पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३५१

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हुआ। उसके साथ सिरोही का राजा भी अपनी सेना के साथ था। शूरसिंह की सेना धुंधला नामक स्थान पर पहुँच गयी । वहीं पर शाहमुजफ्फर की फौज ने आकर युद्ध शुरू किया। इस लड़ाई में शूरसिंह के सैनिक अधिक मारे गये। लेकिन अन्त में शूरसिंह की ही विजय हुई। शाहमुजफ्फर पराजित हुआ। उसके अधिकार में अनेक नगर और ग्राम थे। वे सबके सव शूरसिंह के अधिकार में आ गये। शाहमुजफ्फर के नगरों को लूटकर शूरसिंह ने जो सम्पत्ति एकत्रित की, उसको उसने वादशाह के पास दिल्ली भेज दिया। शूरसिंह की इस विजय से अकवर वहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसको एक तलवार इनाम में देकर उसको वहुत सी भूमि दी। गुजरात की विजय में शूरसिंह को लूट में वहुत-सी सम्पत्ति मिली थी। उससे उसने जोधपुर नगर और उसके दुर्ग की उन्नति की। इसी सम्पति में से उसने मारवाड़ के छः भट्ट कवियों को पुरस्कार दिये । प्रत्येक पुरस्कार एक लाख पचास हजार रुपये का था। गुजरात की विजय से शूरसिंह की ख्याति राजस्थान में चारों तरफ फैल गयी। बादशाह अकबर ने उसकी शक्तियों से प्रभावित होकर और भी उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य उसे सौंपे। नर्मदा नदी के किनारे अमरबलेचा नाम का एक शूरवीर राजपूत राज्य करता था। उसने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की थी। इसलिये अकवर वादशाह ने उसको पराजित करने के लिये शूरसिंह को भेजा। वह अपने साथ तेरह हजार सवारों की सेना, दस बड़ी-बड़ी तोपें और वीस लड़ाकू हाथियों को लेकर रवाना हुआ और नर्मदा नदी के किनारे पहुँचकर उसने अमर वलेचा पर आक्रमण किया। उसका सामना करने के लिये अपने साथ पाँच हजार सवारों को लेकर अमर रवाना हुआ और मुगल सेना के सामने पहुँचकर उसने युद्ध आरम्भ किया। अमर के साथ बहुत छोटी सेना थी। फिर भी उसने शक्ति भर युद्ध किया, अन्त में उसकी पराजय हुई. और वह मारा गया। शूरसिंह ने उसके राज्य पर अधिकार कर लिया। इस विजय का समाचार सुनकर बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने शूरसिंह को नौबत भेजी और विजय में मिला हुआ राज्य उसने उसको दे दिया। इन्हीं दिनों में मुगल बादशाह की मृत्यु हो गयी। उसके बाद उसका बड़ा लड़का जहाँगीर मुगलों के सिंहासन पर बैठा । इस नवीन वादशाह के प्रति अपनी राजभक्ति प्रकट करने के लिये अनेक प्रकार की बहूमूल्य भेंटों के साथ अपने उत्तराधिकारी गजसिंह को लेकर शूरसिंह मुगल दरवार में गया। युवक गजसिंह को देखकर बादशाह जहाँगीर बहुत खुश हुआ। राजकुमार गजसिंह शूरसिंह का सुयोग्य लड़का था। बादशाह ने जालौर के युद्ध में उसकी वीरता का प्रमाण पाया था। इस समय उसको दरवार में देखकर वह बहुत प्रभावित हुआ और अपने दरवारियों के सामने उसकी वीरता और योग्यता की बड़ी देर तक प्रशंसा की। जालौर के युद्ध-क्षेत्र में गजसिंह ने अपने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया। उसकी उन्नति का आरम्भ वहीं से हुआ। उसने जालौर को गुजरात के बादशाह से जीतकर मुगल बादशाह को दे दिया था। इन्हीं दिनों में पठानों के साथ युद्ध करने के लिये वादशाह ने उसे आदेश दिया। गजसिंह ने युद्ध की तैयारी की। उसने जालन्धर पर - जिसका नाम जालौर है - आक्रमण किया। उस युद्ध में बहुत से राठौड़ शूरवीर मारे गये। लेकिन अन्त में सात हजार पठानों को मारकर उसने उस शहर को लुटवा लिया और लूट में मिली हुई सम्पत्ति उसने बादशाह के पास भेज दी। 1. वलेचा चौहान वंश की एक शाखा है। अमर उस राजपूत का नाम था। 397