- सम्वत् 1776 में अजीतसिंह और सैयद दिल्ली से रवाना हुये। लेकिन मुगलों ने नीकोशाह को जो सलीमगढ़ में कैद कर लिया गया था, छोड़ दिया। बादशाह की मृत्यु हो गयी। अजीतसिंह और सैयदों ने उसके स्थान पर मोहम्मद शाह को सिंहासन पर बिठाया। इसके पश्चात् मुगल साम्राज्य में भयानक विद्रोह उत्पन्न हुये। उसमें साम्राज्य के न जाने कितने नगरों का विध्वंस और विनाश हुआ और न जाने कितने नगरों का निर्माण हुआ। बादशाह फर्रुखसियर की मृत्यु के साथ-साथ आमेर के राजा जयसिंह की समस्त आशायें समाप्त हो गयीं। सैयद बन्धु आमेर के राजा को दण्ड देने की तैयारी करने लगे। जयसिंह को यह समाचार मिला तो वह भयभीत हो उठा। नवीन सम्राट और सैयद गन्धुओं ने अजीतसिंह के साथ सेनायें लेकर जयपुर का रास्ता पकड़ा और जब वे लोग सीकर पहुँच गये तो जयपुर के सभी सामन्तों ने घबरा कर अजीतसिंह की शरण ली। उन सामन्तों ने अजीतसिंह से प्रार्थना की कि यदि आपने सैयद बन्धुओं से जयपुर के राजा की रक्षा न की तो उसके साथ-साथ हम सब लोगों का भी सर्वनाश हो जायेगा। जयपुर के सामन्तों की प्रार्थना सुनकर अजीतसिंह ने उनको अपने पास बुलाया और चम्पावत सरदार एवम् अपने मन्त्री को जयसिंह के पास भेज कर उसे आश्वासन दिया कि जयसिंह को अब आने में किसी प्रकार का भय न करना चाहिये। अजीतसिंह का यह संदेश पाकर जयसिंह, चम्पावत सरदार और अजीतसिंह के मन्त्री के साथ रवाना होकर वहाँ पहुँच गया। अजीतसिंह ने उससे भेंट की और सभी प्रकार से उसको आश्वासन दिया और उसे अपने राज्य में जाने की आज्ञा दी। आमेर के राजा जयसिंह और बूंदी के बुधसिंह हाड़ा के साथ अजीतसिंह प्रसन्न होकर अपनी राजधानी जोधपुर की तरफ रवाना हुआ। रास्ते में मनोहरपुर के शेखावत सरदार की एक सुन्दरी लड़की के साथ उसने विवाह किया। कुँवार का महीना था। जोधपुर में अजीतसिंह के पहुँच जाने के बाद जयसिंह ने शूर सागर के किनारे और हाड़ाराव जोधपुर के उत्तर की तरफ अपने खेमे लगातार मुकाम किया। शीतकाल का मौसम व्यतीत हो गया और बसन्त के दिन आरम्भ हो गये। इन्हीं दिनों आमेर के राजा जयसिंह ने अजीतसिंह की लड़की सूर्यकुमारी के साथ विवाह किया। अजीतसिंह ने इस विवाह के सम्बन्ध में प्रधान मन्त्री कुम्पावत भंडारी और अपने गुरुदेव के साथ परामर्श कर लिया था। इस विवाह का पूर्ण वर्णन करने से बहुत विस्तार हो जायेगा। इसलिये यहाँ पर हम संक्षेप में उसका उल्लेख करने की चेष्टा करेंगे। सम्वत् 1777 में आमेर के राजा जयसिंह ने अजीतसिंह के यहाँ कुछ दिन व्यतीत किये थे। अजीतसिंह ने सैयद बन्धुओं के साथ मिलकर मोहम्मदशाह को उस समय मुगल सिंहासन पर बिठाया था, जब मुगल दरबार में भयानक कलह चल रही थी और सम्पूर्ण साम्राज्य विद्रोह के कारण नष्ट-भ्रष्ट हो रहा था। सिंहासन पर बैठने के बाद मोहम्मदशाह अजीतसिंह से बहुत प्रसन्न हुआ और उसी संतोष में उसने, जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका - अहमदाबाद का शासन देकर अजीतसिंह को जोधपुर भेज दिया था। मोहम्मदशाह से विदा होकर जयसिंह और बुधसिंह के साथ वह जोधपुर आ गया था। मोहम्मदशाह सिंहासन पर बैठने के बाद पहले जैसा मोहम्मदशाह न रह गया था। सिंहासन पर बैठने के पूर्व वह केवल मोहम्मदशाह था और अब वह बादशाह मोहम्मदशाह था। अब उसकी शक्तियाँ अत्यन्त विशाल और महान हो चुकी थीं। संसार में ऐसे मनुष्य बहुत कम पाये जाते हैं, जो महान बन जाने के बाद उपकार करने वालों के प्रति कृतज्ञ बने 444
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