का व्यवहार देखा। उसमें अजीत को फँसाने के लिये एक जाल के सिवा और कुछ न था। इसलिये उसको बड़ा असन्तोप हुआ । इसी मौके पर वादशाह शाहआलम ने छिपे तौर पर अपनी एक फौज आमेर राज्य में भेज दी। उसने वहाँ जाकर उस राज्य पर अधिकार कर लिया और जयसिंह के छोटे भाई विजयसिंह को वहाँ का अधिकारी बना दिया। उस समय जयसिंह और अजीतसिंह को लेकर वादशाह दक्षिण चला गया था। उस यात्रा में औरंजगजेब के बेटे वादशाह शाहआलम ने राजपूत सेनाओं का लाभ उठाया। जयसिंह और अजीतसिंह दोनों अब बादशाह की चालों को साफ-साफ समझने लगे। नर्मदा नदी को पार करने के बाद दोनों राजपूत राजा अपनी सेनाओं के साथ विना वादशाह से कुछ कहे सुने राजस्थान की तरफ वापस लौट पड़े। रवाना होने के पहले उन दोनों राजाओं ने अपना एक कार्यक्रम बना लिया। अजीतसिंह और जयसिंह की सेनायें सबसे पहले उदयपुर पहुँची । राणा अमरसिंह ने राजधानी से निकल कर उनका स्वागत किया और दोनों राजाओं को वह अपनी राजधानी में ले गया। उसके बाद अजीतसिंह और जयसिंह मारवाड़ में पहुंचे। उनके वहाँ पहुँचने पर चम्पावत सरदार अदयभानु के पुत्र संग्रामसिंह ने उनका स्वागत किया और उसने मस्तक से पगड़ी उतार कर दोनों राजाओं के आगे बिछा दी। उस पर पैर रखते हुए दोनों राजा आगे बढ़े और सामन्त उदयभानु के यहाँ पहुँच गये। सम्वत 1765 के सावन महीने में मुगलों की परिस्थितियाँ फिर बिगड़ने लगी। महराबुखाँ को जब मालूम हुआ कि अजीतसिंह अपनी सेना के साथ लौटकर मारवाड़ आ गया है तो वह बहुत भयभीत हुआ । इन्हीं दिनों में तीस हजार राठौड़ों की सेना ने जोधपुर पहुँचकर उसकी राजधानी को घेर लिया। महरावखाँ ने भयभीत होकर आत्म समर्पण कर दिया। आसकरन के पुत्र ने उस समय उसके प्राणों की रक्षा की। उसके बाद अजीतसिंह वहाँ से लौट कर अपनी राजधानी में आ गया। राजा जयसिंह अपने राज्य से निकल कर इन दिनों में सूरसागर के समीप रहने के लिये चला गया था। बरसात के बीत जाने पर कछवाहों के श्रेष्ठ सामन्त अजयमल ने जयसिंह को फिर सिंहासन पर विठाने का इरादा किया। जयसिंह ने अजीतसिंह के साथ सेना लेकर मेड़ता की तरफ यात्रा की। उन दोनों राजाओं की सेनाओं के मेड़ता पहुंचने पर दिल्ली और आगरा में घबराहट पैदा हुई। अजीतसिंह और जयसिंह की सेनायें मेड़ता से चलकर अजमेर पहुँच गयी। वहाँ का मुगल शासक घबरा उठा और वह ख्वाजा कुतुब मोहम्मदी नाम के एक फकीर की मस्जिद मैं चला गया और वहाँ से उसने अजीतसिंह के पास सन्देश भेजकर अपने प्राणों की रक्षा के लिये प्रार्थना की। उसने दण्ड स्वरूप अजीतसिंह को बहुत सी सम्पत्ति दी। इसके बाद अजीतसिंह ने आमेर राज्य पर आक्रमण किया। उस राज्य के सभी सामन्त राजा जयसिंह से जाकर मिल गये। आमेर की मुगल सेना के अधिकारी सैयद हुसैन ने बारह हजार मुगलों को लेकर साँभर झील के किनारे अजीतसिंह के साथ युद्ध किया। इस युद्ध में छः हजार मुगलों के साथ सैयद हुसैन मारा गया। उसकी बाकी सेना युद्ध क्षेत्र से भाग गयी। इस पराजय की खबर पाते ही मुसलमान लोग साँभर छोड़कर इधर-उधर भागने लगे। अजीतसिंह ने माघ के महीने में अपनी एक सेना साँभर में रखी और आमेर का राज्य उसने जयसिंह को दे दिया। बीकानेर पर आक्रमण करने का अजीतसिंह का पहले से ही इरादा था। उसने रघुनाथ भण्डारी को दीवान की उपाधि देकर साँभर का अधिकारी बना दिया और वह अपनी सेना लेकर बीकानेर की तरफ रवाना हुआ। 436
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३९०
दिखावट