सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

औरंगजेब के साथ बहुत बड़ी फौज देखकर चित्तौड़ के लोगों ने शिशु अजीत को बचाने की कोशिश की। उसे एक गुप्त स्थान में छिपा कर रखा गया। औरंगजेब अपनी फौज के साथ देवाड़ी के निकट आ गया। उसका सामना करने के लिए कुम्भा, उग्रसेन और ऊदा आदि कई राठौड़ शूरवीर अपनी सेना के साथ पहाड़ी मार्ग पर पहुँच गये। राठौड़ों ने मुगलों को रोकने की कोशिश की। औरंगजेब ने उस पहाड़ी रास्ते से होकर जब उदयपुर में आक्रमण किया, तो उस समय आजम चित्तौड़ में था। इसी समय औरंगजेब को समाचार मिला कि दुर्गादास ने जालौर राज्य पर आक्रमण किया है। इसको सुनते ही वह अजमेर की तरफ लौट पड़ा। वहाँ जाने के पहले उसने मुकर्रम खाँ को आज्ञा दी कि वह जालौर के युद्ध में बिहारी की सहायता करे।

दुर्गादास उन दिनों में युद्ध का कर वसूल कर रहा था। वह जोधपुर पहुँचा। इन दिनों में औरंगजेब भीषण रूप से धार्मिक पक्षपात कर रहा था और हिन्दुओं के विरुद्ध उसके हृदय में आग जल रही थी। उसने इन दिनों में बार-बार प्रतिज्ञा की कि इस्लाम को छोड़कर इस देश में दूसरा कोई मजहब न रखूँगा। उसने शाहजादा अकबर को एक मुगल सेना देकर तहब्बरखाँ के पास भेज दिया। इन दिनों में मुगल फौजें चारों तरफ लूट मार कर रही थीं और उसके बाद उसके सैनिक आग लगाकर ग्रामों और नगरों का सर्वनाश कर रहे थे। ईदा लोगों ने जोधपुर में अधिकार कर लिया। परन्तु कुम्पावत लोगों ने खत्तापुर में उनका सामना किया और भयानक रूप से उनका नाश किया। मुरधर का राजा एक बार फिर राव की पदवी से वंचित हुआ। यद्यपि बादशाह चाहता था कि परिहार लोग मारवाड़ पर अधिकार करें। लेकिन उसका यह इरादा सम्वत् 1736 के जेठ महीने की त्रयोदशी को बेकार हो गया।

इन दिनों में राठौड़ों ने अरावली पहाड़ पर आश्रय लिया। जहाँ पर वे जाकर रहे थे, वह स्थान अत्यन्त कठोर और जनहीन था। वहाँ पर पहुँचकर राठौड़ों ने अपना सुदृढ़ संगठन किया। वे अचानक अपने पहाड़ी स्थानों से निकलकर मुसलमानों पर आक्रमण करते और उनको मार काटकर एवम् लूटकर फिर अपने स्थानों को भाग जाते। उनके लगातार ऐसा करने से औरंगजेब की परेशानियाँ बहुत बढ़ गयीं। अनेक उपाय करने पर भी उन आक्रमणकारी राठौड़ों से वह मुसलमानों की रक्षा न कर सका।

इस प्रकार के आक्रमणों के द्वारा राठौडों को प्रोत्साहन मिल रहा था। उन्होंने अनेक बार एकत्रित होकर मुगलों का विनाश करने के लिये प्रतिज्ञायें कीं। इन्हीं दिनों में उनके एक दल ने जालौर पर आक्रमण किया और उनका दूसरा दल सिवाना पर आक्रमण करने के लिये तैयार हुआ। इसका फल यह हुआ कि औरंगजेब को राणा के साथ युद्ध बन्द कर देना पड़ा और उसने अपनी विशाल सेना मारवाड़ भेज दी।

राणा राजसिंह ने अजीत को अपने यहाँ आश्रय देकर औरंगजेब के साथ आग भड़कायी थी। राणा ने अपने लड़के भीम को सीसोदिया सेना का भार सौंपा और उसे राठौड़ों की सहायता के लिये भेज दिया। उन दिनों में इन्द्रभानु और दुर्गादास राठौड़ से के साथ गोडवाडा में मौजूद थे। भीमसिंह वहाँ पहुँच कर उनके साथ मिल गया। शाहजादा अकबर और सेनापति तहब्बर खाँ मुगल फौज को लेकर उनके मुकाबले के लिए पहुँचे। नाडोल नगर में दोनों तरफ से भयानक युद्ध आरम्भ हुआ। इस संग्राम में दोनों तरफ के बहुत से आदमी मारे गये। राजकुमार भीम युद्ध करते हुये मारा गया। उसकी सेना ने राठौड़ों के साथ मिलकर मुगलों से भीषण युद्ध किया। युद्ध की परिस्थिति लगातार भयानक होती गयी। इन्द्रभानु युद्ध करते हुए ऊदावत जैता के साथ संग्राम भूमि में गिरा और उसके प्राणों का अन्त हो गया। सोनग और दुर्गादास अन्त तक युद्ध करते रहे।

420