हस्तिनापुर से पांडवों का निकल जाना धृतराष्ट्र को असह्य हो रहा था। उसकी कोशिश से पांडव वुलाये गये और राज्य का बँटवारा किया गया । हस्तिनापुर का अधिकार दुर्योधन को मिला। इसलिए युधिष्ठिर को इन्द्रप्रस्थ नामक नई राजधानी कायम करनी पड़ी। महाभारत के बाद युधिष्ठिर ने अपने नाम का एक सम्वत् निकाला और अपने भतीजे के पुत्र परीक्षित को राज्य का अधिकारी बना दिया। युधिष्ठिर का चलाया हुआ सम्वत् 1100 वर्ष तक प्रचलित रहा। हुआ यह कि उसी वंश के उज्जैन के तोमर राजा विक्रमादित्य ने इन्द्रप्रस्थ को पराजित कर अपने अधिकार में ले लिया और अपने नाम का एक नया सम्वत् चलाया, जिसके कारण युधिष्ठिर का चलाया हुआ सम्वत् समाप्त हो गया। इन्द्रप्रस्थ की राजधानी कायम हो जाने के बाद हस्तिनापुर का वैभव क्षीण हो गया और आस-पास के समस्त राज्यों में पाँचों पांडवों का वैभव बहुत बढ़ गया था। उन सभी राजाओं ने पांडवों की अधीनता को स्वीकार कर लिया था। ऐसे समय पर युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ करने का निर्णय किया। इस यज्ञ में अर्जुन के संरक्षण में यज्ञ का घोड़ा छोड़ा गया। वह वारह महीने तक बरावर घूमता रहा और किसी ने उसको पकड़ा नहीं। इसके बाद इन्द्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ हुआ। इस प्रकार के यज्ञ में सभी कार्य राजाओं को ही अपने हाथ से स्वयं करने पड़ते थे। इसमें भी ऐसा ही हुआ और हस्तिनापुर के राजा को प्रसाद वाँटने का काम दिया गया। दुर्योधन और उसके बन्धुओं ने उसे अपना अपमान समझा। इससे कौरवों और पांडवों के वीच ईर्ष्या बढ़ी। दुर्योधन ने युधिष्ठिर के विरुद्ध जितने पडयंत्र किये थे, उनमें उसे कोई सफलता न मिली थी। युधिष्ठिर की धर्मनीति से सभी लोग प्रसन्न थे। इसलिए दुर्योधन ने जुआ खेलने का एक नया पड़यंत्र युधिष्ठिर के साथ रचा। यह जुआ खेलने की प्रथा भी सीथियन2 (शक लोगों) की है, जो राजपूतों में अब तक चली आ रही है। दुर्योधन के साथ जुआ के जाल में युधिष्ठिर फंस गया। फलस्वरूप, वह अपना राज्य खो बैठा और अपने शरीर के साथ-साथ अपने भाइयों तथा स्त्री द्रौपदी को भी हार गया। इससे वह अपने परिवार के साथ बारह वर्ष के लिए अपने राज्य से चला गया। उसके बाद कौरवों और पांडवों में जो युद्ध हुआ, वह महाभारत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस युद्ध में और हजारों की संख्या में लोग मारे गये। अन्त में युधिष्ठितर की विजय हुई।युधिष्ठरके उसके हृदय पर इसका घातक प्रभाव पड़ा। वह सांसारिक जीवन से उदासीन हो गया। युद्ध में युधिष्ठिर के भाई भीम के द्वारा दुर्योधन मारा गया था इसलिये हस्तिनापुर में युधिष्ठिर ने दुर्योधन का अंतिम संस्कार किया। इसके बाद अपने प्रपौत्र परीक्षित को राजसिंहासन पर विठाकर वह कृष्ण और वलदेव के साथ द्वारका चला गया। सन् 1740 ईस्वी तक महाभारत के 4636 वर्ष बीत चुके थे। महाभारत में जो लोग वच गये थे वे सब युधिष्ठिर के साथ द्वारका चले गये थे। वहाँ पर एक भील के द्वारा कृष्ण के प्राणों का अंत हुआ। महाभारत में युद्ध करके वे लोग शरीर और मन से इतने थक गये थे कि युधिष्ठिर के साथ के लोग अब युद्ध करने योग्य 1.. दुर्योधन और युधिष्ठिर के राज्य अलग हो जाने पर उसके वंश अलग-अलग चले । दुर्योधन ने अपने आदि पुरुष कुरु के नाम से कौरव वंश और युधिष्टिर ने अपने पिता पांडु के नाम से पांडव वंश चलाया। जिस स्थान पर महाभारत हुआ उसका नाम भी कुरु के नाम पर कुरुक्षेत्र रखा गया । शक लोगों में जुआ खेलने की पुरानी प्रथा थी। उन्हीं से राजपूतों में यह प्रथा आयी । इसका वर्णन हेरोडोटस ने किया है। टैटीस ने लिखा है कि जर्मनी के लोग जुआ में अपने शरीर को भी दाँव में लगाते थे। हार जाने पर दाँव पर रखा हुआ आदमी गुलाम की तरह, गुलामों की बिक्री होने वाले बाजारों में बेचा 2. जाता था। 34
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