पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३६५

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स्वाभिमानी राजपूत था। मुगलों की अधीनता में रहने पर भी उसने अपने गौरव को कभी भुलाया न था । मुगलों की शक्तियों को महान समझते हुए भी सदा उसने स्वाभिमान की रक्षा की थी। उसने जीवन भर औरंगजेब की जड़ काटने का काम किया। जसवन्त सिंह औरंगजेब से घृणा करता था। लेकिन उसकी यह घृणा समस्त मुगलों के प्रति नहीं थी। उन दिनों शाहजहाँ दिल्ली के सिंहासन पर था। यदि जसवन्त सिंह की घृणा का कारण राजनीतिक होता तो उसको मुगल बादशाह शाहजहाँ के साथ घृणा करना चाहिए था। लेकिन उसके साथ जसवन्त सिंह ने सदा अपनी राजभक्ति का परिचय दिया और उसके सम्मान की रक्षा में उसने फतेहाबाद में औरंगजेब के साथ युद्ध किया। उस युद्ध में यदि मुगल सेना और उसके सेनापति कासिम खां ने विश्वासघात न किया होता तो युद्ध में - जैसा कि उस समय के इतिहासकारों का विश्वास है - जसवन्त सिंह की विजय हुई होती। जसवन्त सिंह स्वभावत: शाहजहाँ के साथ प्रेम और औरंगजेव के साथ घृणा करता था। वादशाह के बड़े लड़के दारा के साथ भी उसकी मित्रता थी। लेकिन दारा स्वयं जसवन्त सिंह की मित्रता के योग्य न था। वह अयोग्य और अकर्मण्य था। इसीलिए जसवन्त सिंह और राजस्थान के अनेक दूसरे राजाओं की सहानुभूति और सहायता मिलने पर भी वह अपनी और बादशाह शाहजहाँ की रक्षा न कर सका। शाहजादा शुजा के साथ औरंगजेब का युद्ध आरंभ हुआ था, उस समय भी दारा को संभल जाने का अवसर था । उस मौके का लाभ उठाने के सम्बंध में जसवंत सिंह ने दारा को परामर्श भी दिया था। परन्तु दारा कुछ न कर सका । जसवन्त सिंह किसी भी अवस्था में शाहजहाँ का उद्धार करना चाहता था। इसका साधन दारा के सिवा और कुछ नहीं था। इसीलिए जसवन्त सिंह ने बादशाह की तरफ से दारा को औरंगजेब के सामने खड़ा किया था। यदि वह अयोग्य और अकर्मण्य न होता तो बादशाह शाहजहाँ के सिंहासन से उतारे जाने की नौबत न आती और दारा का भी पतन न होता । शाहजहाँ और दारा के कारण ही औरंगजेब के साथ जसवन्त सिंह की शत्रुता बढ़ी थी। औरंगजेव भली प्रकार इस बात को जानता था कि वादशाह और दारा का सहायक प्रधान रूप से जसवन्त सिंह है। बादशाह को सिंहासन से उतारने के बाद औरंगजेब ने जो पत्र जसवन्त सिंह को भेजा था, उसमें इस बात का साफ-साफ जिक्र किया था और उसने जसवन्त सिंह को गुजरात का अधिकारी इसी शर्त पर बनाया था कि वह किसी भी दशा में दारा का साथ न दे। शक्तियों के अभाव में और दारा की अकर्मण्यता में जसवन्त सिंह को औरंगजेब की लिखी हुई शर्त को स्वीकार करना पड़ा था। इसके वाद जसवन्त सिंह को शिवाजी के साथ युद्ध करने के लिए औरंगजेब ने दक्षिण भेज दिया। वह दारा से सभी प्रकार हताश हो चुका था और शाहजहाँ सिंहासन से उतारा जा चुका था, फिर भी उसके हृदय में पीड़ा थी। उसके प्रतिकार के लिये वह औरंगजेब का हृदय से पक्षपाती न था। इसके परिणाम स्वरूप दक्षिण में पहुँच कर उसने शिवाजी के साथ एक जाल तैयार किया। औरंगजेब का सेनापति दक्षिण में युद्ध करते हुए मारा गया। उससे भी उसको शान्ति न मिली। औरंगजेब ने दिलेर खाँ को प्रधान सेनापति बनाकर वहाँ भेजा। उस समय उसने दिलेर खाँ के विरुद्ध मुअज्जम को प्रोत्साहित किया। औरंगजेब से जसवन्त सिंह की ये चालें अप्रकट न रह सकी। परन्तु वह खुल कर जसवन्त सिंह को अपना शत्रु नहीं बनाना चाहता था। इसलिये वह राजनीति से काम लेता रहा और जसवन्त सिंह के सर्वनाश की वह चेष्टा करता रहा। जसवन्तसिंह की जो भीतरी ।