अजीत सिंह व औरंगजेब के षड़यंत्र अध्याय-38 राजकुमार अजीतु अभी तक आबू पर्वत के किसी एक गुप्त स्थान में था। दुर्गादास ने अत्यन्त विश्वासी राठौड़ सरदारों को उसके संरक्षण और पालन-पोषण का भार इन दिनों मे दे रखा था। यों तो मारवाड़ में बहुतों को यह मालूम हो चुका था कि जसवन्तसिंह का अंतिम वेटा अजीत जीवित है। परन्तु वह कहाँ है और उसका सरंक्षण किस प्रकार हो रहा है, यह सब ठीक तौर पर किसी को मालूम न था। सम्वत् 1743 के आरम्भ से ही मारवाड़ में राजकुमार अजीत की चर्चा अधिक होने लगी। चम्पावत, कुम्पावत, ऊदावत, मेडतिया, जोधावत, करमसोत और मारवाड़ राज्य के दूसरे सामन्त तथा सरदार राजकुमार अजीत को देखने के लिये अधीर होने लगे। उन सब ने मिलकर खींची वंशीय मुकुन्द के पास दूत के द्वारा सन्देश भेजा कि - "हम सब एक बार राजकुमार अजीत को देखना चाहते हैं।' सन्देश को पाकर मुकुन्द ने दूत को उत्तर दिया - “जिसने विश्वास करके राजकुमार को मुझे सौंपा है, वह इस समय दक्षिण में है।" सरदारों को इस उत्तर से सन्तोष न मिला। उन सव लोगों ने निश्चय किया कि हम लोग एक वार राजकुमार के दर्शन करेंगे। इसी आधार पर मुकुन्द के पास सन्देशों का आना-जाना आरम्भ हुआ। अन्त में सरदारों ने उसके पास सन्देश भेजा- “जब तक हम राजकुमार को देख न लेंगे, हम सवको सन्तोष न मिलेगा और न हम सबको खाना-पीना अच्छा लगेगा।" सरदारों के इस आग्रह को मुकुन्द टाल न सका। उनकी बात उसे स्वीकार करनी पड़ी। सरदारों और मुकुन्द के बीच इस समय जो निर्णय हुआ, उसके अनुसार उत्सुक सामन्त और सरदार आवू पहाड़ को रवाना हुये । कोटा राज्य का हाड़ा राजा दुर्जनशाल भी उनके साथ चला। उसके साथ दो हजार सैनिक सवार थे। सम्वत् 1743 के चैत्र के महीने की अन्तिम तिथि को सामन्तों और सरदारों ने राजकुमार अजीत के दर्शन किये। उस समय आबू पर्वत के उस रमणीक स्थान पर, जहाँ पर राजकुमार अजीत का अब तक पालन पोषण हुआ था, उदयसिंह, संग्रामसिंह, विजय पाल, तेजसिंह, मुकुन्दसिंह और नाहरसिंह आदि चम्पावत और रामसिंह, जगतसिंह और सामन्तसिंह आदि कुम्पावत सरदार उपस्थित थे। उनके अतिरिक्त पुरोहित खींची-मुकुन्द, परिहार और जैनश्रवक यती ज्ञान विजय भी वहाँ पर . मौजूद थे। 429
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