नाम से अधिकार कर लिया। इसके साथ-साथ मुसलमानों पर आक्रमण किया और अब तक हिन्दू जाति के साथ जो अत्याचार किये गये थे, उनका पूरी तौर पर बदला लिया। इस समय जोधपुर के मुसलमानों पर भयानक संकट था कि वे किसी प्रकार अपने प्राणों की रक्षा करना चाहते थे। इसलिये जो भाग सकते थे, वे अपना सब कुछ छोड़कर भाग गये और जो न भाग सके, उन्होंने अपने प्राणों की रक्षा के लिये हिन्दू वेष धारण किया। बहुतों अपनी दाढ़ी मुंड़वा ली। इतना सब होने पर भी वहाँ के बहुत से मुसलमान भयानक रूप से मारे गये। इसके बाद वहाँ पर अजीतसिंह का राजतिलक हुआ। औरंगजेब की मृत्यु हो जाने पर उसके सिंहासन को प्राप्त करने के लिए पुत्रों में प्रलोभन पैदा हुआ। दक्षिण से आजम, उत्तर से मोअज्जम - दोनों अपनी-अपनी फौजें लेकर रवाना हुये। आगरा में उन दोनों का भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में औरंगजेब का बड़ा लड़का शाहआलम विजयी होकर मुगल सिंहासन पर बैठा और वहादुरशाह प्रसिद्ध हुआ। सिंहासन पर बैठने के बाद उसने सुना कि अजीतसिंह ने मारवाड़ में मुसलमानों के साथ वड़ा अत्याचार किया और उसने मुसलमानों का सव कुछ छीन लिया। सम्वत् 1764 में बरसात के बीत जाने पर नवीन मुगल बादशाह अपनी शक्तिशाली सेना लेकर अजमेर की तरफ रवाना हुआ और अजमेर पहुँचकर उसने वीलाड़ा नामक स्थान पर मुकाम किया। अजीतसिंह ने वादशाही फौज का मुकाबला करने के लिये तैयारी की। औरंगजेव संघर्ष के दिनों में धूर्त व्यवहारों का अधिक आश्रय लेता था। नवीन मुगल वादशाह ने इस समय अपने पिता का अनुसरण किया। जब उसने सुना कि अजीतसिंह युद्ध की तैयारी कर रहा है तो उसने अपना दूत भेजकर सन्धि का प्रस्ताव किया। अजीतसिंह ने सन्धि के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके बाद बादशाह ने मारवाड़ की राज सनद् देने के लिये फिर उस दूत को अजीतसिंह के पास भेजा। अजीतसिंह ने उसको स्वीकार करने के पहले भेंट करने की अभिलाषा प्रकट की। फागुन मास के पहले दिन अजीत अपनी सेना के साथ रवाना होकर वीसलपुर पहुँच गया। बादशाह के प्रधान मन्त्री खानखाना के बड़े बेटे सुजावत खाँ ने कई एक अमीर, भदावर राजा तथा बूंदी के राव वुधसिंह के साथ वादशाह की ओर से पीपाड़ नामक स्थान पर अजीतसिंह का स्वागत-सत्कार किया। पीपाड़ नामक स्थान पर एक वैठक हुई। उसमें सन्धि के सम्बन्ध में परामर्श होता रहा। उसके बाद आनन्दपुर नामक स्थान में मुगल बादशाह के साथ अजीतसिंह की भेंट हुई। बादशाह ने अजीत सिंह को 'तेजवहादुर' की उपाधि दी। वह एक तरफ अजीत को प्रसन्न करने की चेष्टा कर रहा था और दूसरी तरफ उसकी दूसरी कोशिशें चल रही थीं। इसी अवसर पर बादशाह ने महराव खाँ को मुगल सेना के साथ जोधपुर पर अधिकार करने के लिये भेज दिया था। विश्वासघाती मोहकम उसके साथ गया था। जिस समय वादशाह ने अजीतसिंह को अपने आदर-सत्कार में उलझा रखा था, महराव खाँ ने बड़ी आसानी के साथ जोधपुर में अधिकार कर लिया। जिस समय अजीतसिंह को यह मालूम हुआ कि मुगल सेना को लेकर महरावखाँ ने जोधपुर को अपने अधिकार में कर लिया है तो उसे बड़ा क्रोध आया। उस समय बादशाह ने फिर बड़ी चालाकी से काम लिया। अजीतसिंह को आवेश में देखकर उसने अपने मन के भावों को छिपाकर रखा और तरह-तरह से वह अजीतसिंह की खुशामद करता रहा। बादशाह शाहआलम ने उसको दक्षिण जाने और कामबख्श की सहायता करने के लिये विवश किया। आमेर का राजा जयसिंह इस समय बादशाह के साथ था। उसने बादशाह 435
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