लेने लगा। शेरशाह ने मारवाड़ पर आक्रमण करने की तैयारी आरम्भ कर दी। उसने अस्सी हजार लड़ाकू वीरों की एक सेना तैयार की और मारवाड़ पर आक्रमण करने के लिये वह दिल्ली से रवाना हो गया। शेरशाह के इस आक्रमण का समाचार मारवाड़ में राजा मालदेव ने सुना। उसके सामने किसी प्रकार की चिन्ता पैदा नहीं हुई। वह चुपचाप अपनी राजधानी में बैठा रहा और शेरशाह की सेना को मारवाड़ की तरफ लगातार बढ़ने का उसने अवसर दिया। राजा मालदेव ने इसके बाद शेरशाह से युद्ध करने के लिये अपनी तैयारी आरम्भ की। परन्तु उस तैयारी में किसी प्रकार की उतावली न थी। मारवाड़ के निकट पहुँच कर शेरशाह की फौज ने मुकाम किया और बड़ी सावधानी के साथ वह राजा मालदेव की खबरें मारवाड़ में युद्ध की तैयारियाँ हो गयीं। मुसलमानों के आक्रमण को व्यर्थ करने के लिये पचास हजार राठौड़ शूरवीर युद्ध के लिये तैयार हो गये। लेकिन मालदेव की सेना अभी तक अपनी राजधानी में ही थी। उसके सामने किसी प्रकार की चिन्ता और उतावली न थी। उसके ये समाचार भी बादशाह शेरशाह को बराबर मिलते रहे । उसकी समझ में यह न आया कि राजा मालदेव की इस निश्चिन्त अवस्था का कारण क्या है। अपनी छावनी में बैठकर बड़ी सावधानी के साथ शेरशाह मारवाड़ की परिस्थिति पर विचार करने लगा। राठौड़ों की शक्तियों से वह अपरिचित न था। मालदेव को पराजित करना वह बहुत आसान न समझता था इसलिये होने वाले युद्ध की परिस्थितियों पर बड़ी गम्भीरता के साथ वह विचार करने लगा। मालदेव की शक्तियाँ उन दिनों में इतनी साधारण न थीं, जिनको तुच्छ समझकर कोई मारवाड़ पर आक्रमण करने का साहस करता। इसीलिये शेरशाह मालदेव को पराजित करने के लिये अनेक प्रकार के उपाय सोचता रहा। उसने अपने जीवन में राजनीतिक चालों के द्वारा सदा सफलता पायी थी। हुमायूँ को पराजित करने में भी उसने बड़ी राजनीति से काम लिया था। इस समय उसने अपनी विशाल सेना लेकर मालदेव के साथ युद्ध करने के लिये मारवाड़ पर आक्रमण किया था। उसकी फौज मारवाड़ राज्य की सीमा के बाहर अभी तक पड़ी थी और युद्ध की पूरी तैयारी कर चुकने के बाद भी मालदेव अपनी सेना के साथ अभी तक राजधानी में ही था। बहुत सोच-समझ करं शेरशाह ने मालदेव को पराजित करने के लिये निर्णय किया। वह राठौड़ों के युद्ध-कौशल को भली-भाँति जानता था। मालदेव के शूरवीर सरदारों की शक्तियों से भी वह परिचित था। शेरशाह भली प्रकार समझता था कि यदि सरदारों के साथ मालदेव का विश्वास किसी प्रकार भंग किया जा सकता है तो राजा मालदेव की शक्तियाँ बहुत दुर्बल हो जायेंगी और उस दशा मे उसको पराजित करना कोई बड़ा मुश्किल कार्य न होगा। अपनी सफलता के लिये उसने एक षड़यन्त्र की रचना की। बड़ी बुद्धिमानी के साथ उसने एक पत्र तैयार किया, जिसको पढ़ने से राजा मालदेव का विश्वास तुरन्त अपने सरदारों से हट जायेगा। यह पत्र तैयार करके किसी प्रकार उसने राजा मालदेव के दरबार में पहुँचाने की कोशिश की । शेरशाह को अपने षड़यन्त्र में सफलता प्राप्त हुई। वह पत्र राजा मालदेव के हाथों में पहुँच गया, उसको पढ़ते ही उसके प्राण सूख गये। वह बार-बार सोचने लगा कि अपने जिन सरदारों पर मैं गर्व करता हूँ। वे मेरे शत्रु से मिले हुये को इस बात का प्रलोभन है कि मारवाड़ का राज्य शेरशाह की अधीनता में आ जाने पर इस राज्य के सरदारों को आज से अधिक अधिकार और सम्मान प्राप्त हैं और इन् होंगे। 387
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