किया। मरुस्थली के जो भूमिया लोग इसके पहले बहुत शक्तिशाली और कट्टर माने जाते थे, वे सभी मालदेव से पराजित हो चुके थे और उन्होंने मारवाड़ की अधीनता स्वीकार कर ली थी। इस प्रकार अपनी शक्तियों को उन्नत बनाकर मालदेव का ध्यान प्रचण्ड भाटी लोगों की तरफ आकर्षित हुआ। उनके साथ उसका जो युद्ध आरम्भ हुआ, वह बहुत दिनों तक चला। इस बीच में उसने भाटी लोगों के कुछ स्थानों को अपने अधिकार में कर लिया। विक्रमपुर ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली।1 आमेर की राजधानी से दक्षिण की तरफ चाटसू नाम का एक नगर था, मालदेव ने उस पर अधिकार कर लिया और देवरा लोगों से सिरोही लेकर मारवाड़ में मिला लिया। इन्हीं दिनों में उसने मारवाड़ में कई महल वनवाये और मजबूत दुर्गों का निर्माण करवाया। जोधपुर को सुरक्षित रखने के लिए उसने उसके आस-पास मजबूत दीवारें वनवाई। जोधा ने जोधपुर में जो राजभवन वनवाये थे, मालदेव ने उनमें आवश्यक मरम्मत करवाई। साँतलमेर को तुड़वा कर उसकी सामग्री से उसने पोकरण को सुदृढ़ वनाने का काम किया ।2 सिवाना नगर में कुंडल कोट और उसके निकट पीपलोंद नामक पहाड़ियों पर भद्राजून वसा हुआ है। उसके पास जूडोजरिया पीपाड़ और दूनाडा नामक नगरों में उसने दुर्ग बनवाये। दुर्गों के ऊपर जल ले जाने के लिए उसने एक यन्त्र लगवाया था। इस प्रकार के कार्यों में उसने अपरिमित धन व्यय किया था। केवल मेड़ता के दुर्ग की मरम्मत में उसने चौवीस हजार पौण्ड खर्च किये थे। भट्ट कवियों का कहना है कि सांभर झील से जो आय मारवाड़ राज्य को होती थी, उसी को खर्च करके मालदेव ने इस प्रकार के वहुत से काम किये थे। इसका अर्थ यह है कि उन दिनों में सांभर झील में नमक बहुत तादाद में तैयार होता था। मालदेव के शासन काल में मारवाड़ के राज्य का बहुत विस्तार हो गया था। सोजत, सांभर, मेड़ता, खाट्, बदनौर, लौनू, रायपुर, भद्राजून, नागौर, सिवाना, लोहागढ़, झागलगढ़, बीकानेर, भीनपाल, पोकरण, वाड़मेर, कसौली, रैवासी, जोजावर, जालौर, वंवली, मलार, नाडोल, फलौदी, साँचोर, डीडवाना, चाटसू, लोहान, मलारना, देवरा, फतहपुर, अमृतसर, फावर, मीनापुर, टोंक, टोडा, अजमेर, जहाजपुर, प्रेमरका और उदयपुर (शेखावाटी के अन्तर्गत) नामुक अड़तालीस जिलों में अधिकांश जिले जालौर, अजमेर, टोंक और वदनौर के अन्तर्गत हैं। ऊपर लिखे हुए विशाल नगर मालदेव के प्रताप और ऐश्वर्य का प्रमाण देते हैं। इन अड़तालीस जिलों में मालदेव ने अधिक समय राज्य नहीं किया। चाटसू, लावान, टोंक, टोड़ा और जहाजपुर थोड़े ही समय में उसके हाथ से निकल गये। वदनौर की भी यही अवस्था हुई। जिला बदनौर और उसके अन्तर्गत तीन सौ आठ गाँवों में राठौड़ रहा करते थे और वे सभी मेड़तिया शाखा से उत्पन्न हुए थे, शूरवीर जयमल राजपूतों की इसी शाखा में पैदा हुआ था, जो मेवाड़ का एक प्रसिद्ध सरदार हुआ और यही कारण था कि उसके समय से वदनौर मेवाड़ राज्य का एक भाग माना गया। 1. यहाँ पर उसके पूर्वजों की एक शाखा रहती थी, इस शाखा के लोग जैसलमेर वालों के साथ मिल गये हैं और अब वे मालदोत के नाम से प्रसिद्ध हैं। मारवाड़ में मालदोत लोग बड़े साहसी समझे जाते हैं। पोकरण झालावाड़ और जोधपुर के मध्य में वसा हुआ है। यहाँ का दुर्ग वहुत मजबूत और सुरक्षित है। इन दिनों में यहाँ का सामन्त राजा सालमसिंह था। वह मारवाड़ के सभी सामन्तों में श्रेष्ठ माना जाता था। वह चम्पावत के नाम से प्रसिद्ध है। यद्यपि चम्पावत मारवाड़ की अधीनता में हैं। लेकिन इसको मारवाड़ के राजा का कोई भय नहीं रहता। 3. मेड़ता नगर मन्डोर के राजा का बसाया हुआ था। मालदेव ने इसमें एक दुर्ग बनवा कर अपने नाम पर मालकोट उसका नाम रखा। इस दुर्ग का व्यास दो मील से कम नहीं है। 2. 385
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