पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३८२

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संघर्ष आरम्भ हुए। सुजानसिंह के मारे जाने पर सेनापति संग्रामसिंह युद्ध के लिये तैयार हुआ।[१]

संग्रामसिंह उन दिनों में मनसब के पद पर था। उसको एक जागीर मिली हुई थी। उसने युद्ध की तैयारी की। शूरवीर राठौर उसके झण्डे के नीचे आकर एकत्रित हुए। संग्रामसिंह ने अपनी सेना लेकर शिवाँणची पर आक्रमण किया और उसके साथ-साथ बालोतरा तथा पंचभद्रा में लूटमार की।

उदयभानु जोधावत सेना के साथ भद्राजून के सम्मुख पहुँचा और उसने वहाँ पर आक्रमण करके शत्रुओं की धन-दौलत लूटकर उनके खाने-पीने की सामग्री अपने अधिकार में कर ली। वहाँ के मुसलमानों ने उनका सामना किया। परन्तु वे लड़ न सके और जोधावत सैनिकों ने कई बार उनको पराजित किया।

पुरदिल खाँ ने सिवाना और नाहर खाँ ने मेवाटी तथा कुकारी पर अधिकार कर लिया था। इसलिये उन पर आक्रमण करने के लिए चम्पावत लोग मुकुलदर नामक स्थान पर इकट्ठा हुये। उसी अवसर पर उन्हें समाचार मिला कि नूरअली, अशानी खानदान की स्त्रियों को अपहरण करके ले गया है। यह सुनते की रतनसिंह राठौड़ सेना को लेकर रवाना हुआ। उसने कुनारी नामक स्थान पर पहुँच कर पुरदिल खाँ पर आक्रमण किया। पुरदिल खाँ के साथ छः सौ लड़ाकू सैनिक थे। उनमें से बहुत से सैनिकों के साथ पुरदिल खाँ मारा गया। उस लड़ाई में राठौड़ों के केवल सौ सैनिक मारे गये। इस पराजय को सुनते ही मिरजा दोनों अपहृत स्त्रियों को लेकर थोडा की तरफ भागा और कोचाल में पहुँचकर उसने मुकाम किया।

इस समाचार को सुनकर आसकर्ण के पुत्र सबलसिंह ने अपनी सेना को तैयार किया और अफीम खाकर मुस्लिम सेनापति के साथ युद्ध करने के लिये वह रवाना हुआ। दोनों तरफ से मारकाट आरम्भ हुई। उस लड़ाई में भाटी सरदार मारा गया।

धीरे-धीरे सम्वत् 1741 भी समाप्त हो गया। इन दिनों में हिन्दू-मुसलमानों के जो संघर्ष बढ़े थे, उनमें किसी प्रकार कमी न आई। इसके पश्चात् सम्वत् 1742 आरम्भ हुआ। इस वर्ष के आरम्भ में लाखावतों और आशावतों ने साँभर पहुँच कर मुसलमानों के साथ युद्ध करने की तैयारियाँ कीं। कुछ दूसरे सामन्तों ने गोडवाड से निकल कर अजमेर के मुसलमानों पर आक्रमण किया और वहाँ से चलकर वे मेड़ता के मैदानों में पहुँच गये और वहाँ के मुसलमानों पर उन्होंने आक्रमण किया। दोनों ओर से भयानक संघर्ष हुआ।

इस लड़ाई में राठौड़ों की पराजय हुई। विजयी मुसलमानों ने राठौड़ सेना को युद्ध क्षेत्र से भगा दिया। संग्रामसिंह असफल होने के बाद फिर युद्ध की तैयारी करने लगा। अपनी बची हुई सेना को लेकर वह रवाना हुआ और जोधपुर के गाँवों में पहुँच कर उसने आग लगवा दी। इसके बाद दूवाड़ा नगर में वह अपनी सेना के साथ पहुँच गया। वहाँ से उसने जालौर पर आक्रमण किया। वहाँ का मुस्लिम अधिकारी घबरा उठा। परन्तु उस पर कोई अत्याचार नहीं किया गया। उसको आत्मसमर्पण करने के लिये विवश किया गया और इसके लिये उसे सम्मानपूर्वक अवसर दिया गया। इस प्रकार सम्वत् 1742 भी समाप्त हो गया।

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  1. संग्रामसिंह जुझारसिंह का बेटा था। वह मुगल बादशाह के यहाँ नौकर था। वह नौकरी छोड़कर राठौड़ों के साथ आकर मिल गया था।