पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३३२

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1 प्रशंसा हुई। जो लोग तीर्थ यात्रा करते थे, उनको कर देना पड़ता था। रिडमल्ल ने वह सम्पूर्ण कर अदा कर दिया। राज्य के कार्यों में रिडमल्ल बड़ा बुद्धिमान था। उसके अच्छे कार्यों से प्रजा को बहुत-सी सुविधायें मिली थीं। उसने मेवाड़ के नाबालिग राणा के सिंहासन पर अधिकार करने की चेष्टा की थी, जिसके फलस्वरूप वह मारा गया। इसका वर्णन मेवाड़ के इतिहास में किया जा चुका है। इस झगड़े के कारण मेवाड़ और मन्डोर में बहुत अन्तर पड़ गया था और दोनों राज्यों के सम्बन्ध एक दूसरे से अलग हो गये थे। राठौड़ वंश के भट्ठ कवियों ने रिडमल्ल की अपने ग्रन्थों में प्रशंसा लिखी है और इस बात को स्वीकार किया है कि उसने अपने राज्य में भूमि और कर के सम्बन्ध में कभी पक्षपात से काम नहीं लिया। रिडमल्ल के विश्वासघात के कारण मेवाड़ और मन्डोर की सीमायें अलग-अलग हो गयी थीं और वे बहुत समय तक अलग बनी रहीं। रिडमल्ल का वर्णन मेवाड़ के इतिहास में भली-भाँति किया जा चुका है। उसके चौवीस लड़के थे, जिनकी सन्तानों ने और बड़े लड़के जोधा ने मारवाड की अधीनता स्वीकार कर । सिहाजी के वंशजों ने मरुभूमि में चारों तरफ फैल कर अपना विस्तार किया था। उनकी नामावली जागीरों के साथ नीचे दी जाती है: नाम जागीर 1 जोधा (सिंहासन पर) काँधलजी शाखा जोधा काँधलोत 2 3 चम्पाजी चम्पावत बीकानेर अहवा, कैटो, पलरी, हरसोला. जावला, सथलाना, सिंगरी। असोप, कुम्पालिया, चन्दावल, सिरयारी, खारलो, हरसोर, वल्लू, विजौरिया, शिवपुरा, देवरिया। 4 अरवैराज कुम्पावत इसके सात वेटे थे तथा उनमें कँपा सबसे बड़ा था। 5 मंडलाजी मांडलोत सरौदा। 6 पाता जी पत्तावत 7 लाखा जी लाखावत कूर्निचरी,वरोह, देसनोख। धुनार पालासनी 8 बालावत वालो जी जैतमल 9 जैतमालोत करनोत 10. करन 11. रूपा जी रूपावत लूनावास चौतला बीकानेर 12. नाथ जी नाथावत 378