1 रहते हैं। मोहम्मदशाह उस प्रकार के कृतज्ञ पुरुषों में से न था। सम्राट के सिंहासन पर बैठने के बाद वह अपने व्यवहारों में भी बादशाह बन गया। उसने सैयद बन्धुओं को जान से मरवा डाला और अजीतसिंह पर आक्रमण करने के लिए तैयारी करने लगा। जोधपुर में यह समाचार अजीतसिंह ने सुना । उसे अत्यन्त क्रोध हुआ । उसने अपनी तलवार लेकर शपथ ली कि जैसे भी होगा, मैं अजमेर पर अधिकार करूँगा। यह निश्चय कर लेने के बाद अजीतसिंह ने जयसिंह को जोधपुर से विदा किया और बारह दिन व्यतीत होने के पहले ही वह अपनी शक्तिशाली राठौड़ सेना को लेकर मेड़ता पहुँच गया। उसके बाद उसने अजमेर पर आक्रमण किया और वहाँ के मुसलमान अजमेर छोड़ कर भागने लगे। अजीतसिंह ने तारागढ़ के मजबूत दुर्ग पर अधिकार कर लिया। वहाँ पर बहुत दिनों से मुगलों का शासन चल रहा था। इसलिए हिन्दुओं के मन्दिरों में शंखों और घण्टों का बजना चिरकाल से बन्द था । अब उनकी आवाजें फिर से सुनायी देने लगी जहाँ पर कुरान के पाठ पढ़े जाते थे, वहाँ पण्डितों के द्वारा पुराण पढ़े जाने लगे। अजीतसिंह ने साँभर और डीडवाना पर भी अधिकार कर लिया। उसने अनेक दुर्गों पर राठौड़ों के झण्ड़े फहराये। जयपुर पर अधिकार करके अजीतसिंह ने अपने नाम का सिक्का चलाया। इसके अतिरिक्त उसने शासन में अनेक प्रकार के परिवर्तन किये। वहाँ के सामन्तों की मर्यादा में उसने वृद्धि की । इन सब बातों के साथ-साथ अजीतसिंह ने स्वतन्त्र रूप से अजमेर में अपना शासन आरम्भ किया। उसकी इस सफलता के समाचार न केवल भारतवर्ष के कोने-कोने में पहुँचे, बल्कि इस देश के बाहर मुस्लिम देशों में भी उसकी खबरें पहुँच गयीं। सम्वत् 1778 में मुगल बादशाह ने अजमेर पर फिर से अपना अधिकार करने का इरादा किया। बादशाह ने मुजफ्फरखाँ को सेनापति बनाकर और उसके अधिकार में एक बहुत बड़ी मुगलों की फौज देकर बरसात के दिनों में अजमेर की तरफ रवाना किया। मुजफ्फरखाँ के जाने का समाचार सुनकर उसके साथ युद्ध करने के लिये अजीतसिंह ने अपने बेटे अभय सिंह को तैयार किया। अभय सिंह के साथ तीस हजार अश्वारोही सैनिक थे और मारवाड़ के आठ सामन्त अपनी सेनाओं के साथ थे। सेना की दाहिनी तरफ चम्पावत लोग, बायीं तरफ कुम्पावत लोग, करमसोत, मेड़तिया, जोधा, इन्दा भाटी, सोनगरा, देवड़ा, खींची, धांधत और गोगावत लोग चल रहे थे। आमेर में पहुचकर मुगलों और राठौड़ों की सेनाओं का सामना हुआ। मुजफ्फरखाँ राठौड़ों की विशाल सेना को देखकर घबरा उठा। युद्ध के पहले ही मुगल सेना पीछे की तरफ भागने लगी। राठौड़ सेना उसका पीछा करती हुई आगे बढ़ी। राजकुमार अभयसिंह ने शाहजहाँपुर को अधिकार में लेकर नारनोल को लूट लिया और तम्बराघाटी तथा रिवाड़ी से बहुत सा धन एकत्रित किया। कई स्थानों पर राठौड़ सेना ने आग लगा दी, जिससे अलीवर्दी की सराय तथा कितने ही गाँव जल गये। राठौड़ सेना का यह दृश्य देखकर दिल्ली और आगरा में मुगल घबरा उठे । युद्ध की इस यात्रा में राजकुमार अभय सिंह ने नरूका के राजा की लड़की के साथ विवाह किया।1 राजकुमार अभय सिंह के मुकाबले में मुजफ्फरखाँ के भाग जाने से सम्राट मोहम्मदशाह ने चार हजार मुगलों की सेना देकर नाहरखाँ को भेजा। वह मुगल सेना के साथ साँभर पहुँच नरुका जयपुर राज्य में सामन्तों का एक प्रसिद्ध वंश था। इस वंश के कितने ही लोग जयपुर राज्य में प्रधान 1. सामन्त थे। 445
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