अध्याय-33 राव जोधा द्वारा जोधपुर की स्थापना तथा मालदेव सम्वत् 1484 के बैसाख महीने में जोधा ने मेवाड़ राज्य के धनला नामक एक नगर में जन्म लिया था। वह रिडमल्ल का लड़का था। जोधा के पितामह ने मन्डोर पर अधिकार करके उसको अपने राज्य की राजधानी बनाया था और यह नगर बहुत दिनों तक मारवाड़ की राजधानी के रूप रहा। जोधा ने इस नगर से हटकर अलग अपने नाम का एक नगर बसाने का इरादा किया। कहा जाता है कि इसके लिये किसी सन्यासी ने उसको परामर्श दिया था। वह सन्यासी मन्डोर से चार मील दक्षिण की तरफ विहंगकूट नामक एक पहाड़ की गुफा में रहा करता था। वह राठौड़ों का शुभचिन्तक था। उसी ने जोधा से कहा था कि मन्दोर नगर में अनेक प्रकार के संकट पैदा होंगे। इसलिये बकरचीरा की सीमा पर आप एक नगर की प्रतिष्ठा कराइये। सन्यासी के इस परामर्श को पाकर जोधा ने उस नये नगर के निर्माण का विचार निश्चित कर लिया और विहंगकूट पर्वत की ऊंची चट्टानों के ऊपर उनको बनाये जाने का कार्य आरम्भ हो गया। इसी पर्वत के ऊपर मन्डोर नगर बसा हुआ था। इस पर्वत पर बसे हुये नगर पर आक्रमण करना किसी के लिये आसान न था। उस पर्वत के चारों तरफ घना जंगल था और उस पर्वत की ऊंचाई बहुत अधिक थी। उसकी ऊंची चोटियों पर खड़े होकर देखने से सम्पूर्ण मारवाड़ दिखायी देता था। मारवाड़ के तीन तरफ विस्तृत मरुभूमि थी। उस बालुकामय प्रदेश में जल का स्वाभाविक रूप से अभाव था। जोधा ने अपने नये नगर के निर्माण में इस अभाव की तरफ ध्यान न दिया। कार्य आरम्भ हुआ और निर्माण का कार्य समाप्त हुआ। जोधा ने अपने नाम के आधार पर इस नवीन नगर का नाम जोधपुरु रखा। उसमें जल की कोई व्यवस्था न थी। जिस स्थान पर यह नगर बसाया गया था, वहाँ पहले से ही पहाड़ी चट्टानों पर जल का अभाव था। इसका विचार उस समय होना चाहिये था, जब उस नगर की प्रतिष्ठा होने जा रही थी। उस समय स्वयं जोधा ने और उसे परामर्श देने वाले मन्त्रियों ने इसके सम्बन्ध में कुछ न सोचा। नगर के निर्माण का कार्य समाप्त हो जाने पर लोगों का ध्यान इस अभाव की तरफ गया। जल का अभाव जोधपुर का एक बड़ा अभाव था। मारवाड़ के भट्ट लोगों ने इस अभाव को उस सन्यासी के माथे पर मढ़ने की चेष्टा की और वे लोग सफल भी हुये। सर्व साधारण में कहा जाने लगा कि नगर के निर्माण में उस सन्यासी के साथ - जिसने इस नगर 380
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