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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३५७

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अध्याय-36 राजा जसवंत सिंह व औरंगजेब राजा गजसिंह की मृत्यु के बाद जसवन्तसिंह (यशवन्तसिंह) उसके सिंहासन पर बैठा। वह मेवाड़ की राजकुमारी से पैदा हुआ था। मेवाड़ का सीसोदिया वंश सम्पूर्ण राजस्थान में अत्यन्त गौरव के साथ देखा जाता था। राजस्थान के उस समय के राजाओं में जसवन्त सिंह को बहुत ख्याति मिली। वह एक सफल शासक था और उसके शासन में सभी प्रकार राज्य ने उन्नति की थी। उसके प्रोत्साहन से कई अच्छे ग्रन्थ लिखे गये थे। वह विचारशील, गम्भीर और रणकुशल राजपूत था। शूरसिंह और गजसिंह ने दक्षिणी भारत को प्रधानता दी थी। जसवंतसिंह ने भी उसी को महत्व दिया। वह दक्षिणी भारत को अपने अधिकार में लाना चाहता था। परन्तु उसका कोई भी कार्यक्रम मुगल बादशाह की स्वीकृति पर निर्भर था। बादशाह ने अपने अनुमान और अन्दाज से काम लिया। उसने जसवन्तसिंह को आरम्भ में गोड़वाना भेजा। वहाँ पर मुगलों की एक विशाल सेना औरंगजेव के नेतृत्व में पहले से मौजूद थी और उसकी सहायता बाईस सामन्त राजा अपनी-अपनी सेनाओं के साथ कर रहे थे। उन सब, के साथ रह कर जसवन्तसिंह को स्वतन्त्र रूप से अपने रण कौशल का परिचय देने के लिए कोई अवसर न था, फिर भी उसने वहाँ पर बड़ी योग्यता और वीरता से काम लिया। जीवन की इस परिस्थिति में जसवन्तसिंह ने बहुत दिन व्यतीत किये। सन् 1658 ईसवी में वादशाह शाहजहाँ भयानक रूप से बीमार पड़ा। उस समय उसकी तरफ से शासन का प्रवन्ध दारा करता रहा। वह जसवन्तसिंह की योग्यता और युद्ध की कुशलता से बहुत प्रसन्न हुआ। इसलिए उसने जसवन्तसिंह को पंजहजारी की उपाधि दी और उसको मालवा का अधिकारी बना कर उसने भेज दिया। वादशाह शाहजहाँ के वीमार पड़ते ही उसके लड़कों में राज्य का अधिकार प्राप्त करने के लिए विद्रोह पैदा हुआ। वादशाह की बीमारी जितनी ही भीषण होती जाती थी, उसके लड़कों के विद्रोह उतने ही भयानक होते जाते थे। लड़कों के इन झगड़ों को सुनकर बादशाह को असह्य कष्ट हुआ। वह रोग की जिस दशा में पड़ा हुआ था, उसमें वह कुछ कर सकने के योग्य न था। बुढ़ापे की असमर्थता के पहले वादशाह शाहजहाँ अपने लड़कों पर बड़ा गर्व करता था। परन्तु बुढ़ापे का आक्रमण होते ही उसका वह गर्व एक साथ अदृश्य हो गया और इस सांघातिक रोग में बीमार पड़ते ही उसके लड़कों ने विद्रोह का जो दृश्य उपस्थित किया, 403