पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३८४

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अच्छे मुहूर्त में राजकुमार अजीत सबके सामने लाया गया। उसको देखकर सभी को बड़ी प्रसन्नता हुई। सबसे पहले हाड़ा राव ने राजकुमार को अभिवादन किया। उसके पश्चात् सभी सामन्तों ने अभिवादन करते हुये राजकुमार को स्वर्ण, मणि, मुक्ता और घोड़े भेंट में दिये। उस समय जो लोग वहाँ पर उपस्थित थे, इस समय का दृश्य देखकर, वे परम संतोष का अनुभव कर रहे थे। इनायतखाँ के द्वारा यह समाचार औरंगजेब को मालूम हुआ। मुगल दरबार में उपस्थित होकर सेनापति इनाइत खाँ ने ऊंचे स्वर में बादशाह से कहा- “जहाँपनाह, राजा के अभाव में जिन लोगों ने अब तक आपके साथ युद्ध किया है, वे अपने राजा की उपस्थिति में क्या करेंगे। इसका आप अनुमान लगा सकते हैं। मेरे ख्याल से अब इन लोगों को शिकस्त देने के लिये आपको एक बहुत बड़ी फौज की जरूरत है। इसके बिना आपका काम नहीं चल सकता। सन्तोष और सुख को अनुभव करते हुये राठौड़ सरदार राजकुमार अजीत को आइवा गये । वहाँ के राजा ने धूमधाम के साथ राजकुमार का स्वागत किया और उसे बहूमूल्य हीरे जवाहरात के साथ उसने बहुत से घोड़े भेंट में दिये। उस सामन्त राजा के दुर्ग में अनेक प्रकार से अजीतसिंह का स्वागत-सत्कार किया गया और उसी स्थान पर टीका दौड़ की रीति पूरी हो गयी। इसके बाद राजकुमार ने सबके साथ वहाँ प्रस्थान किया। मार्ग में रायपुर, बीडा और बारोद नमक नगर मिले। वहाँ के सरदारों ने स्वागत के साथ-साथ राजकुमार को भेंटें दी। इसके बाद राजकुमार आसोप दुर्ग में पहुँचा। वहाँ पर कुम्पावत सरदार ने उसका बहुत सत्कार किया। आसोप से भाटी सरदार की जागीर लवेरा, लवेरा से मेड़ता, फिरारियाँ और फिरारियाँ से करमसोतों और वहाँ से खीमसर में पहुँच कर वहाँ के सरदारों ने स्वागत किया। इस प्रकार राजकुमार अजीत अपने साथियों के साथ अनेक स्थानों में पहुँचा । प्रत्येक स्थान पर उसका स्वागत-सत्कार किया गया और सभी लोगों ने उसके झण्डे के नीचे आने के लिये वचन दिया। वह खीमसर से पाबूराम धाधल के निवास स्थान कालूनगर में पहुंचा। वहाँ पर पाबूराव ने अपनी सेना लेकर स्वागत किया। इसके पश्चात् सम्वत् 1744 के भादो मास में राजकुमार पोकरण पहुँचा। वहाँ पर दक्षिण लौटे हुये दुर्गादास ने राजकुमार से भेंट की। बधावना और टीकादौड़ से राजकुमार अजीत के सौभाग्य का परिचय मिला। इस अवसर पर राजकुमार का जिस प्रकार सत्कार किया गया, उससे राठौड़ों अपरिमित वृद्धि हुई । दुर्जनशाल ने 2 इस अवसर पर अपने जिस उत्साह और सहयोग का परिचय दिया, उससे राठौड़ों को अपना भविष्य उज्ज्वल दिखायी देने लगा। राजकुमार अजीत को पाकर राठौड़ों में जिस उत्साह की वृद्धि हुई, उसे देखकर बादशाह औरंगजेब का सेनापति इनायतखाँ बहुत भयभीत हुआ। उसने सोच समझ कर एक फौज तैयार की। लेकिन इसी बीच उसकी मृत्यु हो गयी। बादशाह ने मुहम्मदशाह नामक एक मनुष्य को, जसवन्तसिंह का पुत्र कहकर उसे मारवाड़ के सिंहासन पर बिठाने की चेष्टा बधावना और टीका दौड़ की रीति के अनुसार एक मनुष्य मोतियों से भरा हुआ एक बर्तन नवीन राजा अथवा युवराज के मस्तक पर रखकर उसकी परिक्रमा करता है। इस मौके पर दुर्जनशाल चम्पावत सरदार सुजान सिंह की लड़की से विवाह करने के लिये आया था। परन्तु राजकुमार का स्वागत सत्कार देखकर वह अपने उत्साह को दबा न सका। किसी को उससे कुछ कहना न पड़ा। वह स्वयं उत्साहित होकर युद्ध में साथ देने के लिये तैयार हो गया। उत्साह की 1. 2. 430