पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४१५

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मारवाड़ के राजा की प्रधानता कभी स्वीकार नहीं की। इसलिए राजा अभयसिंह ने आक्रमण करके वीकानेर को नष्ट-भ्रष्ट करने की चेष्टा की है।" राजूदत की इन बातों ने राजा जयसिंह को प्रभावित किया। स्वाभिमान में आकर उसने राजा अभयसिंह को लिखा - "हम भी एक ही वंश के साथ सम्बंध रखते हैं। इसलिये बीकानेर पर जो आक्रमण किया है, उसे वापस ले लेना चाहिये।" पत्र की इन पंक्तियों को लिखकर जयसिंह ने फिर अफीम का सेवन किया और वह पत्र को बंद करने लगा। बीकानेर का राजदूत राजनीति कुशल था। उसने राजा जयसिंह के मन की परिस्थिति का लाभ उठाया। उसने प्रार्थना करते हुए कहा -“महाराज? दो बातें इस पत्र में यदि आप उचित समझें तो और आ जानी चाहिये। एक तो यह कि बीकानेर से राठौड़ सेनायें वापस चली जायें और दूसरी यह कि यदि ऐसा न हुआ तो मेरा नाम जयसिंह है, इसको स्मरण रखिये।" अफीम के नशे में राजा जयसिंह ने राजदूत की वात सुनी और बिना कुछ सोचे समझे, दूत के कहने के अनुसार उसने पत्र में दो बातें और लिख दी। बीकानेर का राजदूत अपनी इस सफलता को देखकर प्रसन्न हुआ। राजा जयसिंह से उस पत्र को लेकर बीकानेर का राजदूत वहाँ से विदा हुआ और उसने किसी दूसरे दूत के द्वारा वह पत्र अभयसिंह के शिविर में भेज दिया। बीकानेर के राजदूत के चले जाने पर आमेर का प्रधानमंत्री राजा जयसिंह के पास पहुँचा । ग्यसिंह ने प्रधानमंत्री से उस पत्र का जिक्र किया,.जो उसने राजा अभयसिंह के पास लिखकर भेजा था। प्रधानमंत्री ने सुनकर कहा 'आप राजा हैं, जो ठीक समझते हैं करते हैं। लेकिन यह पत्र जो राजा अभयसिंह के पास भेजा गया है, मेरी समझ में कुछ अच्छा न सावित होगा। इसलिये यदि आप मुनासिब समझें तो किसी आदमी को भेजकर रास्ते से पत्र ले जाने वाले दूत को वापस बुला लिया जाये।" राजा जयसिंह की समझ में आ गया। उसने अपना पत्र वापस मांगने के लिये दूत पर दूत भेजे । परन्तु पत्र ले जाने वाला दूत अपने कार्य में होशियार था। राजा जयसिंह के भेजे हुये दूत उसको पा न सके। दोपहर को अनेक सामन्त आमेर के भोजन गृह में खाना खाने के लिये एकत्रित हुए। राजा जयसिंह की उपस्थिति में वृद्ध सामन्त दीपसिंह ने कहा -“महाराज, जो पत्र आपने राजा अभयसिंह के पास भेजा है, उसका परिणाम कुछ अच्छा दिखाई नहीं देता।" दीपसिंह की इस बात को सुनकर आमेर के सामन्त कुछ देर तक आपस में बातें करते रहे। राजा अभय सिंह ने जयसिंह का पत्र पाकर पढ़ा और उसका उत्तर देते हुए उसने लिखा - "हमारे किसी विवाद में हस्तक्षेप करने और इस प्रकार का पत्र लिखने का आपको क्या अधिकार है? यदि आपका नाम जयसिंह है तो याद रखिये, मेरा नाम भी अभयसिंह है।" राजा अभयसिंह का यह पत्र जयसिंह के दरबार में आया। सभी सामन्तों के सामने वह खोल कर पढ़ा गया। कुछ देर तक सभी लोग चुपचाप बैठे रहे । उसके बाद कुछ बातें हो चुकने पर दीपसिंह ने कहा – “महाराज, आपके पत्र के जाने के बाद जो परिस्थिति उत्पत्र हुई है, वह सामने है। अब हम सब सामन्तों को गंभीरता के साथ विचार करके इस राज्य के सम्मान की रक्षा के लिये तैयार हो जाना चाहिये।" सभी सामन्तों ने दीपसिंह का समर्थन किया। उसी समय राज्य के सामन्तों से युद्ध के लिये तैयार होकर आने के लिए कहा गया। आमेर राज्य में युद्ध की तैयारियाँ होने - 461