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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३४९

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. 1- 2- 3- 4- 5- 6- 7- होली की-सी लपटें उठने लगीं। उसी समय उस व्राह्मण ने खड़े होकर राजा को श्राप दिया और उसके बाद वह तान्त्रिक वाह्मण जलते हुये अग्नि कुण्ड में कूद पड़ा। थोड़ी देर में पिता-पुत्री के शरीर राख का ढेर बन गये । राजा उदयसिंह ने भी यह समाचार सुना। इस समय उसको अपनी अभिलापा एक भयानक अपराध मालूम हुई। इसी दिन से उसके मन में एक अशान्ति पैदा हो गयी और प्रत्येक घड़ी वह अस्थिर रहने लगा। इसके कुछ ही दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गयी। ऊपर लिखा जा चुका है कि उदयसिंह के चौंतीस सन्तानें थीं। उसके सत्रह लड़के थे और सत्रह लड़कियाँ । उसकी इन सन्तानों के सम्बन्ध में नीचे लिखा हुआ विवरण पाया जाता है: शूरसिंह, सिंहासन पर। अखयराज भगवानदास: इसके वल्लू, गोपालदास और गोविन्ददास नाम के तीन लड़के थे। गोविन्द दास ने गोविन्दगढ़ बसाया था। नरहरदास शक्तसिंह- इनके कोई सन्तान नहीं हुई। भूपनसिंह दलपतः इसके चार पुत्र हुये, महेशदास उनमें सबसे बड़ा था। उसके लड़के रतन ने रतलाम नामक एक दुर्ग वनवाया था। उसके तीन लड़के थे, यशवन्तसिंह, प्रतापसिंह और कुरिन । जयतः इसके चार लड़के उत्पन्न हुये, हरी, अमर, कन्हीराम और प्रेमराज । इनकी सन्तानों को बलूता और खरवा की भूमि मिली थी। किशनसिंह:- इसने सम्वत् 1669 सन् 1613 ईसवी में किशनगढ़ बसाया। साहसमल, जगमल, भारमल नाम के इसके तीन लड़के थे। भारमल का लड़का हरीसिंह था और हरीसिंह के रूपसिंह नाम का एक बेटा था। रूपसिंह ने रूप नगर वसाया। 10- यशवन्तसिंह: इसके लड़के मानसिंह ने मानपुर वसाया। उसकी सन्ताने मनुरूप जोधा के नाम से विख्यात हुईं। 11- केशवः इसने पीसानगढ़ बसाया था। 12- रामदास 13- पूरनमल 14- माधवसिंह। इनके केवल नाम पाये जाते हैं 15- मोहनदास 16-- कीरतसिंह 17 XXX इन पुत्रों के अतिरिक्त उदयसिंह के सत्रह लड़कियाँ भी पैदा हुई थीं, परन्तु भट्ट ग्रन्थों में उनका कोई वर्णन नहीं पाया जाता। राजावली नामक एक पुस्तक में उदयसिंह की सन्तानों का ऊपर लिखा हुआ विवरण पाया जाता है। 8- 9- 395