अध्याय-40 राजा अभय सिंह व उसका शासन अजीतसिंह की रहस्यमयी हत्या का यद्यपि कोई उल्लेख उस समय के ग्रन्थों में नही पाया जाता, फिर भी अनेक परिस्थितियाँ इस ओर संकेत करती हैं। आमेर के राजा जयसिंह के परामर्श से राजकुमार अभय सिंह ने वादशाह के दरवार में न केवल जाना स्वीकार किया था, बल्कि अपने पिता अजीतसिंह के विरोध करने पर भी उसने वादशाह की अधीनता स्वीकार कर ली थी। उसके वहाँ जाने पर अभय सिंह के मनोभावों में राज्य का प्रलोभन पैदा हुआ और उसी के आधार पर अजीतसिंह की हत्या के षड़यन्त्र की रचना आरम्भ हुई। उसमें किसी को सन्देह नहीं हो सकता। इसके परिणामस्वरूप अजीतसिंह की हत्या की गयी। मारवाड़ के राजा अजीतसिंह के मरते ही उसके राज्य का पतन आरम्भ हुआ। इस विनाश की जड़ राजमहलों में पड़ी। मुगलों की जिस पराधीनता को मिटाने और पड़यन्त्रकारी मुगलों का बदला देने के लिये अजीतसिंह को बड़े-से-बड़े त्याग, बलिदान करने पड़े थे, उस पराधीनता को अभय सिंह ने प्रसन्नता के साथ स्वीकार किया। अजीतसिंह की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली के वादशाह मोहम्मद शाह ने अपने हाथ से अभय सिंह के मस्तक पर राजतिलक किया। कमर में तलवार वाँधी, मस्तक पर राजमुकुट रखा और मणि मुक्ता एवं हीरे जवाहरात से जड़ा हुआ किरिच देकर उसको मारवाड़ के सिंहासन पर विठाया। छत्र, चंवर, नौवत और नगाड़े इत्यादि वाजे और वहुमूल्य पदार्थ उपहार में देकर वादशाह ने अभय सिंह का सम्मान किया। नागौर शासन का अधिकार अमर सिंह को दिया गया था। इस अवसर पर मोहम्मद शाह ने वहाँ शासन का अधिकार अभय सिंह को दिया। मुगल बादशाह से इस प्रकार सम्मानित होकर अभय सिंह अपनी राजधानी जोधपुर आ गया। अभयसिंह ने इन दिनों में जो कुछ किया था, मारवाड़ में कोई भी उससे अपरिचित न था। सभी उसको पिता का हत्यारा और मुगलों की पराधीनता को स्वीकार करने वाला अपराधी समझते थे। परन्तु जव वह दिल्ली से सम्मानित होकर अपनी राजधानी को लौटा तो वहाँ के सभी लोगों ने बड़े सम्मान के साथ उसका स्वागत किया। उसके सभी पापों और अपराधों को लोग भूल गये थे। मार्ग के प्रत्येक ग्राम में अभयसिंह का जोरदार स्वागत होता था। राठौड़ वंश की स्त्रियाँ पानी से भरे हुए कलशों को सिर पर रख कर गाना गाती हुई अपने नवीन राजा का सम्मान कर रही थीं। जोधपुर पहुँच कर अभय सिंह ने राठौड़ सामन्तों को उपहार में मूल्यवान पदार्थ दिये और कवियों, चारणों तथा पुरोहितों को सम्पत्ति और भूमि दान में दी। इस प्रकार उसने सभी का सम्मान किया। राठौड़ वंशी करणीदान एक श्रेष्ठ कवि था, वह राजनीति का पण्डित था और युद्ध करने में शूरवीर था। मारवाड़ के घरेलू विद्रोह के समय की घटनाओं का वर्णन उनसे बड़े 451
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