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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३६४

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यह कहकर पृथ्वीसिंह चुप हो गया। इस समय उसके मनोभावों में अद्भुत शक्ति का संचार हो रहा था। वह बार-बार अपने गम्भीर नेत्रों से बादशाह की तरफ देखता था। इसी समय औरंगजेब ने कहा- 'यह दूसरा कुट्टन मालूम होता है।' 1 जसवन्त सिंह का बेटा पृथ्वीसिंह अभी युवक था। बादशाह के बुलाने पर वह बड़ी प्रसन्नता के साथ दरबार में आया था। उसे इस बात का गर्व था कि उसका पिता जसवन्त सिंह बादशाह की तरफ से अफगानों के साथ काबुल में युद्ध करने गया है। उसका अन्त:करण निर्मल था। लेकिन औरंगजेब ने अपनी जिस कुत्सित भावना से प्रेरित होकर उसके साथ यह बातचीत की थी, युवा हृदय पृथ्वीसिंह उसको समझ न सका था। दरबार की पुरानी रीति के अनुसार बादशाह की तरफ से पृथ्वी को खिलअत दी गयी। उसे लेते हुए पृथ्वीसिंह ने बादशाह को सलाम किया और उसे पहनकर वह जब राज दरबार से अपने नगर को जाने लगा तो उसने बादशाह को फिर एक बार सलाम किया। राजकुमार पृथ्वीसिंह जैसे ही अपने नगर में पहुँचा, उसके हृदय में एक साथ भयानक पीड़ा उत्पन्न हुई। उसका मस्तक चकराने लगा और थोड़ी ही देर में उसका सम्पूर्ण शरीर शक्तिहीन हो गया। लोगों के देखते-देखते उसके प्राणों का अन्त हो गया। मुगल दरबार में पृथ्वीसिंह को जो खिलअत दी गयी थी, उसमें विष का प्रयोग किया गया था। उसका प्रभाव कुछ समय के बाद हुआ। उस खिलअत को पहनकर पृथ्वीसिंह औरंगजेब से विदा हुआ और अपने नगर पहुँचते-पहुँचते उसके प्राणों का अन्त हो गया।2 राजकुमार पृथ्वीसिंह जसवन्त सिंह का बड़ा लड़का था। वह योग्य, प्रतिभाशाली और पराक्रमी था। जसवन्त सिंह पृथ्वीसिंह से बड़ी-बड़ी आशायें रखता था। काबुल जाने के पहले उसने इसी पृथ्वीराज को राज्य का प्रबन्ध सौंपा था। उसे क्या मालूम था कि मेरे जाने के बाद औरंगजेब मेरे पुत्र पृथ्वीराज के साथ इस प्रकार विश्वासघात करेगा। जसवन्त सिंह ने हिन्दूकुश की तराई में राजकुमार पृथ्वीसिंह की इस प्रकार मृत्यु का समाचार सुना । उसके दो लड़के और थे। जगतसिंह और दलथम्मन सिंह । वे भी जीवित न रह सके । जसवन्तसिंह का अब और कौन था, जिसका वह भरोसा करता और जिसकी आशा पर वह जीवित रहता । पृथ्वीसिंह की मृत्यु के साथ-साथ उसकी आशाओं का दीपक बुझ गया। उसे अब संसार में अंधकार दिखायी देने लगा। प्यारे पुत्र पृथ्वी सिंह की इस प्रकार मृत्यु के समाचार से जो आघात पहुँचा, उसे वह सहन न कर सका और सम्वत् 1737 सन् 1681 ईसवी में उसने परलोक की यात्रा की । उसकी मृत्यु के कुछ महीनों के पश्चात् शिवाजी के जीवन का भी अन्त हुआ। औरंगजेब के यही दो शत्रु थे। उन दोनों की मृत्यु से औरंगजेब के जीवन का मार्ग साफ हो गया। एक भट्ट ग्रन्थ में जसवन्त सिंह की मृत्यु का उल्लेख करते हुए लिखा है कि “जसवन्तसिंह जब तक जीवित रहा, औरंगजेब एक दिन भी सुख की नींद सो नहीं सका। उसके मरते ही औरंगजेब की सारी कठिनाइयों का अन्त हो गया।" जसवन्त सिंह ने बयालीस वर्ष राज्य किया। राजस्थान में जितने भी गौरवशाली राज्य हुए, उन सब में जसवन्त सिंह को सम्मानपूर्ण स्थान दिया जा सकता है। वह एक औरंगजेब जसवन्त सिंह को कुट्टन कहकर सम्बोधित किया करता था। राजपूतों के इतिहास में इस प्रकार के और भी उदाहरण पाये जाते हैं। जिसमें वस्त्रों को विषाक्त बनाकर पहनने वालों का सर्वनाश किया गया था। शत्रु को मारने के लिए इस प्रकार विष के प्रयोग प्राचीन यूरोप में भी किये जाते थे। उनका वर्णन हरक्यूलस ने अपने लेखों में किया है। उसने स्वीकार किया है कि पहनने के किसी वस्त्र में विष का प्रयोग करके शत्रु का सर्वनाश करने की रीतियाँ प्राचीन यूरोप में प्रचलित 1. थीं। 410