— उसने कहा नगाड़ा बजाने का काम करते थे। अमियाँ भी जोधपुर का एक कर्मचारी था और वह अपने पिता के स्थान पर काम करता था। यह अमियाँ रामसिंह का एक प्रिय और प्रधान सलाह देने वाला बन गया था। रामसिंह और अमियाँ के स्वभावों की बहुत सी बातें मिलती जुलती थीं। रामसिंह जो चाहता था, अमियाँ उसी का समर्थन करता था। दोनों के बीच मित्रता का यही प्रधान कारण था। इसी अमियाँ ने रामसिंह को बख्तसिंह से युद्ध करने का परामर्श दिया था। मारवाड़ के प्रधान चम्पावत सामन्त कुशलसिंह ने जब सुना कि रामसिंह अपने चाचा बख्तसिंह के साथ युद्ध करने की तैयारी कर रहा है तो वह चिन्तित हो उठा और जोधपुर पहुँचकर उसने रामसिंह को समझाने की चेष्टा की। कुशलसिंह के वहाँ पहुँचते ही और अपने स्थान पर बैठते ही रामसिंह ने उसकी तरफ देखा और आवेश में आकर "आपका मुख न देखना ही मैं अच्छा समझता हूँ।" रामसिंह के मुख से इस प्रकार के कड़वे शब्द को सुनकर सामन्त कुशलसिंह ने उसकी तरफ देखा और फिर गंभीर होकर उसने कहा - "आपके इस प्रकार के व्यवहार को देखकर आपके चाचा बख्तसिंह को भी इसी प्रकार का व्यवहार प्रकट करने का अधिकार | आपने बख्तसिंह के साथ जिस प्रकार का व्यवहार आरंभ किया है उसका परिणाम आपके सामने अच्छा नहीं, यह कह कर कुशलसिंह वहाँ से उठकर चल दिया और अपनी सेना के साथ वह जोधपुर के प्रधान राजकवि के मूंधियापाड़ा नगर की तरफ रवाना हुआ। यह राजकवि समस्त मरुभूमि में बड़े सम्मान के साथ देखा जाता था और उसकी वार्षिक आमदनी श्रेष्ठ सामन्तों की आमदनी की तरह एक लाख रुपये से कम न थी। जोधपुर से चलकर कुशलसिंह उस राजकवि के यहाँ पहुँचा। वख्तसिंह ने जब सुना कि मारवाड़ के प्रधान सामन्त कुशलसिंह ने जोधपुर छोड़ कर नागौर राज्य की सीमा में प्रवेश किया है तो वह उसी समय कुशलसिंह का स्वागत करने के लिये रवाना हुआ। कुशलसिंह के पास पहुँच कर बख्तसिंह ने उसको सोते हुआ पाया। सामन्त को जगाना उचित न समझ कर वहीं पर वह भी लेट गया। सवेरा होते ही कुशलसिंह ने अपने अनुचरों को हुक्का लाने की आज्ञा दी। उसी समय अनुचरों ने संकेत द्वारा बख्तसिंह की तरफ उसका ध्यान आकर्षित किया। कुशलसिंह तुरंत आश्चर्यचकित होकर खड़ा हो गया। इसी समय बख्तसिंह की भी नींद टूट गई। दोनों में कुछ देर तक बातें होती रही। अंत में सामन्त कुशलसिंह ने विनम्र होकर राजा बख्तसिंह से कहा राजन, मेरे इस मस्तक पर अब आप का अधिकार है।" राजकवि वहाँ पर मौजूद था। बख्तसिंह ने उससे सामन्त की ओर संकेत करके कहा - "अहवा से आप की पत्नी और परिवार के लोगों को आप नागौर ले आइये । राज कवि ने इस आज्ञा को स्वीकार करते हुए कहा 'आज से मैंने भी जोधपुर से सदा के लिए अपना सम्बंध विच्छेद कर लिया है।" बख्तसिंह ने राजकवि की बात को सुनकर संतोष प्रकट करते हुए कहा – “जोधपुर और नागौर में कोई अंतर हमको और आपको नहीं समझना चाहिये। अपने पास की बाजरे की एक रोटी को हम लोग आपस में बाँटकर खायेंगे।" बख्तसिंह ने अपनी व्यावहारिक चतुरता के द्वारा सामन्त कुशल सिंह और राजकवि के अंतरतम में सदा के लिए स्थान बना « 66 लिया। रामसिंह बख्तसिंह को युद्ध की तैयारी का मौका न देकर नागौर पर आक्रमण करने के लिए रवाना हुआ। खेरली नामक स्थान पर दोनों तरफ से एक युद्ध हुआ। उसके पश्चात 468
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