पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अध्याय-42 रामसिंह व बख्तसिंह को शत्रुता अभयसिंह की मृत्यु हो जाने पर उसका लड़का रामसिंह जोधपुर के सिंहासन पर बैठा। अभयसिंह के मरने के ठीक बीस वर्ष पहले सिरोही के मानसिंह की लड़की और अभयसिंह की रानी से रामसिंह का जन्म हुआ था। सिरोही की देवड़ा शाखा चौहान वंश की एक प्रधान शाखा है। रामसिंह स्वभाव का अत्यंत क्रोधी और अदूरदर्शी था। मारवाड़ का राज्य सिंहासन प्राप्त करने के समय तक उसने अपने चरित्र का जो परिचय दिया, उससे कदाचित कोई भी प्रसन्न न था। रामसिंह के अभिषेक में मरुभूमि के प्रत्येक सामन्त और श्रेष्ठ व्यक्ति ने राजधानी जोधपुर में आकर नवीन राजा के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया था। परन्तु उस अभिषेक में नागौर के शासक बख्तसिंह ने आकर भाग नहीं लिया। इस शुभ अवसर पर उसके न आने का क्या कारण था, इसका कोई उल्लेख और स्पष्टीकरण उस समय के भट्ट ग्रंथों में नहीं मिलता। रामसिंह वख्तसिंह का भतीजा था और रामसिंह के अभिषेक में वख्तसिंह का आना अत्यंत आवश्यक था। उस अभिषेक में रामसिंह के मस्तक पर राजतिलक करना बख्तसिंह का परम कर्त्तव्य था। परन्तु न तो वह स्वयं उसमें गया और न अपने प्रतिनिधि के रूप में उसने किसी सामन्त को भेजा । उसकी तरफ से उस अवसर पर एक धात्री जोधपुर गई थी। राजस्थान में धात्री को माता के समान सम्मान मिलता है। उस धात्री के भेजने में वख्तसिंह का क्या अभिप्राय था, इसका भी कोई उल्लेख उस समय के ग्रंथों में नहीं पाया जाता । उस धात्री के साथ रामसिंह ने जो व्यवहार किया, वह किसी प्रकार सम्मानपूर्ण नहीं कहा जा सकता। इतना ही नहीं, बल्कि रामसिंह के उस व्यवहार को निन्दनीय कहा जाना किसी प्रकार अनुचित नहीं हो सकता। रामसिंह ने इतना ही नहीं किया, बल्कि राजसिंहासन पर बैठने के बाद जालौर का राज्य छोड़ देने के लिए उसने अपने चाचा वस्तसिंह के पास दूत भेजा। अभिषेक के अभी बहुत थोड़े दिन वीते थे। चाचा और भतीजे में विद्वेष की आग सुलगने लगी। रामसिंह ने दूत भेजने के बाद वख्तसिंह के पास अपना एक पत्र भी भेजा और नागौर राज्य पर आक्रमण करने की वह तैयारी करने लगा। इस अवसर पर रामसिंह ने अपने सुयोग्य सामन्तों और मंत्रियों के साथ परामर्श न किया। उसने निम्न श्रेणी के कर्मचारियों के साथ वात की और उन्हीं के परामर्श से उसने काम किया। इन निम्न श्रेणी के लोगों में अमियाँ नाम का एक कर्मचारी था। उसके पूर्वज जोधपुर के प्रधान तोरण द्वार पर 467