से चले गये हैं। उनको देखकर वख्त सिंह ने समझ लिया कि युद्ध करने के लिये असली सैनिक इतने ही हैं। अपनी छोटी-सी सेना को लेकर बख्तसिंह मारवाड़ के उस स्थान की तरफ बढ़ा, जहाँ पर आमेर के राजा जयसिंह की सेना मौजूद थी। नागौर की सेना को आता हुआ देखकर आमेर की सेना तैयार होकर युद्ध के लिये आगे बढ़ी। कुछ समय में नागौर की सेना के निकट आ जाने पर बख्तसिंह ने आक्रमण करने की आज्ञा दी। उसी समय शूरवीर राठौड़ सैनिक एक साथ अपने हाथों में तलवारें और भाले लिये हुए आमेर राज्य की सेना पर टूट पड़े। उस भयानक मारकाट में रक्त के नाले बह निकले। युद्ध करते हुए बख्त सिंह ने एक बार अपनी सेना की तरफ देखा। उसे मालूम हुआ कि उसके पाँच हजार सैनिकों में अब केवल साठ सैनिक वाकी रह गये हैं, वाकी सव मारे गये। इसी समय नागौर के श्रेष्ठ सामन्त गजसिंह पुरापति ने बख्त सिंह से कहा “महाराज, यहाँ पर एक घना जंगल है। वहाँ चल कर आश्रय लीजिये।" बख्त सिंह ने पूछा – “सामने का यह मार्ग कौन सा है? जिस रास्ते से हम आये हैं, उस पर होकर हम नहीं जायेंगे।" इसी समय दूर से वख्त सिंह ने आमेर के राजा जयसिंह का पंचरंगा झंडा उड़ता हुआ देखा। उसने समझ लिया कि यहाँ पर जयसिंह मालूम होता है। उसने बड़ी तेजी के साथ अपने साठ आदमियों को लेकर जयसिंह के शिविर पर आक्रमण किया। उसका शरीर रक्तमय हो रहा था। वख्तसिंह को घोड़े पर तेजी से आता हुआ देखकर दीपसिंह ने घबरा कर जयसिंह को तुरंत भागने का संकेत किया। जयसिंह ने पहले बख्तसिंह का सामना करने की चेष्टा की । परन्तु उसके बाद उत्तर की तरफ से भाग कर वह कुंडला नामक एक ग्राम में पहुँच गया। भागते समय जयसिंह ने कहा “मैंने सत्रह युद्ध देखे हैं परन्तु आज के की तरह किसी भी युद्ध में किसी को तलवार के द्वारा विजय प्राप्त करते हुए नहीं देखा।” आमेर का राजा जयसिंह राजस्थान में अत्यंत बुद्धिमान और शिक्षित राजा माना जाता था। इस युद्ध में केवल साठ राठौड़ों के डर से भाग कर उसने अपना गौरव नष्ट किया। उसकी आज की इस कायरता से उस बात का समर्थन होता है, जो आम तौर से राजस्थान में कही जाती है- “एक राठौड़ दस कछवाहों के बराबर होता है।' वख्तसिंह ने डर कर भागी हुई आमेर की सेना पर तीसरी बार आक्रमण करने का इरादा किया। परन्तु राठौड़ कवि करणीदान ने उसको रोक दिया। इस समय जो राठौड़ सेना वख्तसिंह के साथ युद्ध में जाने के लिये आयी थी, करणीदान भी उसमें था। आमेर की सेना के चले जाने के बाद वख्तसिंह ने युद्ध के मैदान में जो राठौर मारे गये थे, उनका स्मरण किया। उसके कितने ही प्रिय सामन्तों ने इस युद्ध में अपने प्राणों का विसर्जन किया था, उसके परिवार के कितने ही लोग मारे गये थे। इन सभी लोगों से वख्तसिंह बहुत स्नेह करता था। उन सभी लोगों का स्मरण करके और उनके विश्वासपूर्ण व्यवहारों को याद करके वख्तसिंह युद्ध के क्षेत्र में रो उठा। इस युद्ध के पहले ही बख्तसिंह ने जो अनुमान लगाया था, उससे उसको मालूम हुआ था कि इस युद्ध में सभी प्रकार राठौड़ वंश का सर्वनाश होने जा रहा है। दोनों राज्यों के राजपूत इसी राठौर वंश से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए जो सर्वनाश हाने जा रहा था, उससे वह पहले ही भयभीत हुआ था। जिस समय बख्तसिंह अपने विश्वासी सामन्तों और प्रिय कुटुम्वियों के लिये अश्रुपात कर रहा था, अभयसिंह अपनी सेना के साथ वहाँ आ पहुँचा । उसने वख्तसिंह को समझाते हुए कहा 463
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