पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३५०

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अध्याय-35 मारवाड़ के सिंहासन पर राजा सूरसिंह और गजसिंह उदयसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका बड़ा लड़का शूरसिंह सम्वत् 1651 सन् 1595 ईसवी में मारवाड़ के सिंहासन पर बैठा । इस राज्य का गौरव उदयसिंह के शासन काल में निर्वल पड़ गया था। पिता की मृत्यु के समय में शूरसिंह लाहौर में था। वहाँ पर वह मुगल बादशाह की तरफ से भारत की सीमा का अधिकारी था। वहीं पर उसे उदयसिंह के मरने का समाचार मिला था। सन् 1648 ईसवी में सिन्ध को विजय किया गया। शूरसिंह उसी समय से वहाँ पर था। शूरसिंह अपने पिता उदयसिंह की तरह का न था। जीवन के आरम्भ से ही वह रणकुशल और पराक्रमी था। उदयसिंह के जीवन काल में उसने अपनी रणकुशलता और वीरता का परिचय दिया था। उससे प्रसन्न होकर मुगल बादशाह अकवर ने उसे एक सम्मानपूर्ण पद देकर सवाई राजा की उपाधि दी थी। बादशाह अकवर शूरसिंह की योग्यता बहुत प्रभावित था। इसीलिये उसने इन दिनों में उसको एक उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करने का आदेश दिया। सिरोही का स्वामी राव सुरतान अपने एक सुदृढ़ पहाड़ी दुर्ग पर रहा करता था। उसका समस्त राज्य पर्वतमय था । उसको इस बात का विश्वास हो गया था कि उसके पहाड़ी और जंगली राज्य के नगरों और स्थानों में मुगल बादशाह की सेना प्रवेश नहीं कर सकेगी। इसी विश्वास के कारण उसने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की थी। बादशाह अकबर की तरफ से शूरसिंह ने सिरोही राज्य पर आक्रमण किया। इसके पहले भी सिरोही राज्य के साथ उसका एक संघर्ष हो चुका था। शूरसिंह ने सिरोही के राजा को जीत कर, उसका सिरोही नगर लुटवा लिया। इस लूट में यहाँ तक अत्याचार किया गया कि राव सुरतान के पास चारपाई पर बिछाने के लिये कपड़े तक न रह गये, भट्ट ग्रन्थों में लिखा है कि सिरोही के राजा राव सुरतान का अभिमान नष्ट करने के लिये शूरसिंह को उसके साथ ऐसा करना पड़ा। शूरसिंह ने उसका सम्मानपूर्ण अभिमान मिट्टी में मिला दिया और उसे मुगलों की पराधीनता स्वीकार करनी पड़ी। सामन्त शासन प्रणाली के अनुसार राव सुरतान ने मुगल बादशाह का फरमान मन्जूर किया और अपनी सेना को लेकर वह दिल्ली के लिये रवाना हुआ। इन्हीं दिनों में बादशाह का आदेश पाकर शूरसिंह गुजरात के शाहमुजफ्फर के पास युद्ध करने के लिये रवाना 396