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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४०४

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जागीरों को ठुकराया था। अजीतसिंह के सम्पूर्ण जीवन की तैयारी दुर्गादास ने की थी। दुर्गादास स्वाभिमानी, साहसी, शूरवीर और राजभक्त राजपूत था। उसने अपने ये गुण राजकुमार अजीत में पैदा किये थे। अजीतसिंह यदि अपने जीवन में देश, समाज, वंश और राज्य के लिये उपयोगी साबित हो सका तो उसका सम्पूर्ण श्रेय केवल दुर्गादास को था। ऐसी दशा में दुर्गादास ने कौन-सा अपराध किया था, जिसके कारण वह मारवाड़ से निकाल दिया गया। अजीत सिंह ने किस समय और किस कारण से दुर्गादास के साथ ऐसा व्यवहार किया था, यह नहीं कहा जा सकता। जिन कवियों ने अजीतसिंह का ऐतिहासिक जीवन चरित्र काव्य में लिखा है, उन्होंने इसका कोई उल्लेख कहीं पर नहीं किया। इसका कारण यह नहीं है कि दुर्गादास को मारवाड़ से निकाले जाने की बात गलत है। उन कवियों के उल्लेख न करने का कारण यह हो सकता है कि उन्होंने अजीतसिंह का जीवन चरित्र अभय सिंह की देखरेख में लिखा था। इसलिये जान-बूझकर इस घटना का उल्लेख न करने दिया गया हो, यह बहुत स्वाभाविक बात है। उन कवियों के ग्रन्थों में एक और भी बड़ा अभाव मिलता है। अजीतसिंह की मृत्यु किस प्रकार हुई, इसका कोई उल्लेख नहीं किया गया। उस समय की सहायक घटनाओं से यह साफ जाहिर है कि अजीतसिंह की मृत्यु का कारण उसका बेटा अभय सिंह था। यद्यपि उसने अपने हाथों से पिता की हत्या नहीं की थी, परन्तु उसने राज्य के प्रलोभन से अपने भाई बख्त सिंह को उकसाया था। उन कवियों ने इसका भी कोई उल्लेख नहीं किया और इस उल्लेख के न करने का भी वही कारण है, जो ऊपर लिखा जा चुका है। बादशाह बहादुरशाह के यहाँ से समाचारों के कुछ कागज पाये गये थे, उनसे दुर्गादास के सम्बन्ध में कुछ मालूम हुआ। मिले हुए कागजों में अन्यान्य वातों के साथ-साथ एक कागज में पढ़ने को मिला- “दुर्गादास अपने परिवार और अनुचरों के साथ उदयपुर में पिछोला झील के किनारे रहा करता है। उसके आवश्यक खर्चों के लिये राणा की तरफ से प्रति दिन पाँच सौ रूपये के हिसाब से उसको दिये जाते हैं।" बादशाह की तरफ से दुर्गादास को आत्म-समर्पण करने के लिये आदेश दिया गया था। लेकिन दुर्गादास ने किसी भी सूरत में उसे मंजूर नहीं किया। मैंने इसके सम्बन्ध में सही घटना को जानने के लिये चेष्टा की और मारवाड़ के इतिहास के विशेष जानकार एक यती से मैंने पूछा ! वह इस घटना की जानकारी रखता था। उसने अपना उत्तर कविता में दिया- “दुर्गा देशाँ काढ़ियाँ गोला गाँगनी।" अर्थात् दुर्गादास को निकाल कर गाँगनी नगर गोला को दिया गया था। गोला का अर्थ गुलाम होता है। यह गाँगनी नगर लूनी नदी के उत्तर की तरफ बसा हुआ था और वह कर्मसोत वंश के राजपूतों का प्रधान नगर था। दुर्गादास उस वंश के लोगों का अधिनायक था। यह नगर इन दिनों में मारवाड़ के राजा के अधिकार में है। परन्तु दुर्गादास के समय वह उसी के अधिकार में था। करणोत वंश के राजपूतों ने गाँगनी नगर में एक प्रसिद्ध मन्दिर दुर्गादास के स्मारक में बनवाया। वह मन्दिर आज भी दुर्गादास की स्मृतियाँ लोगों को दिलाता है। अपने त्याग और बलिदान के पुरस्कार में दुर्गादास को जिस प्रकार मारवाड़ राज्य से निकाला गया, उसकी वह दुरवस्था प्रसिद्ध कहावत का समर्थन करती है- “राजाओं पर कभी विश्वास न करना।" 450