“आज के इस युद्ध में मैं तुम्हारी सहायता के लिये नहीं आ सका। फिर भी तुमने अपने थोड़े से सैनिकों को लेकर इस युद्ध में जो विजय प्राप्त की है, उससे मारवाड़ के राठौड़ों का गौरव बहुत ऊँचा हो गया है।" बड़े भाई अभयसिंह के मुख से प्रशंसा के इन शब्दों को सुनकर बख्तसिंह को बहुत शांति मिली। उसी समय उसने प्रतिज्ञा करते हुये कहा -“जयसिंह युद्ध से भाग कर चला गया है, मैं उसे आमेर के दुर्ग से पकड़कर लाऊंगा।" आमेर के राजा जयसिंह ने अफीम के नशे में जो पत्र अभयसिंह को लिखा था, उसका भयानक परिणाम उसके सामने आया। बीकानेर के राजदूत ने उसको अफीम के नशे में देखकर उससे अनुचित लाभ उठाया और जो वाक्य जयसिंह को अभयसिंह के पत्र में न लिखने चाहिये थे, उनको उस राजदूत ने जयसिंह से लिखवा लिया। मादक पदार्थों के सेवन का जो परिणाम होना चाहिये, वह जयसिंह के सामने आया। अभयसिंह के साथ उसकी शत्रुता बढ़ी, युद्ध में बुरी तरह उसकी पराजय हुई और संग्राम से भाग जाने के कारण उसके जीवन का समस्त गौरव मिट्टी में मिल गया। इस युद्ध से यह जरूर हुआ कि बीकानेर विध्वंस और विनाश से बच गया। युद्ध के पश्चात् मेवाड़ के राणा ने मध्यस्थ होकर आमेर, बीकानेर और मारवाड़ के राजाओं के बीच शांति और मैत्री कायम करने की चेष्टा की। इसमें राणा को सफलता मिली और वे तीनों राजा आपस में मिलकर एक हो गये। राजपूत युद्ध में जाने के पहले अपने देवता के दर्शन करते थे और अपनी सेना के साथ वंश के आराध्यदेव को अपने साथ में ले जाते थे। वख्तसिंह ने इस युद्ध में भी यही किया था। युद्ध के समय वख्तसिंह की देवी की मूर्ति जयसिंह के अधिकार में पहुँच गयी थी। जयसिंह उस मूर्ति को अपने साथ जयपुर ले गया और वहाँ के देवता की मूर्ति के साथ उस देवी की मूर्ति का विवाह करके बड़ा उत्सव किया। इसके बाद उन दोनों मूर्तियों को जयसिंह ने बख्तसिंह के पास भेज गया। अभयसिंह के जीवन में यह आखिरी युद्ध था। उसके पश्चात् उसने फिर कोई युद्ध नहीं किया। सम्वत् 1806 सन् 1750 ईसवी में अभयसिंह की जोधपुर में मृत्यु हो गयी । वह अत्यंत तेजस्वी और शूरवीर था। वृद्धावस्था में अफीम का अधिक सेवन करने के कारण उसमें आलसी होने का एक दुर्गुण पैदा हो गया था। लेकिन उसके कारण उसने मारवाड़ के गौरव में कभी कोई कमी नहीं आने दी। जयपुर के कछवाहों और मारवाड़ के राठौड़ों में यद्यपि कोई विशेष अंतर नहीं है और दोनों राजपूत एक ही मूल वंश से उत्पन्न हुए हैं। परन्तु राजस्थान में कछवाहे निर्बल और कायर माने जाते थे। मारवाड़ के राठौड़ आम तौर पर कछवाहों को साहसहीन समझ कर उनसे घृणा किया करते थे। यद्यपि राठौड़ों और कछवाहों में वैवाहिक सम्बंध चलते थे। किसी समय अभयसिंह ने दिल्ली के बादशाह के सामने हँसी करते हुये जयसिंह से “आपका वंशु कुशवाहा है और यह वंश कुश से पैदा हुआ है। कुश काटने में जिस प्रकार तीक्ष्ण होता है, आपकी तलवार भी उतनी ही तेज है।" अभयसिंह की यह बात जयसिंह को अच्छी न लगी। उसने बादशाह के सामने इस बातचीत से अपना उपहास समझा। उसने उस समय कुछ न कहा। परन्तु इसके बदले में वह अभयसिंह का अपमान करने के तरह-तरह के उपाय सोचता रहा। राजस्थान में जयसिंह ने अपनी विद्वत्ता के लिए और अभयसिंह ने तलवार चलाने में अपूर्व ख्याति पायी थी। कृपाराम दिल्ली के मुगलों का कोषाध्यक्ष था। जयसिंह उसके साथ कहा था 464
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