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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४०

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इस प्रकार की सभी बातें स्कैण्डीनेविया वालों की ठीक वही ह३९५, जो यूनान और रोम की हैं। इस प्रकार की अनेक प्राचीन जातियों की सभी बातें एक दूसरङ से बिल्कुल मिलती-जुलती हैं। उनके परस्पर विचारों और विश्वासों में कोई अंतर नहीं था। प्राचीन यूरोप की जातियों, राजपूतों और सीथियन अर्थात् शकों की उत्पत्ति एक ही थी। इस पर यहाँ थोड़ा-सा विचार कर लेना चाहिए। एक विद्वान लेखक ने लिखा है-"तातारियों के साथ हम लोग घृणा करते हैं। लेकिन यदि हम इन तातारियों और अपने पूर्वजों के सम्बंध में थोड़ा-सा विचार करें तो हमें मालूम होगा कि हम में और उनमें कोई अंतर नहीं है। हम दोनों के पूर्वज एक ही थे और वे एशिया के उत्तर से आये थे। हमारे और उनके जीवन की सभी बातें एक-सी हैं । इस प्रकार की बातों को समझ लेने पर उनके प्रति हमारी घृणा की भावना समाप्त हो जायेगी।" वे सब तातार से आने वाले ही थे, जिन्होंने किम्बियन, केल्ट और गांथ के नाम से यूरोप का समस्त उत्तरी भाग अपने अधिकार में कर लिया था। गांथ, हूण, एलन, स्वीड, बाँडल, फ्रैंक आदि जातियों के लोग वास्तव में एक ही थे। स्वीडन इतिहास के अनुसार स्वीड लोग काशगर से आये थे, और सैक्सन तथा किपचक भाषाओं में कोई विशेष अंतर नहीं। ब्रिटनी और वेल्स में अब तक बोली जाने वाली केल्टिक भाषा इस बात का प्रमाण है कि वहाँ के निवासी तातारियों के वंशज हैं। प्राचीन काल में अनेक प्रदेशों ने सभ्यता में उन्नति की थी। एशिया की ऊँची जमीन पर बसने वाली जातियों का जीवन केवल देहाती नहीं था बल्कि सू लोगों ने जब वहाँ यूची और जिट लोगों पर आक्रमण किया तो आक्रमणकारियों को वहाँ पर एक दो से अधिक ऐसे नगर मिले, जिनमें भारत की तैयार की हुई बहुत-सी व्यावसायिक चीजों की बिक्री होती थी और उनमें यहाँ के राजाओं के चित्रों के साथ सिक्कों का प्रचार था। मध्य एशिया की यह अवस्था ईसा से बहुत पहले थी। उसके बाद इन देशों में ऐसी लड़ाइयाँ हुईं, जिन्होंने उन देशों का सर्वनाश किया। इस प्रकार की लड़ाइयाँ यूरोप में कभी नहीं हुई। जेटी, जोट अथवा जिट और तक्षक जातियाँ जो आज भारत के छत्तीस राजवंशों में शामिल हैं, सब की सब सीथिया प्रदेश से आई हैं। पूर्वकाल में उनके स्थान छोड़ने का कारण हमें पुराणों में खोजना चाहिए। परन्तु उनके हमलों के सम्बंध में बहुत-सी बातों की जानकारी महमूद गजनबी और तैमूर के इतिहास से होती है। जौऊद के पर्वतों से लेकर मकरान के किनारे और गंगा के समीपवर्ती स्थानों में जिट लोगा बहुत बड़ी तादाद में रहते हैं। प्राचीन ग्रंथों और शिलालेखों में तक्षक जाति का उल्लेख मिलता है। इन प्राचीन जातियों के नामों में भी अब परिवर्तन हो गये हैं। जेटी लोग बहुत समय तक स्वतंत्र बने रहे। लेकिन उनको पराजित करने के लिये जब साइरस ने उन पर आक्रमण किया तो टोमिरिस ने उनका सामना किया। कई लड़ाइयों के बाद वे सतलज नदी के पार भागकर चले गये और लाहौर के जिट सरदार की मातहती में रंगरूटों की तरह भर्ती होकर एवं बीकानेर के समीप मरुभूमि में चरवाहों की तरह रहने लगे। बाद में चरवाहों का काम छोड़कर वे लोग काश्तकारी का काम करने लगे। इन इंदु सीथिक जातियों अर्थात् जेटी, तक्षक, अस्सी, कट्टी, राजपाली, हूण, कैमेरी लोगों के आक्रमणों के बाद इस देश में इन्दुवंश (चन्द्रवंश) के संस्थापक बुध की पूजा का 1. बलूचिस्तान की नूमरी अथवा लोमड़ी जाति के लोग जिट हैं। इन्हीं लोगों को केनेल ने नोमाड़ी नाम देकर अपने लेखों में उल्लेख किया है। 40