पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३८५

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की। राजकुमार अजित को पंचहजारी की उपाधि देकर वादशाह ने उसे मोहम्मदशाह की अधीनता में रखना चाहा। किन्तु मोहम्मदशाह औरंगजेब के इस पड़यंत्र का सम्मान प्राप्त न कर सका। वह जोधपुर की तरफ रवाना हुआ। रास्ते में बीमार हो जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। इन्हीं दिनों में इनायतखाँ के स्थान पर सुजावतखाँ मारवाड़ का सेनापति बनाया गया। राठौड़ लोग अपने राज्य में मुगलों का आधिपत्य किसी प्रकार सहन करने के लिए तैयार नहीं थे। इसलिये वे हाड़ा लोगों के साथ मिल गये और दोनो की मिली हुई सेनाओं ने मारवाड़ को स्वतन्त्र करने के लिये मुगलों पर आक्रमण किया ! मालपुरा और पुरमाँडल में जो मुस्लिम सेना थी, उस पर आक्रमण करके राजपूतों ने उसे तितर-वितर कर दिया। पुरमांडल के दुर्ग को घेरने के समय हाड़ा राजा की एक गोले से मृत्यु हो गयी। विजय प्राप्त करने पर राजपूत आठ हजार मोहरें सेना के खर्च के लिये लेकर मारवाड़ की तरफ लौट पड़े। राज्य के कई अधिकारी अजीत की सहायता करने के लिये धन एकत्रित करने में लग गये। इस प्रकार सम्वत् 1744 भी बीत गया। सम्वत् 1745 के आरम्भ में सुजावतखाँ ने मारवाड़ पर कर लगाने का निश्चय किया। इस कर में जो धन एकत्रित होगा, उसका चौथाई मुआवतखाँ को दिया जाना निश्चित हुआ। इसी मौके पर इनायतखाँ का लड़का जोधपुर छोड़कर दिल्ली की तरफ रवाना हुआ। जिस समय वह रेनवाल नामक स्थान पर पहुँचा। जोधा हरनाथ ने उस पर आक्रमण किया और उसकी स्त्रियों के साथ-साथ उसकी सम्पूर्ण सम्पत्ति और सामग्री छीन थी। इस समाचार को सुनकर सुजावतखाँ अपनी सेना के साथ अजमेर से रवाना हुआ। चम्पावत मुकुन्दास ने उस पर आक्रमण किया और उसका सब कुछ छीन लिया। सम्वत् 1747 में सफीखाँ अजमेर का सूवेदार बनाया गया। दुर्गादास ने उस पुर आक्रमण करने की तैयारी की। सफीखाँ एक पहाड़ी मैदान में अपनी सेना साथ पहुँच गया। दुर्गादास ने उस पर जोरदार आक्रमण किया और उसे मारकर अजमेर की तरफ भगा दिया। इस प्रकार लगातार पराजय के समाचार वादशाह औरंगजेब को मिले। उसने सफीखाँ को लिखा-“अगर तुम दुर्गादास को परास्त कर सके तो मैं अपने यहाँ तुमको सम्मानपूर्ण दर्जा दूंगा और यदि तुम खुद पराजित हुये तो तुमको पदच्युत करके अपमानित किया जायेगा।" वादशाह का यह तरीका देखकर सफीखाँ बड़ी परेशानी में पड़ गया और भयभीत होकर अपने सम्मान की रक्षा के लिये वह तरह-तरह उपाय सोचने लगा। अन्त में उसने राजकुमार अजीत के साथ षड़यंत्र रचने की चेष्टा की और राजकुमार को लिखा-“आपका पैतृक राज वापस करने के लिये बादशाह की तरफ से मुझे अधिकार मिला है। इसलिये आप आकर मुझसे मिलें, जिससे मैं वादशाह के हुक्म की पावन्दी कर सकूँ ।” सफीखाँ का यह पत्र पाकर वीस हजार राठौड़ सेना के साथ राजकुमार अजीत अजमेर की तरफ रवाना हुआ। रास्ते मे उसे सफीखाँ पर कुछ संदेह पैदा हुआ। इसलिये उसकी असलियत को समझने के वास्ते उसने चम्पावत मुकुन्ददास को रवाना किया और वह जसवंतसिंह के कबीलों की रक्षा के लिये जव राठौड़ मुगलसेना से युद्ध करके मारवाड़ चले आये थे, उस समय दिल्ली के एक मुगल अधिकारी ने एक बालक को ले जाकर बादशाह को दिखाया था और कहा था कि यह जसवन्तसिंह का लड़का है। वादशाह ने मोहम्मदशाह नाम रखकर उसको पाला था। सम्वत् 1745 में उसकी मृत्यु हो गई। 1. 431