और सरदार - जिन्होंने परलोक गमन किया - वे केवल युद्ध में मारे गये। उनमें से एक भी बीमार होकर और चारपाई पर लेट कर नहीं मरा । मारवाड़ के राठौड़ राजपूतों के चरित्र की कई श्रेष्ठ बातें हमारे मामने आती हैं। बादशाह की तरफ से अपरिमित सम्पत्ति देकर देश और धर्म के विरुद्ध उनको आकृट किया गया परन्तु सम्पत्ति और राज्य के प्रलोभन में एक भी राठौड़ ने देशद्रोह और जातिद्रोह न किया। उनको भयानक विपदाओं में रहकर मृत्यु का आलिंगन करना स्वीकार था, परन्तु सम्पत्ति और सम्मान के नाम पर उनको जातिद्रोह करना मन्जूर न था। मारवाड़ के राठौड़ दुर्गादास की तरह स्वाभिमानी और चरित्रवान व्यक्ति संसार की अन्य जातियों में बहुंत कम मिलेंगे। उसने मृत्यु का सामना करके जसवन्तसिंह के पुत्र शिशु अजीत के प्राणों की रक्षा की। सम्पत्ति और राजा के बड़े से बड़े प्रलोभन भी कर्तव्य परायणता से उसको डिगा न सके थे। राजस्थान के राजपूतों ने अपने जिस कर्तव्य का पालन किया है, उसकी तुलना में अन्य जातियों के इतिहास से उदाहरण निकाल कर उपस्थित करना एक व्यर्थ का प्रयास मालूम होता है। वादशाह औरंगजेब के साथ राठौड़ा की जो शत्रुता चल रही थी, उसको यहाँ पर लिखने की आवश्यकता नहीं है। औरंगजेब का लड़का शाहजादा अकबर विद्रोही हो गया। उस समय पड़यन्त्रकारी और निर्दय पिता से बचने की उसे आशा न रह गयी। उसे चारों तरफ अन्धकार दिखाई देने लगा। उसका कोई अपना न रहा, जो उस संकट के समय उसकी सहायता करता और औरंगजेब से उसके प्राणों की रक्षा हो सकती ! उस समय शाहजादा अकबर ने मुगलों के परम शत्रु राठौड़ों का आश्रय लिया और उन राठौड़ो ने भयानक संघों का सामना करके शाहजादा अकवर के प्राणों की रक्षा की। शाहजादा अकबर के सिलसिले में उसके परिवार की रक्षा का उत्तरदायित्व राठौड़ों को सौंपा गया। बहुत समय तक अकबर का परिवार राठौड़ों के आश्रय में रहा। उन दिनों में उसके परिवार की जो सम्मान प्राप्त हुआ, उसको लिखकर प्रकट करना सम्भव नहीं है। अकवर की एक लड़की थी। उसने यौवनावस्या में प्रवेश किया था। उसके सम्बन्ध में बादशाह औरंगजेब को जो चिन्तायें हुई थी और उस नवयुवती शाहजादी को राठौड़ों के आश्रय से निकालने के लिये औरंगजेब ने जो प्रयास किये थे, उनका उल्लंख पिछले पृष्ठों में किया जा चुका है। वह शाहजादी राठोड़ों के आश्रय में कितनी सुरक्षित रही थी और किस मान-मर्यादा के साथ उसके उन दिनों का जीवन व्यतीत हुआ था। उस पर यहाँ कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं मालूम होती। उस संरक्षण और श्रेष्ठ सम्मान का अनुमान इसी से किया जा सकता है कि उस शाहजादी को राठौड़ों के अधिकार से निकालने के लिये जव बादशाह औरंगजेब के सारे प्रयत्न असफल हो गये तो उसने राठौड़ों के साथ मित्रता की। उस समय राठौड़ों ने उस शाहजादी को लाकर बादशाह औरंगजेब के सुपुर्द कर दिया। शाहजादी को पाकर और उसके मुख से अजीतसिंह, दुर्गादास और दूसरे राटाड़ों की प्रशंसा सुनकर बादशाह औरंगजेब ने दुर्गादास की भूरि-भूरि प्रशंसा की और उसने राठौड़ों के निर्मल चरित्र को बार-बार स्वीकार किया। वास्तव में चरित्र उसी का श्रेष्ठ है जिसकी श्रेष्ठता और निर्मलता उसके शत्रुओं को भी स्वीकार करनी पड़ती है। दुर्गादास का जीवन राजपूतों के चरित्र का एक उदाहरण है। दुर्गादास लूनी नदी के किनारे दूनाड़ा का एक सामन्त था ! ठसकी प्रस्तर मूर्ति आज भी उसके श्रेष्ठ गौरव का परिचय देती हैं। 438
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