमण किया और राणा से ग्यारह लाख रुपये माँगे। राणा की अवस्था इस रकम को दे सकने के योग्य न थी। फिर भी विवश अवस्था में उसने नौ लाख रुपये देना मंजूर किया। परन्तु वह दे न सका। इसलिए अमीर खाँ ने राज्य में भयानक अत्याचार शुरू किये और उन अत्याचारों में राणा का मन्त्री किशनदास घायल हुआ । सम्वत् 1867 सन् 1811 ईसवी में बापू सिंधिया ने सूबेदार बनकर मेवाड़ में प्रवेश किया। उसके साथ उसकी एक सेना थी। अमीर खाँ की सेना उस समय मेवाड़ में लूट मार कर रही थी। मेवाड़ को अब दोनों सेनाओं ने लूटना शुरू किया। इन लुटेरों को वहाँ पर कोई रोकने वाला न था। राज्य की प्रजा के सामने इन दिनो में जो भयानक कष्ट थे, वे लिखे नहीं जा सकते । अमीर खाँ के पठानों और बापू सिंधिया के मराठों ने मेवाड़ राज्य में भीषण अत्याचार किये। इन अत्याचारों से राज्य का अंतिम विनाश हुआ, कृषि का जो व्यवसाय बाकी रह गया था, उसका भी नाश हो गया। नगरों का विध्वंस हो गया। राज्य के लोग अपने परिवार के साथ घर-द्वार छोड़कर भाग गये, सरदारों का पतन हो गया, राणा और उसके परिवार के जीवन में साधारण सुविधायें भी न रह गयीं। ऐसी दशा में सिंधिया के बाकी कर को अदा करने की धृष्टतापूर्ण माँग बापू सिंधिया ने राणा से की और उसके बदले में राज्य के सरदारों, कृषकों और व्यवसायियों को अजमेर में ले जाकर कैद में रखा। वहाँ पर उनमें से बहुतों की मृत्यु हो गयी और बाकी लोगों को सिंधिया की कैद से उस समय छुटकारा मिला, जब सन् 1817 ईसवी में अंग्रेजों की संधि हुई। 1. अपनी उस विपदा के समय किशनदास बहुत दिनों तक टॉड साहब के साथ रहा। राणा से भेंट के समय टॉड साहब की बातों को किशनदास की अनुवाद करके राणा को समझाता था। किशनदास के मरने पर मेवाड़ के लोगों ने बहुत दुःख प्रकट किया था। 313