पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४०६

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अच्छे ढंग से किया है। सूर्य प्रकाश नामक प्रसिद्ध ग्रंथ काव्य उसी का लिखा हुआ है। यह ग्रन्थ उस समय के इतिहास का वर्णन करता है। मारवाड़ के इतिहास का वर्णन हमने बहुत कुछ इसी सूर्य प्रकाश नामक ग्रन्थ के आधार पर किया है । यद्यपि उसकी बहुत-सी दूसरी बातें दूसरे साधनों के द्वारा भी प्राप्त की गयी हैं। अभिषेक से छुट्टी पाने के बाद अभय सिंह ने नागौर का अधिकार अपने हाथ में लेने की तैयारी की। इस नागौर का अधिकार राव अमर सिंह के उत्तराधिकारी इन्द्रसिंह को बादशाह की तरफ से उस समय दिया गया था, जब अजीतसिंह के साथ मोहम्मदशाह का युद्ध आरम्भ हुआ था। उन्हीं दिनों में नागदुर्ग के सिंहासन पर इन्द्र सिंह को विटाया गया था।1 अभय सिंह अपनी सेना लेकर नागौर की तरफ रवाना हुआ। इन्द्र सिंह को अव उसके आने का समाचार मिला तो वह अभय सिंह के पास पहुंचा और उसने बादशाह के हस्ताक्षरों की सनद दिखा कर कहा कि यहाँ के शासन का अधिकार मुझे मिला है। आमेर का राजा जयसिंह मेरे इस अधिकार का साक्षी है। यहाँ पर दूसरा कोई अधिकारी नहीं हो सकता। अभयसिंह ने इन्द्र सिंह की कही हुई वात का कुछ भी ख्याल न किया। उसने नागौर को जा कर घेर लिया । इन्द्रसिंह ने अभय सिंह के साथ युद्ध नहीं किया। उसने नागौर का दुर्ग छोड़ दिया। अभय सिंह ने उस पर अधिकार करके अपने छोटे भाई वक्तसिंह को वहाँ का अधिकारी बना दिया। इस नागौर राज्य के प्रलोभन में ही वख्त सिंह ने अपने पिता के जीवन को नष्ट किया था। उसने यह अक्षम्य अपराध अभय सिंह के परामर्श से किया था। इसलिए अभय सिंह ने नागौर पर अधिकार करके वख्तसिंह को वहाँ का अधिकारी बनाया। नागौर का अधिकार प्राप्त करने पर मेवाड़, जैसलमेर, बीकानेर और आमेर के राजाओं ने बड़े सम्मान के साथ अभय सिंह को वधाइयाँ भेजी। सन् 1725 में नागौर को विजय करके अभय सिंह अपनी राजधानी लौट आया। सन् 1726 में अभय सिंह उन भूमिया लोगों का दमन करने के लिए गया, जो उसके राज्य की दक्षिणी सीमा के निकटवर्ती स्थानों पर रहा करते थे। अभय सिंह के वहाँ पहुँचने पर सिन्धल, देवड़ा, वालाबोड़ा, वलीसा, और सोढा जाति के लोगों ने उसकी अधीनता स्वीकार की। सन् 1727 में अभयसिंह को वादशाह का एक आदेश मिला। उसने जिसके लिए अपने सभी सामन्तों को सेनाओं के साथ वुलवाया। आदेश पाते ही अपनी-अपनी सेनायें लेकर सामन्त लोग वहाँ पहुँच गये। उन सबको लेकर दिल्ली जाने के पूर्व अभयसिंह अपने राज्य के प्रमुख नगरों को देखने गया और सर्वत्र अपना शासन प्रवन्ध मजबूत बनाया । पर्वतसर नामक स्थान पर पहुँचने के बाद अभय सिंह को चेचक का रोग हो गया। उस रोग से निजात पाने के बाद सन् 1728 में अभयसिंह दिल्ली पहुँचा । वादशाह ने उसको बुलाने के लिए अपने प्रधान अमीरखाँ और दौरावखाँ को भेजा था। अभयसिंह के आने पर बादशाह ने सम्मान के साथ उसका स्वागत किया और आदरपूर्वक वातें करते हुए उसने अभयसिंह से कहा - “आज बहुत दिनों के बाद आपसे मुलाकात हुई है। आपको देखकर इस समय मुझे बड़ी खुशी हो रही है।” कुछ देर तक बादशाह के पास रहकर और उसका सम्मान प्राप्त कर अभय सिंह वहाँ से अपने मुकाम पर चला गया। जहाँ पर वह ठहरा हुआ था, वादशाह ने बहुत सी चीजें वहाँ भेजीं। नागौर का प्राचीन नाम नागदुर्ग था। 1. 452