पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३३१

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। , रायपाल के तेरह लड़के थे। उसके बाद उसका बड़ा लड़का कनहुल सिंहासन पर बैठा। उसका बेटा जाल्हन, जाल्हन का बेटा छाडा और छाडा का लड़का टीडा क्रम से सिंहासन पर बैठे। इनके सम्बन्ध में कोई विशेष विवरण नहीं पाया जाता । जो कुछ उल्लेख मिलता है, उससे इतना ही मालूम होता है कि वे लोग अपने आस-पास के छोटे-छोटे राजाओं के साथ युद्ध करते रहे । वे कहीं पर हारे और कहीं पर जीते। उनका यह क्रम कुछ दिनों तक लगातार चलता रहा । टीडा ने अपने राज्य की उन्नति की थी। उसने कई राज्यों पर अधिकार कर लिया था। जैसलमेर के भट्ट ग्रंथों में लिखा है कि छाडा और टीडा वड़े लड़ाकू थे। टीडा के मरने के वाद सलखा उसके सिंहासन पर बैठा।। उत्थान और पतन राजपूतों के जीवन का खेल रहा है। उनके न तो पतन होने में देर लगती थी और न उनके उन्नत होने में । अपनी उन्नति के थोड़े ही दिनों के भीतर चूँडा उन सभी स्थानों से निकाल दिया गया, जिन पर उसके पूर्वजों ने अधिकार कर लिया था। अपने उन दुर्दिनों में वह कालू नामक नगर में चला गया। वहाँ पर एक चारण ने अपने घर में उसे शरण दी। मन्डोर नगर पर अधिकार करने के बाद चूंडा ने नागौर की वादशाही सेना पर हमला किया। वहाँ पर उसे विजय प्राप्त हुई। इसके पश्चात अपनी सेना लेकर वह दक्षिण की तरफ रवाना हुआ और गोडवाड़ राज्य की राजधानी नाडौल में पहुँच गया। वहाँ के दुर्ग पर उसने अपनी सेना रखी और उस राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। उसने एक परिहार राजा की लड़की के साथ विवाह किया। उसके चौदह लड़के और एक लड़की पैदा हुई। रिडमल्ल, सत्ता, रणधीर, अडकमल्ल, पुजा, भीम, कान्हा, अज्जा, रामदेव, वीजा, सहेशमल्ल, बोघा, लम्भा और शिवराज उसके चौदह लड़कों के नाम थे। उसकी लड़की का नाम हंसा था। मेवाड़ के राणा लाखा के साथ हंसा का विवाह हुआ था। इसी हंसा से जो लड़का पैदा हुआ, उसने मेवाड़ के सिंहासन पर बैठकर राणा कुम्भा के नाम पर महान कीर्ति प्राप्त की। चूंडा के सम्बन्ध में अधिक विवरणु नहीं पाये जाते । संक्षेप में इतना ही लिखकर उसका वर्णन समाप्त किया जाता है कि फॅडा नागौर में एक हजार राजपूतों के साथ मारा गया। सम्वत् 1438 सन् 1382 ईसवी में वह सिंहासन पर बैठा था और सम्वत् 1465 में वह मारा गया। उसकी मृत्यु के बाद उसका वड़ा लड़का रिडमल्ल मन्डोर के सिंहासन पर वैठा। उसकी माँ मोहिल वंश की लड़की थी। चूंडा की मृत्यु हो जाने के वाद नागौर राठौड़ों के अधिकार से निकल गया। राणा लाखा रिडमल्ल से बहुत स्नेह करता था और अपने सामन्तों से उसे वह बहुत सम्मान देता था। राणा लाखा ने रिडमल्ल को चालीस गाँव और धनला नाम का एक नगर दे दिया था। राणा लाखा के जीवन काल में रिडमल्ल उसका राजभक्त बना रहा और कई अवसरों पर उसने अपने कार्यों के द्वारा अपनी राजभक्ति का प्रमाण दिया। एक बार वह अपनी और मेवाड़ की सेना लेकर चौहानों के एक पुराने दुर्ग पर पहुँचा और वहाँ की रक्षक सेना को मारकर उसने उस दुर्ग को अपने अधिकार में कर लिया। रिडमल्ल ने उस दुर्ग को जीतकर राणा लाखा को दे दिया था। राणा लाखा उसके इस कार्य से बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसको केटो नामक एक नगर इनाम में दिया । रिडमल्ल तीर्थ यात्रा करने के उद्देश्य से गया जी गया था। वहाँ पर उसने कई धार्मिक कार्य ऐसे किये, जिनसे वहाँ पर उसकी बड़ी सलखा के वंशज सलखावत के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे लोग अब तक बहुत से स्थानों में पाये जाते हैं। 1. 377