सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। के निर्माण कराने की सलाह दी थी - अत्याचार किया गया। जिस पहाड़ी गुफा में वह सन्यासी रहता था, उसको भी इसमें शामिल कर लिया गया है। सन्यासी को इससे बड़ा कष्ट हुआ और उसने राज्य के अधिकारियों से प्रार्थना की। लेकिन किसी ने कुछ सुना नहीं । इस दशा में उसके शाप से यह नगर सदा अच्छे जल के लिये दुःखी रहेगा। सर्वसाधारण की इस धारणा का आधार मारवाड़ के भट्ट कवियों का प्रचार था। उन्होंने जोधा और राज्य के प्रधान अधिकारियों को सुरक्षित रखने के लिये जन साधारण में इस प्रकार का प्रचार किया था। शुद्ध जल की जव कोई व्यवस्था न हो सकी तो उसके लिये अनेक प्रकार के उपाय सोचे गये। जिन पहाड़ी ऊंची चट्टानों के ऊपर जोधपुर का दुर्ग वना था, उसके नीचे एक सरोवर था। उस सरोवर से जल लाने की व्यवस्था की गयी। उस सरोवर में ऐसी कलें लगवाई गयीं, जिनसे उस सरोवर का जल दुर्ग के ऊपर पहुँचने लगा। जोधपुर नगर और दुर्ग में अच्छे जल के लिये वहुत-से उपाय किये गये, लेकिन वे सव व्यर्थ गये और किसी से कुछ लाभ न हुआ। इस अभाव का मूल कारण क्या था, इसे इस समय किसी ने नहीं जाना परन्तु इस पर सभी ने विश्वास किया कि सन्यासी के अभिशाप से जोधपुर में जल का अभाव पैदा हुआ और वह अभाव कभी मिट न सकेगा। सम्वत् 1515 के जेठ महीने में जोधा ने अपने नवीन नगर की प्रतिष्ठा की। उसके वाद तीस वर्ष तक जीवित रहकर सम्वत् 1545 में इकसठ वर्ष की अवस्था में उसने परलोक की यात्रा की। उसके द्वारा प्रतिष्ठित जोधपुर राजस्थान का एक प्रसिद्ध नगर बना। उसके साथियों में और सहायकों में कई शूरवीर थे, जिन्होंने जीवन भर उसके लिये त्याग और वलिदान से काम किया था। जोधा अपने जीवन के अन्त तक उनका सम्मान करता रहा। हरबूसाँकला, पावूजी और रामदेव राठौड़ की प्रस्तर मूर्तियां बनवा कर जोधा ने मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मन्डोर के श्रेष्ठ स्थानों पर लगवाई थीं।1 जोधा ने अपने जिन तीन वीरों की प्रस्तर मूर्तियाँ बनवाई थीं, उनको देखकर उनके तेजस्वी प्रताप का सहज ही आभास होता है। उनके यशस्वी नामों को कोई भी राठौड़ कभी भूल न सकेगा। प्रस्तर की बनी हुई उनकी मूर्तियाँ आज भी दर्शकों के सामने उनके शौर्य और प्रताप की तरफ संकेत करती हैं ।2 सिहाजी ने जिस समय कन्नौज छोड़कर भारत के मरुप्रदेश में जाकर आश्रय लिया था, उस समय से लेकर अब तक तीन शताव्दियाँ वीत चुकी हैं। इन तीन सौ वर्षों में उसके वंशजों ने मरुप्रदेश में फैलकर वहाँ की समस्त उत्तम भूमि पर अधिकार कर लिया। सिहाजी के वंशजों की संख्या इन दिनों में इतनी बढ़ गयी थी कि जो विस्तृत भूमि उनके अधिकार में थी, वह उनके लिये कम पड़ रही थी और नयी 1. पाबूजी की प्रस्तर मूर्ति उसकी प्रसिद्ध घोड़ी पर बनी हुई है। उस पर बैठा हुआ शूरवीर पावूजी वड़ा मालूम होता है। रामदेव का नाम सम्पूर्ण मरुप्रदेश में फैला हुआ है। वहाँ के गाँवों के निवासी भी उनके प्रसिद्ध नाम से परिचित हैं। जिन शूरवीरों ने जोधा की सदा सहायता की और अपने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया था। ऐसे कई एक वीरों की प्रस्तर मूर्तियाँ जोधा ने वनवाई । वे सभी कलाकारों के द्वारा पाषाणों पर तैयार की गयी। प्रत्येक शूरवीर अपने युद्ध के वेश में घोड़ों पर चढ़ा हुआ दिखायी देता है। उनके दाहिने हाथ में वठे और बायें हाथ में घोड़ों की लगामें हैं। उनकी पीठ पर ढालें लटक रही है। कमर में लटकती हुई तलवारें दिखायी देती हैं। युद्ध के दूसरे अत्र भी उनके शरीर की शोभा बढ़ा रहे हैं। देखने में ये शूरवीर जीवित मालूम होते हैं। ये सब मूर्तियाँ मन्डोर नगर के एक विशाल मैदान में ऊंचाई पर लगी हुई हैं। एक स्थान पर तीन मूर्तियाँ हैं। पावूजी, रामदेव और हरखूसाँकला की मूर्तियाँ एक साथ लगी हुई हैं। उसके अन्त में प्रसिद्ध चौहान वीर गंगा की प्रस्तर मूर्ति है । जिसने महमूद का आक्रमण रोकने के लिये सतलज नदी के किनारे अपने सैतालीस वेटों के साथ प्राणों की बलि दी थी। आकर्षक 2. 381