पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४०२

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आकार में एक रथी बनायी गयी।1 अजीतसिंह का शव उसी में रखा गया और सभी लोग उस रथी को राज श्मशान भूमि में ले गये । चन्दन, लकड़ी, अनेक प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों और घी, कपूर से चिता तैयार की गयी। इस मृत्यु का समाचार महलों में पहुँचा। सोलह दासियों के साथ चौहान रानी ने श्मशान भूमि में आकर कहा-“आज मैं अपने प्राणपति के साथ चिंता में बैठकर स्वर्ग की यात्रा करूंगी।" 2 अजीतसिंह की रानियाँ और उपरानियाँ - सब मिलाकर अट्ठावन थीं। अजीसिंह के मर जाने के बाद एक-एक करके सभी श्मशान भूमि में आयीं और चिता में बैठ कर सती होने के लिये तैयार हो गयी। उन सभी ने उस समय अपने कर्तव्य के सम्बन्ध में कुछ बातें कहीं और पति के साथ चिता पर बैठकर भस्म हो जाने को उन्होंने अपना धर्म बताया। उनकी कही हुई बातों का यहाँ पर उल्लेख करके हम अनावश्यक विस्तार नहीं देना चाहते। रानियों के मुख से अनेक प्रकार की बातों को सुन कर नाजिर ने जो एक राठौड़ था और राजमहलों मे संरक्षक के रूप में रहा करता था, जिसका यह नाम मुस्लिम भाषा के आधार पर रखा गया था - समझाते हुये कहा "इस समय आप लोगों का इस प्रकार कहना सर्वथा समुचित है। लेकिन जिस समय चिता में आग दी जायेगी, उस समय उसकी भयानक लपटें आप लोगों के जीवित शरीर को जलाने का काम करेगी। उस समय का दृश्य कितना भीषण होगा, उसका अनुमान आप लोगों को कर लेना चाहिए। उस समय यदि घबराकर चिता से आपने भागने का कार्य किया तो यह कलंक आपके वंश के माथे से कभी मिटाया न जा सकेगा। इसलिए हमारी आप लोगों से प्रार्थना है कि इस पर आपको विचार कर लेना चाहिये। प्रज्ज्वलित अग्नि में बैठकर जल जाने का कार्य कितना रोमांचकारी है, उसकी कल्पना नहीं की जा सकती।" अन्तःपुर के संरक्षक की बातों को सुन कर एक रानी ने कहाः “हम संसार में सब कुछ छोड़ सकती हैं, परन्तु अपने पति को छोड़कर जीवित नहीं रह सकती।" इसके पश्चात् सभी रानियों ने स्नान करके बहुमूल्य कपड़े और आभूषण पहने । इसके उपरान्त शव के पास जाकर अजीतसिंह के चरणों पर सभी ने अपने मस्तक रखे और अपने इस जीवन का अन्तिम प्रणाम किया। उस समय मन्त्रियों, सरदारों और अन्य सभी गुरुजनों ने रानियों को चिता पर जाने से रोका । उन सब ने पटरानी से प्रार्थना कीः “आप चिता पर न बैठकर अपने पुत्र अभय और बख्त के स्नेह का विचार करें। महाराज के न रहने पर राज्य का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व, दोनों बेटों का विश्वास और भरोसा आपके साथ है। महाराज के न रहने पर मारवाड़ की समस्त प्रजा आपको देखकर सन्तोष करेगी। राज्य के प्रति और अपने बेटों के प्रति आपका जो धर्म है, उसका आपको पालन करना है।" पटरानी ने इन बातों को सुनकर कहा: “आप सब इस वंश के कल्याण के लिये ऐसा कहते हैं। परन्तु मेरे कल्याण की तरफ आपका ध्यान नहीं है। पति को छोड़कर स्त्री का अलग से कोई अस्तित्व नहीं होता। इसके सम्बन्ध में मैं आप लोगों से अधिक नहीं कहना चाहती। आपको समझाने की आवश्यकता नहीं है। इसलिये मैं चाहती हूँ कि आप लोग मेरे कल्याण का रास्ता बन्द न करें और मुझे आशीर्वाद दें कि मैं चिता पर बैठकर उसकी शव को ले जाने के लिए राजपूत लोग नौका के आकार-प्रकार में जो अर्थी तैयार करते थे। उसका नाम रथी है। प्राचीन काल में और आज भी हिन्दुओं का विश्वास है कि मरने के बाद वैतरणी नदी पार करनी पड़ती है । इसलिये हिन्दुओं में मृत्यु के पश्चात् जितने भी संस्कार किये जाते हैं, कुछ उसी उद्देश्य से होते अवस्था में परिपूर्ण होने के पहले ही इसी रानी के साथ अजीत ने विवाह किया था। पितृ हन्ता अभयसिंह की वह माता थी। 1. 2. 448