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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३५

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नहीं रह गये थे। कृष्ण के मर जाने के बाद वलदेव और साथ के कुछ आदमियों को लेकर युधिष्ठिर भारत के बाहर, सिन्ध के रास्ते से उत्तर में हिमालय पर्वत पर चला गया। इसके बाद उनमें से किसी का भी कोई समाचार नहीं मिला। इसलिए यह अनुमान किया गया कि वे सब हिमालय की वर्फ में गल गये।। युधिष्ठिर के वंश में परीक्षित से लेकर विक्रमादित्य तक चार वंशों के विवरण दिये गये हैं। उनमें राजपाल तक 66 राजाओं के नाम आते हैं। कुमाऊँ के आक्रमण में वह सुखवन्त के द्वारा मारा गया था और आक्रमणकारी विजयी राजा ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया था। लेकिन उसके बाद विक्रमादित्य ने उसको पराजित किया और गये हुए राज्य को वापस लेकर इन्द्रप्रस्थ से राजधानी हटाकर अवन्ती (उज्जैन) में कायम की। आठ सौ वर्षों तक इन्द्रप्रस्थ में राजधानी नहीं रही। उसके पश्चात् तोमर वंश के प्रतिष्ठाता अनंगपाल ने उसे फिर राजधानी बनायी। वह अपने आपको पांडवों का वंशज कहता था। उस समय से इन्द्रप्रस्थ का नाम बदल कर दिल्ली हो गया। सुखवन्त राजा ने कुमाऊँ के उत्तरी पर्वतों से आकर दिल्ली पर चौदह वर्ष तक राज्य किया था। उसके बाद विक्रमादित्य ने उसे मार डाला । युधिष्ठिर से लेकर पृथ्वीराज तक जो क्षत्रिय राजा दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठे उनकी संख्या के बारे में अनेक मतभेद हैं। उनके विवाद में यहाँ पर अधिक लिखना आवश्यक नहीं मालूम होता। जरासंध राजगृह अर्थात् बिहार का राजा था। उसका पुत्र सहदेव और पौत्र माजॉरी महाभारत के समकालीन माने गये हैं। इस दशा में वे दिल्ली के सम्राट परीक्षित के समकालीन थे। जरासंध के वंश में तेईस राजा हुए। उनमें अंतिम रिपुञ्जय था। उसके मंत्री सुनक ने उसे मार कर राज्य का अधिकार छीन लिया था। सुनक का वंश पाँच पीढ़ी तक चला। उसके वंश के अंतिम राजा का नाम नन्दीवर्धन था। सुनक वंश के राजा का समय 130 वर्ष माना जाता है। शेषनाग नामक एक विजेता की अधीनता में शेषनाग देश के लोग भारत में आये और वे पांडु की गद्दी पर बैठे । उनका वंश दस पीढ़ी तक चल कर अंतिम राजा महानन्द के साथ-जो अनौरस था समाप्त हो गया। इन दस राजाओं का राज्य काल 360 वर्ष का लिखा गया है। चौथी वंशावली इसी तक्षक2 वंश के चन्द्रगुप्त मौर्य से आरंभ हुई। इस वंश में दुस राजा हुए और उनका अन्त 137. वर्ष में ही हो गया। श्रृंगी नामक देश से आकर पाँचवें वंश के आठ राजाओं ने 112 वर्ष तक यहाँ पर राज्य किया। उसके अंतिम राजा को काण्व देश के एक राजा ने आकर पराजित किया और उसे मारकर उसका राज्य छीन लिया। इन आठ राजाओं में चार शूद्र वंश के थे। 1. 1 हिमालय पर्वत पर चले जाने के बाद युधिष्ठिर और बलदेव के संबंध में हिन्दुओं के ग्रंथों में कोई विवरण नहीं मिलता । यहाँ पर यूनान के पुराने ग्रंथों से बहुत कुछ समझने में मदद मिलती है। पांचालिक में जब सिकन्दर ने पूजा के स्थानों की प्रतिष्ठा की थी, उस समय वहाँ पर पुरु और हरिकुलियों के वंशज रहते थे। वहाँ पर यह अनुमान किया जा सकता है कि उन वंशों के बहुत से लोग युधिष्ठिर और बलदेव के साथ चल कर यूनान में जाकर बस गये थे और उन्होंने उस समय यूनानियों पर विजय पायी थी। जब सिकन्दर ने वहाँ पर आक्रमण किया तो पुरुवंशियों और हरिकुलियों ने हरक्यूलीज़ के चित्र का प्रदर्शन किया। हिन्दुओं और यूनानियों के पुराने ग्रंथों का अवलोकन करने से साफ-साफ समझ में आता है कि वे दोनों एक ही स्थान पर उत्पन्न हुए थे। प्लेटो (अफलातून) भी इस बात को स्वीकार करते हुए कहता है कि यूनान और पूर्वी देशों की प्राचीन बातों में कोई अंतर नहीं है। वे एक ही है। यह भी समझ में आता है कि हरिकुलियों का यह दल हेराक्लाइडी लोगों का समूह था जो बाँटने के लिखने के अनुसार, ईसा से 1078 वर्ष पहले पेलोपेनेसस में जाकर बसा था । वह समय महाभारत के समय के बहुत करीब साबित होता है। मोरी वंश का अभिप्राय मौर्य वंश से है । बौद्ध और जैन लेखकों ने इस वंश को सूर्यवंशी माना है, तक्षक वंशी नहीं। ऐसा कुछ अन्य विद्वानों का कहना है ।-अनुवादक 1 2. 35