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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३९१

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सम्वत् 1766 के भादो महीने में बादशाह शाहआलम ने कामबख्श को मरवा डाला। वह कामबख्श से हमेशा जला करता था।1 राजा जयसिंह ने मुगल बादशाह के साथ सन्धि करने के लिये फिर से प्रस्ताव किया। मारवाड़ के राजा अजीतसिंह ने नागौर पर अपनी सेना भेजकर अधिकार कर लिया। नागौर के राजा इन्द्रसिंह ने अजीत के सामने आत्म-समर्पण किया। इन्द्रसिंह जसवन्तसिंह के बड़े भाई अमरसिंह का लड़का था और विश्वासघाती मोहकमसिंह का पिता था। वह अजीतसिंह से अप्रसन्न होकर मुगलों से मिल गया था। अजीतसिंह ने उसके आत्म-समर्पण करने पर नागौर के स्थान पर लाडनूं का अधिकार उसे दे दिया। इन्द्रसिंह को इससे सन्तोष न हुआ। वह नागौर का राज्य लेना चाहता था। इसलिये उसने मुगल बादशाह के पास जाकर कहा कि अजीतसिंह ने नागौर पर अधिकार कर लिया है। मुगल बादशाह इस खबर को सुनकर अजीतसिंह से बहुत अप्रसन्न हुआ। उसी समय अजीतसिंह को मालूम हुआ कि इन्द्रसिंह ने मुगल बादशाह को भड़काने की चेष्टा की है। लेकिन इस समय किसी तरफ से कोई असंगत बात पैदा न हुई और दोनों ने मिलकर उस झगड़े को निपटाने का इरादा किया। मुगल बादशाह के साथ झगड़े का निपटारा करने के लिये राजपूत डीडवाना नगर के करीब कोलिया नामक स्थान पर पहुँच गये। बादशाह दिल्ली से अजमेर चला आया। अजीतसिंह के साथ राजस्थान के और भी राजा लोग थे, जिनको धमकी मिली थी और जो बादशाह के साथ संघर्ष का निर्णय करने के लिये वहाँ पर आये थे। मुगल बादशाह ने उनके साथ मित्रता का प्रदर्शन आरंभ किया। उसने राजाओं के पास जो वहाँ पर एकत्रित हुये थे, अपने हाथ की सनदें भेजी। उनको लेकर नाहर खाँ राजाओं के पास गया। आपाढ़ मास के पहले दिन मारवाड़ और आमेर के राजाओं ने उन सनदों को प्राप्त किया। इसके बाद वे बादशाह से भेंट करने के लिये अजमेर गये। बादशाह ने आदरपूर्वक उनसे भेंट की । वहाँ से दोनों राजपूत राजा शासन की सनदें लेकर वापस लौटे। अजीतसिंह सम्वत् 1767 के श्रावण के महीने में जोधपुर की राजधानी में आकर अपने पिता के सिंहासन पर पुनः बैठा। इस वर्ष उसने गौड़ राजकुमारी के साथ विवाह किया ।अर्जुनसिंह ने दिल्ली के दरवार में अमरसिंह को जान से मार डाला था। उससे राठौड़ लोगों के साथ उसकी शत्रुता बढ़ गयी थी। अजीतसिंह ने इस शत्रुता को मिटाकर उसके साथ मैत्री कायम की। इसके पश्चात् वह कुरुक्षेत्र को चला गया, जहाँ पर कौरवों और पाण्डवों का युद्ध हुआ था। इस तरह से 1767 का सम्वत् समाप्त हो गया। मारवाड़ के राठौड़ों को बहुत समय तक जीवन को संपर्घ में विताना पड़ा। उनको विभिन्न प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा। परन्तु दुर्भाग्य के उन दिनों में भी उन लोगों ने अपने जिस उज्ज्वल चरित्र को कायम रखा और विपदाओं की पराकाष्ठा में पहुँच जाने के वाद भी उन्होंने अपनी जिस राजभक्ति का परिचय दिया उसकी उपमा संसार के इतिहास में खोजने पर भी आसानी से न मिलेगी। मारवाड़ के भट्ट ग्रन्थों से जाहिर होता है कि संघर्ष के इस दीर्घकाल में वहाँ से एक सामन्त ने भी स्वाभाविक मृत्यु नहीं पायी। इसका साफ अर्थ यह है कि मारवाड़ में तीस वर्ष तक लगातार युद्ध का जो संपर्घ जारी रहा, उस दीर्घकाल में मारवाड़ के सभी सामन्त कामबख्श औरंगजेब का लड़का में एक राजपूत स्त्री में पैदा हुआ था। औरंगजेब उमा बहुत प्रेम करता था। 1.