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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३६३

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शिवाजी के निकल जाने पर औरंगजेब को जयसिंह पर सन्देह हुआ। उसने जयसिंह को हटाकर उसके स्थान पर फिर से जसवन्त सिंह को नियुक्त किया। जसवन्त सिंह ने इस बार मुअज्जम के साथ साजिश आरम्भ की। इस अवसर पर उसके कई कार्य देखकर औरंगजेब के मन में फिर से सन्देह उत्पन्न होने लगे और अन्त में उसने जसवन्तसिंह को उसके पद से हटा दिया। इसके साथ ही दिलेरखाँ को प्रधान सेनापति वनाकर वहाँ भेज दिया। वह औरंगाबाद पहुँच गया। उसकी वह रात उसके जीवन में आखिरी होती परन्तु एकाएक उसे सूचना मिली और वह तुरन्त वहाँ से चला गया। औरंगावाद से उसके चलते ही जसवन्तसिंह और मुअज्जम ने उसका पीछा किया। दिलेरखाँ - जसवन्तसिंह और मुअज्ज्म से भयभीत हो उठा। अपने प्राण वचाने के लिए वह नर्मदा नदी की तरफ भागा । जसवन्तसिंह और मुअज्जम वरावर उसका पीछा कर रहे थे। यह समाचार औरंगजेब को मिला। उसने तुरन्त जसवन्तसिंह को बुलाया और उसे गुजरात का अधिकारी बनाकर वहाँ भेज दिया। अहमदावाद पहुँचने पर उसे मालूम हुआ कि औरंगजेब ने उसे भयानक रूप से धोखा दिया है । सम्वत् 1726 सन् 1670 ईसवी में वह अपने राज्य में चला गया। औरंगजेब भयानक रूप से षड्यन्त्रकारी था। अब तक उसकी सम्पूर्ण सफलता का कारण उसके षड़यन्त्रों को छोड़कर और कुछ न था। उसने जसवन्त सिंह के साथ भी वही, किया। जसवन्त सिंह उसकी चालों से बहुत परिचित था और हृदय से उसके साथ ईर्षा रखता था। उसका यह भाव औरंगजेब से छिपा न था। वह जसवन्त सिंह से काम लेता था परन्तु उस पर विश्वास न करता था। इस प्रकार दोनों के बीच एक गम्भीर अविश्वास चल रहा था। जसवन्त सिंह से बदला लेने के लिये औरंगजेब ने अनेक प्रकार के प्रयल अब तक किये थे। परन्तु उसे सफलता न मिली थी। फिर भी वह अपनी कोशिश में लगा रहा। इन्हीं दिनों में अफगानों ने कावुल में विद्रोह कर दिया। इसका समाचार पाते ही औरंगजेब ने जसवन्त सिंह को बुलाया और बड़ी प्रशंसा के साथ काबुल का विद्रोह दमन करने के लिये उसे जाने का आदेश दिया। जसवन्त सिंह कावुल जाने की तैयारी करने लगा। उसने अपने बड़े लड़के पृथ्वीसिंह को राज्य का अधिकार सौंप दिया और मारवाड़ के शूरवीर राठौड़ों को लेकर वह कावुल की तरफ रवाना हुआ,जहाँ से लौटकर फिर वह न आया । जसवन्त सिंह के कावुल चले जाने पर औरंगजेब ने उसके उत्तराधिकारी पृथ्वीसिंह को राज दरबार में आने के लिए सन्देश भेजा। उस सन्देश को पाकर पृथ्वीसिंह औरंगजेब के पास आया। बादशाह औरंगजेब ने उसका सम्मान किया और अपने समीप उसे विठाया। एक दिन वह औरंगजेब के दरबार में पहुँचा और उसने वादशाह को सलाम किया। औरंगजेब ने हाथ जोड़े हुए पृथ्वीराज को खड़े देख कर अपने समीप बुलाया और सावधानी के साथ उसके दोनों हाथों को पकड़कर गम्भीरता के साथ कहा- “राठौड़, मैंने सुना है तुम्हारे हाथों में वही बल है, जो कि तुम्हारे पिता जसवन्त सिंह के हाथों में है। अच्छा यह बताओ कि तुम क्या कर सकते हो।' औरंगजेव की इस बात को सुनकर पृथ्वीसिंह ने राजपूतों के स्वाभाविक गौरव को स्मरण करते हुए उत्तर दिया-“ईश्वर आपके गौरव की रक्षा करे। जव साधारण तौर पर राजा प्रजा को आश्रय देता है तो प्रजा की शक्तियाँ विशाल हो जाती हैं। आप ने तो आज मेरे दोनों हाथों को पकड़ा है। इससे मुझे मालूम होता है कि मैं अब सम्पूर्ण पृथ्वी को विजय कर सकता हूँ।" 409