उतारने के लिए आ रहा है?" इस प्रकार की अनेक बातें सोच कर उसने बड़ी दूरदर्शिता से काम लिया और सेनापति तहब्बर खाँ को सम्पूर्ण भार देकर वह अपनी बेगमों के बीच में चला गया। वह सोचने लगा, "सब भाग्य के अधीन है। मनुष्य भाग्य का खिलौना होता है। भाग्य हम सब को डोरे में बाँधकर नचाता है और हमको नाचना पड़ता है।"
औरंगजेब अपने हृदय को शान्ति देने के लिए अनेक प्रकार की बातें सोचने लगा। वह स्वभाव से पड़यन्त्रकारी था और सच्चाई की अपेक्षा वह पड़यन्त्रों पर अधिक विश्वास करता था। भयानक कठिनाइयों के समय उसने षड़यन्त्रों के द्वारा अपने जीवन में सफलता पायी थी। उसने इस समय भी उन्हीं का आश्रय लिया और तहब्बर खाँ के साथ उसने साजिश शुरू की। औरंगजेब ने अत्यन्त गुप्त रूप से उसके पास सन्देश भेजा कि यदि वह शाहजादा अकबर को हमारे सुपुर्द कर सके तो उसे बहुत बड़ा पुरस्कार मिलेगा।
तहब्बर खाँ ने उस सन्देश पर विश्वास कर लिया और उसने रात में छिपे तौर से बादशाह से मुलाकात की और उसके बाद उसने राठौड़ को एक पत्र भेजा। उसमें उसने लिखा-"आप लोगों के साथ जो अकबर की सन्धि हुई थी, उसमें मैं गाँठ के रूप में था। जिस बाँध ने जल के दो भाग कर दिये थे, वह बाँध टूट गया है। बाप और बेटा मिलकर एक हो गये हैं। इस दशा में सन्धि की समस्त बातें अब खत्म हो जाती हैं और मैं उम्मीद करता हूँ कि आप लोग लौट कर चले जायेंगे।"
तहब्बर खाँ ने यह पत्र लिखकर तैयार किया। उसने उस पर अपनी मुहर लगायी और दूत के द्वारा उस पत्र को राठौड़ों के पास भेज कर वह औरंगजेब के पास पहुँचने के लिये रवाना हुआ। औरंगजेब का काम पूरा हो चुका था। उसने समझ लिया कि इस प्रकार के पत्र से अकबर के साथ राठौड़ों का जो सम्बन्ध कायम हुआ है, वह खत्म हो जायेगा। उसने लम्बा पुरस्कार देने के वादे पर यह काम सेनापति तहब्बर खाँ से लिया था। सेनापति के पहुँचने के पहले ही औरंगजेब ने सोच डालाः "मैंने अपनी मर्जी के मुताबिक पत्र लिखवाकर तहब्बर खाँ से राठौड़ों के पास भिजवा दिया है। शाहजादे के साथ राठौड़ों की सन्धि का बहुत कुछ कारण यह सेनापति तहब्बर खाँ था इसलिए इसको पुरस्कार तो मिलना ही चाहिए। पुरस्कार लेने के लिए ही इस समय तहब्बर खाँ औरंगजेब के पास गया था। उसके सामने आते ही औरंगजेब के एक अधिकारी ने अपनी तलवार से उसकी गरदन को काट कर जमीन पर गिरा दिया। उसके बाद ही आधी रात को तहब्बर खाँ का पत्र लेकर दूत राठौड़ों के पास पहुँचा। उसने वह पत्र उनको दे दिया और साथ ही यह भी बताया कि तहब्बर खाँ मारा गया।
उस पत्र और समाचार से राठौड़ आश्चर्यचकित हो उठे। शाहजादा अकबर का डेरा राठौड़ों के डेरों से बहुत दूर न था। इसीलिए वह समाचार शाहजादा के डेरे में भी फैल गया। उस पत्र और समाचार से एक साथ गड़बड़ी पैदा हुई। राठौड़ों ने अकबर से मिलकर कुछ समझने की चेष्टा न की और वे तुरन्त अपने डेरे को उठा कर अकबर के डेरे से बीस मील के फासले पर चले गये।
राठौड़ों और शाहजादे अकबर के डेरे एक दूसरे के करीब थे। लेकिन राठौड़ों ने उस पत्र के सम्बन्ध में कुछ भी जाँच न की। उस पर उन्होंने एक साथ विश्वास कर लिया और तुरन्त वे वहाँ से कुछ दूरी पर चले गये। राठौड़ों के चले जाने के बाद शाहजादे की फौज भी आँधी में उड़ने लगी। शाहजादा अकबर अपनी बेगम के साथ था। उसके आने के पहले ही उसकी फौज अपना डेरा छोड़कर उस स्थान से रवाना हो गयी।
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