सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कारण भंग करने का इरादा किया। दिल्ली के मुगलों की शक्तियाँ क्षीण हो चुकी थीं। इस दशा में मारवाड़ की राठौड़ सेना ने अभयसिंह के आदेश से बीकानेर पर आक्रमण किया। उस समय बीकानेर की सेना ने साहस के साथ उसका सामना किया। मारवाड़ की सेना कई सप्ताह तक बीकानेर को घेरे रही। इस संघर्ष से लाभ उठाने का इरादा वख्तसिंह ने किया। वह पहले से ही करणीदान के परामर्श के अनुसार इस प्रकार के किसी अवसर की प्रतीक्षा में था। इसलिए वह अपनी योजना तैयार करने लगा। अभयसिंह ने अपने सरदारों और सामन्तों के साथ परामर्श करके बीकानेर पर आक्रमण किया। फिर भी मारवाड़ के राठौड़ों तरफ से इस संघर्ष में बीकानेर के राजपूतों को अनेक प्रकार की सहायता मिलती रही। वहाँ के लोगों ने अफीम और युद्ध की सामग्री देकर इस समय यदि बीकानेर की सहायता न की होती तो वहाँ का राजा कुछ ही समय के बाद आत्म समर्पण कर देता। मारवाड़ के राठौड़ों के द्वारा बीकानेर को इन दिनो में जो सहायता मिली, उसका । मारवाड़ और बीकानेर के राजपूतों का मूल वंश एक ही था। राठौड़ों के सहायता करने का यही प्रमुख कारण था। इस आपसी युद्ध का लाभ उठाने के लिए बुलसिंह ने करणीदान से परामर्श किया। करणीदान इस प्रकार की बातों में बहुत चतुर और दूरदर्शी था। उसने बख्तसिंह से कहा - "अभयसिंह ने बीकानेर पर आक्रमण करके आमेर के राजा जयसिंह का अपमान किया है, इस आशय को लेकर आप एक पत्र जयसिंह के पास भेजिए और उसमें साफ-साफ जयसिंह को लिखिए कि अभय सिंह ने यह आक्रमण करके आपको युद्ध के लिए आमंत्रित किया है। इसलिए अपने अपमान का बदला लेने के लिए आप जोधपुर पर आक्रमण कर सकते हैं।" करणीदान के परामर्श के अनुसार वख्तसिंह ने उस आशय का एक पत्र लिखकर जयसिंह के पास भेज दिया और उसके साथ ही यह भी लिखा गया कि इस कठिन अवसर पर क्या करना चाहिए। राजा जयसिंह का जितना ही बुढ़ापा आता जाता था, अफीम के सेवन की आदत उतनी ही उसमें बढ़ती जाती थी। इससे कभी-कभी वह सही बातों पर विचार करने में असमर्थ हो जाता। अतएव उसने अपने मंत्रियों और उत्तरदायी कार्यकर्ताओं से कह रखा था कि जिस समय हम अफीम के अधिक नशे में हों, उस समय हमारे सामने कोई राजनीतिक मामला अथवा राज्य का कोई गंभीर कार्य उपस्थित न किया जाये। नागौर के अधिकारी बख्तसिंह का पत्र आमेर राजदरबार में आया। सभी सामन्तों ने उन पर विचार व्यक्त किये और अंत में सब की सम्मति से निर्णय किया गया कि मारवाड़ और बीकानेर के राजपूत अपने ही वंशज हैं। इसलिए आमेर के राजा का इरादा उसमें हस्तक्षेप करने का बिल्कुल नहीं है। यह निर्णय लिखकर बख्तसिंह के पास भेज दिया गया। उसे पढ़कर बख्तसिंह ने जो योजना बनाई थी, वह व्यर्थ हो गई। लेकिन बीकानेर का राजदूत उस समय आमेर के राज-दरबार में बैठा था। उसकी मित्रता आमेर के प्रधान मंत्री विद्याधर के साथ थी।1 उसकी सहायता से राजदूत ने राजा जयसिंह से भेंट की और उसने प्रार्थना करते हुए कहा- "महाराज बीकानेर पर इस समय भयानक विपद है। हमारे राजा ने विद्याधर एक बंगाली ब्राह्मण था। वह शास्त्रों का पंडित था और ज्योतिष के शास्त्र का महान विद्वान था। वर्तमान जयपुर नगर का निर्माण उसी की सुयोग्य सम्मति के आधार पर हुआ था । आमेर का राजा उसका 1. बड़ा सम्मान करता था। 460