सम्वत् 1676 सन् 1620 ईसवी में राठौड़ नरेश शूरसिंह की दक्षिण में मृत्यु हो गयी। वह एक शूरवीर और सुयोग्य राजपूत था। बादशाह के दरवार में उसको सम्मान मिला था। दक्षिण में उसने बड़ी ख्याति पायी थी। उसके शासन काल में जोधपुर का गौरव बढ़ गया था। उसने वहुत-से कुए, तालाब और अनेक इमारतें वनवाई थीं, जिनमें से वहुत-सी अव तक मौजूद हैं। उसके इस निर्माण कार्य में सूरसागर बहुत प्रसिद्ध है। यद्यपि उस मरुभूमि में उसकी कोई उपयोगिता नहीं है। शूरसिंह ने छः पुत्र और सात कन्याएं छोड़कर परलोक की यात्रा की। गजसिंह, सवलसिंह, वीरनदेव, विजयसिंह, प्रतापसिंह और जसवन्तसिंह नाम के उसके छ: बेटे थे। उसकी सात लड़कियों के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं पाया जाता गजसिंह इन छ: में सबसे वड़ा लड़का था। पिता की मृत्यु के बाद सन् 1620 ईसवी मे वह सिंहासन पर बैठा। उसका जन्म लाहौर में हुआ था। वहीं पर दरावखाँ बादशाह की तरफ से उसके पास पहुँचा और उसके सिर पर मुकुट रखकर उसके ललाट पर राजतिलक किया और उसकी कमर में तलवार वाँधी। मारवाड़ के सिंहासन पर बैठने के बाद अजमेर के पास मसूदा नगर भी उसको दिया गया। इन्हीं दिनों में वादशाह ने उसको दक्षिण की सूवेदारी दी और कई प्रकार से उसका सम्मान किया। गजसिंह अपने जीवन के आरम्भ से ही होनहार और सुयोग्य था। उसमें कई गुण थे। दक्षिण की सूवेदारी पाने के बाद उसने अपनी योग्यता और गम्भीरता के परिचय दिये। उसने कितने ही नगरों को जीतकर अपने अधिकार में कर लिया। खिड़कीगढ़, गोलकुण्डा, केलिया, परनाला, कंचनगढ़, आमेर और सितारा पर उसने इन्हीं दिनों में विजय पायी और ये सभी नगर मुगल राज्य में मिला लिये गये। इनको विजय करने में उसने अपने जिस रणकौशल का परिचय दिया था, उससे प्रसन्न होकर वादशाह ने उसको 'दलथम्भन' की उपधि दी थी। राजपूत राजकुमारियों के विवाहों का सम्बन्ध मुगलों में अकवर के साथ आरम्भ हुआ था। वह क्रम वरावर जारी रहा। जहाँगीर इस समय दिल्ली के सिंहासन पर । उसने भी दो राजकुमारियों के साथ विवाह किये थे। उनमें से राठौर राजकुमारी के गर्भ के परवेज नाम का एक लड़का पैदा हुआ। वह जहाँगीर का सबसे बड़ा लड़का था। इसलिये सिंहासन पर बैठने का वही अधिकारी था। आमेर की राजकुमारी से खुर्रम नाम का लड़का पैदा हुआ। वह परवेज से छोटा था। इन दोनों लड़कों में उत्तराधिकारी बनने के लिये झगड़ा पैदा हुआ। खुर्रम छोटा था। परन्तु वह परवेज की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान था । वह युद्ध में निपुण और साहसी था। उसमें लोकप्रियता अधिक थी। इसीलिये मुगल दरवार के अधिकांश लोग उससे प्रसन्न रहते थे और खुर्रम का समर्थन करते थे। सीसोदिया वंश के तेजस्वी भीमसिंह और प्रसिद्ध सेनापति महावत खाँ ने प्रसन्न होकर उसके पक्ष का समर्थन किया था। इन दोनों भाइयों के बीच उत्तराधिकार का झगड़ा बहुत बढ़ गया और खुर्रम ने परवेज को मार डालने की चेष्टा की। मारवाड़ के राजा गजसिंह का सम्मान बादशाह के दरवार में इन दिनों बढ़ा हुआ था। वह दक्षिण में खुर्रम के साथ था। अवसर पाकर सुल्तान खुर्रम ने उससे अपनी अभिलापा प्रकट की और उसने उससे अपने उद्देश्य में सहायता माँगी । गजसिंह पहले से ही परवेज का सम्मान करता था। इसलिये उसने खुर्रम की बातों पर ध्यान न दिया। उसकी उदासीनता देखकर खुर्रम को निराशा हुई। वह किसी प्रकार उत्तराधिकारी वनना चाहता था। 398
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३५२
दिखावट