पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३७३

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इस विजय से परिहार वंश के राजपूतों को बहुत प्रोत्साहन मिला। रत्नसिंह नाम के एक राठौड़ ने जोधपुर को जीतकर अपने अधिकार में लाने की चेष्टा की[१] अमर सिंह अपने पिता के द्वारा राज्याधिकार से वंचित किया गया था। औरंगजेब ने रत्नसिंह को जोधपुर विजय करने के लिए तैयार किया था परन्तु उसको सफलता न मिली। राठौड़ सरदारों ने अजीत का पक्ष लेकर उसके साथ युद्ध किया। उस युद्ध में रलसिंह की पराजय हुई। वह युद्ध से भाग कर नागौर के दुर्ग में पहुँच गया। उसके बाद राठौड़ सरदारों ने ईदा वंशजों पर आक्रमण किया और उन्हें मन्डोर से निकाल दिया।

औरंगजेब ने रत्नसिंह को राठौड़ों से लड़ाने की चेष्टा की थी। परन्तु जब उसको सफलता न मिली तो उसने स्वयं राठौड़ सरदारों पर आक्रमण करने की तैयारी की और एक विशाल सेना लेकर वह मारवाड़ की तरफ रवाना हुआ। मुगल सेना ने जोधपुर पहुँच कर उस नगर को घेर लिया। मुगलों की सेना इतनी बड़ी थी कि मारवाड़ के राठौड़ उसके आक्रमण को रोक न सके। औरंगजेब ने जोधपुर को अपने अधिकार में ले लिया। इसके बाद मुगल सेना ने वहाँ पर लूट मार और भयानक अत्याचार किये। वहाँ की सम्पत्ति को लूट कर मुगल सेना ने मेड़ता, डीडवाना और रोहत नामक नगरों पर आक्रमण किया,

औरंगजेब की मुगल सेना ने एक-एक करके मारवाड़ के सभी नगरों पर अधिकार कर लिया। वहाँ के गाँवों, कस्बों और नगरों को लूटकर उनमें आग लगा दी गई। वहाँ के मंदिर और स्तम्भ गिरा दिये गये। देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ डाली और अगणित हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का कार्य किया गया। मंदिरों के स्थानों पर मस्जिदें बनवाई गयीं। उसके बाद औरंगजेब अपनी फौज के साथ राजधानी लौट गया। मेवाड़ का राणा राजसिंह मारवाड़ में किये गये मुगलों के अत्याचारों को सहन न कर सका। उसने राठौड़ों को मिला कर मुगलों से युद्ध करने की तैयारी की। उसके साथ संग्राम करने के लिए औरंगजेब ने सत्तर हजार सैनिकों के साथ तहव्वरखाँ को भेजा और उसको रवाना करने के पश्चात वह स्वयं मुगलों की एक बड़ी फौज लेकर अजमेर की तरफ चला। उसके साथ युद्ध करने के लिए मेड़ता के सामन्तों ने तैयारी की और अपने सैनिकों को लेकर वे पुष्कर के सामीप पहुँच गये। वहाँ पर वाराह का एक प्रसिद्ध मंदिर था। उस मंदिर के सामने मेड़ता की सेना ने मुगलों के साथ युद्ध आरम्भ किया। उनको देखते हुए मुगलों की सेना बहुत अधिक थी। यह युद्ध सम्वत् 1736 के भादो महीने में हुआ। उसमें मेड़ता के सैनिक और सरदार मारे गये।

मेड़ता के युद्ध में विजयी होकर तहब्बर खाँ अपनी फौज के साथ आगे बढ़ा। मरुधर के निवासी घबरा कर पहाड़ों की तरफ भागने लगे। तहब्बर खाँ की फौज का सामना करने के लिए रूपा और कूँपा नाम के दोनों भाइयों ने युद्ध की तैयारी की और वे दोनों बड़ी तेजी के साथ गुडा नाम के स्थान पर पहुँच गये। मुगल सेनापति के साथ बहुत बड़ी फौज थी इसलिए अपने सैनिकों के साथ दोनों भाई मारे गये।

औरंगजेब इन दिनों राजपूतों के सर्वनाश में लगा हुआ था। उसकी शक्तियाँ विशाल थीं। इसलिये वह भयानक अत्याचार करने में भी किसी प्रकार का सोच विचार न करता था। अजयमेरु दुर्ग में पाँच दिन तक रह कर उसने चित्तौड़ का रास्ता पकड़ा और वहाँ पहुँचते ही उसने रोमान्चकारी अत्याचार आरम्भ कर दिये। राणा ने शिशु राजकुमार की रक्षा की और राठौड़ों के युद्ध में सीसोदिया सेना आगे रही थी।

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  1. कुछ लेखकों का कहना है कि रत्नसिंह गलत नाम है। उसका सही नाम रायसिंह है। वह राव अमर सिंह का बेटा था और जसवंत सिंह का भतीजा था।