पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४०१

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वादशाह के ऐसा करने से उस समय की भयानक परिस्थिति शान्ति में परिवर्तित हो गयी। यदि वादशाह ने उस समय ऐसा न किया होता तो उस परिस्थिति का परिणाम क्या होता, उसका कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। अभयसिंह साहसी और महान पराक्रमी था। यह जयसिंह के साथ वादशाह के दरवार में जा रहा था तो उसके पिता अजीतसिंह ने उसका विरोध किया था। परन्तु अभयसिंह ने पिता के विरोध की परवाह न की थी। पिता और पुत्र के वीच इन दिनों में अथवा कुछ समय पहले से किस प्रकार के व्यवहार चल रहे थे, इसके सम्बन्ध में भट्ट ग्रन्थों में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। इन्हीं दिनों में अजीतसिंह की मृत्यु हुई । राजा अजीतसिंह का जीवन चरित्र जिन राठौड़ कवियों के द्वारा काव्य में लिखा गया है, अजीतसिंह की मृत्यु के सम्बन्ध में खोज करने के लिये हमने उसके पन्नों का भली-भांति अवलोकन किया है। इन राठौड़ कवियों ने अजीतसिंह का ऐतिहासिक जीवन चरित्र उसके पुत्र अभयसिंह के आदेश से और उसकी देखरेख में लिखा है। सूर्यपुराण नामक ग्रन्थ में केवल इतना ही लिखा है- “इस समय अजीतसिंह ने संसार को छोड़कर स्वर्ग की यात्रा की।" इसके सम्बन्ध में दूसरा ग्रन्थ 'राज रूपक, नाम का है। उसके ग्रन्थकार ने भी अजीतसिंह की रहस्यपूर्ण मृत्यु पर कोई प्रकाश नहीं डाला वल्कि उसने जो कुछ भी लिखा है, उसके शब्दों से स्पष्ट मालूम होता है कि उसने उस मृत्यु के रहस्य को ढकने की पूरी चेष्टा की है। इस दूसरे ग्रन्थ में लिखा गया है-“अश्वपति के साथ राजकुमार अभयसिंह के होने वाले परिचय को सुनकर अजीतसिंह को प्रसन्नता हुई। इस संसार में अविनाशी कोई वस्तु नहीं है। एक दिन विनाश सवका होता है। आगे और पीछे इस संसार को छोड़कर जाना सभी को है। इस पृथ्वी पर ऐसा कोई नहीं है, जिसका कभी विध्वंस और विनाश न हो सके। रंक से लेकर राजा तक मृत्यु सबके लिये है। जो जन्म लेता है, वह एक दिना मरता है। जो सवसे निर्वल है, उसको भी एक दिन मरना है और जो महान शक्तिशाली है, उसे भी एक दिन मर कर यहाँ से जाना है। संसार में कोई ऐसा नहीं है, जिसकी कभी मृत्यु न हो। इस विश्व में रहने का समय सवका पहले से निर्धारित होता है। उस समय के वीत जाने पर एक क्षण भी किसी का रह सकना सम्भव नहीं होता। मनुष्य सब कुछ कर सकता है, परन्तु मृत्यु के सामने उसका कोई बस नहीं चलता।" मारवाड़ के राजा अजीतसिंह की मृत्यु का उल्लेख करते हुए 'राजरूपक' के ग्रन्थकार ने आगे फिर लिखा है-“जन्म के साथ मृत्यु को अपने भाग्य में लेकर मनुष्य इस संसार में आता है। अजीतसिंह का जन्म भी इसी प्रकार हुआ और उसकी मृत्यु भी हुई। अजीतसिंह ने मारवाड़ के गौरव की वृद्धि की । हिन्दु जाति का मस्तक ऊंचा किया। राठौड़ों की मर्यादा बढ़ायी और शत्रुओं पर सदा सफलता प्राप्त की। अजीतसिंह के मरने पर जोधपुर की राजधानी एक साथ रो उठी। चारों तरफ रोने और चिल्लाने की आवाजें उठने लगी। बच्चे से लेकर बूढ़े तक - सभी के नेत्रों से आँसू वह निकले। अन्त में सभी को यह समझ कर सन्तोष करना पड़ा कि मृत्यु सभी की होती है।" अजीतसिंह की मृत्यु के सम्बन्ध में राठौड़ कवियों ने लिखा है-“सम्वत् 1780 के आषाढ़ महीने के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को मरुभूमि के आठ ठाकुरौत अर्थात् आठ श्रेष्ठ सामन्तों की अधीनता में सत्रह सौ राठौड़ वंशी राजपूत नंगे सिर, नंगे पैर स्वर्ग को गये हुये अजीतसिंह के शव के निकट एकत्रित हुये। उनके नेत्रों से अश्रुपात हो रहे थे। नौका के - 447