उसके वंशजों ने उसी के नाम से अपनी जाति का नाम रखा। सीथीस के दो पुत्र पैदा हुए। एक का नाम था पालास और दूसरे का नाम था नापास । यहाँ पर यह शंका होती है कि यह वंश तातारियों का नागवंश तो नहीं है, जिसने अपने अनेक कामों के लिये बड़ी ख्याति पायी थी। उन लोगों ने अपनी सेना के बल पर बहुत-सी जातियों पर अधिकार कर लिया था और सीथियन साम्राज्य को पूर्वी महासागर, कास्पियन समुद्र और मोइटिस झील तक पहुँचा दिया था। उस जाति के बहुत राजा थे, जिनके वंश में सैकेन्स अथवा सैंकी, मैसेजेटी अथवा जट या जिट, एरीअस्पियन और दूसरी बहुत सी जातियाँ हैं। उन्होंने असीरिया और मीडिया को जीतकर वहाँ के राज्य का सर्वनाश किया था। सैंकी, जट और तक्षक आदि नाम की अनेक शाखायें उस जाति की थीं। वे सभी जातियाँ और उपजातियाँ राजस्थान के छत्तीस राजवंशों में आ गयीं। इनके नाम यूरोप की अन्यान्य जातियों के प्राचीन इतिहास में भी मिलते हैं। अब देखना यह है कि उन जातियों का मूल निवास कहाँ पर था। स्ट्रेबो ने लिखा है कि कास्पियन सागर के पूर्व में रहने वाली सभी जातियाँ सीथिक कही जाती हैं। उन सबके रहने के स्थान अलग-अलग हैं। यह भी पता चलता है कि ये जातियाँ अधिकतर भ्रमण किया करती थीं और आवश्यकता के अनुसार अपने रहने का स्थान बना लेती थीं। बहुत बड़ी संख्या में अपने स्थान से चलकर इन जातियों के लोग किसी देश के लोगों पर आक्रमण करते थे। शक जाति के इन लोगों ने एशिया में भी आक्रमण किया था। हमें इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि इन लोगों के आक्रमण भारत में उस समय हुए, जब उस जाति के समूह ने यूरोप में प्रवेश किया। इसी आधार पर यह मानने के लिए बाध्य होना पड़ता है कि राजपूत और यूरोप की प्राचीन जातियाँ प्राचीन काल में किसी एक ही स्थान पर रहा करती थीं और उनकी मूल उत्पत्ति एक थी। इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इन सभी जातियों के देवी-देवता एक थे। उनमें प्रचलित कहानियाँ भी एक थीं। उनमें प्रचलित रीति और रस्में भी एक ही थीं। उनमें एक-सी, आदतें पायी जाती थीं। आक्रमण करने की आदतें भी उन सब की एक-सी थीं। उनकी भाषा में कोई अंतर न था। वे एक-से गाने गाते थे। जिस प्रकार की बातों को वे पसंद करते थे, वे सब एक ही प्रकार की थीं। पुराणों के अनुसार, इंदु, सीथिक, जेटी, तक्षक और असी जातियों का आरंभ में भारत में आने तथा शेशुनागु (तक्षक) का शेषनाग देश से आने का समय ईसा से छः शताब्दी पहले साबित होता है। इस बात का भी पता चलता है कि लगभग इसी समय इन जातियों ने एशिया माइनर पर आक्रमण करके उसको पराजित किया था। उसके बाद स्कैंडीनेविया तथा बाक्ट्रिया के यूनानी राज्य पर हमला करके उसको विध्वंस किया था। इसके कुछ दिनों के बाद असी, काठी और किम्बरी जातियों ने रोमन लोगों पर बाल्टिक सागर के किनारे से आक्रमण किया था। यहां पर यदि यह साबित किया जा सके कि आदि काल में जर्मनी के लोग सीथियन थे अथवा गांथ या जेटी जाति से सम्बंध रखते थे तो जिस निष्कर्ष पर हम पहुँचना चाहते हैं, उसके लिए बहुत कुछ रास्ता साफ हो जायेगा। हेरोडोटस के अनुसार, शक लोगों ने ईसा से पाँच सौ वर्ष पहले स्कैण्डीनेविया पर अधिकार कर लिया था। ये शक लोग मर्कयूरी अर्थात् बुध, ओडन अर्थात् ओडिन की आराधना करते थे और अपने आप को उन्हीं की संतान कहते थे। यूनानियों और गांथ लोगों के देवता एक ही थे और उनके विश्वास भी एक ही प्रकार के थे। उनके देवता केलस और टेरा बुध और पृथ्वी के पुत्र थे। देवी-देवताओं और चन्द्रवंश की अश्व जाति अथवा वाजस्व जाति मीड के नाम से प्रसिद्ध है, जैसे पुरमीड, अजमीड और देवमीड । इस जाति के लोग वाजस्व के पुत्र थे । उनका मूल निवास पाँचालिक देश था। वहाँ से वे लोग असीरिया और मीडिया पर आक्रमण करने के लिये आये थे। 1. 39
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