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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४२९

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रामसिंह की इस असहाय अवस्था में विजयसिंह ने मारवाड़ राज्य के साँभर का इलाका उसके जीवन-निर्वाह के लिये दे दिया। साँभर का कुछ भाग जयपुर राज्य के साथ था। इसलिये जयपुर के राजा ने भी वह भाग देकर रामसिंह की सहायता की । इसके बाद रामसिंह निराश अवस्था में सांभर में रहकर अपना जीवन व्यतीत करने लगा। उसके स्वभाव में अव वड़ा परिवर्तन हो गया था। पहले की सी अब उसमें उग्रता और कठोरता न रह गयी थी। वह अव बहुत विनम्र हो गया था। सन् में रामसिंह की जयपुर में मृत्यु हो गई। उसका शरीर वीरोचित और शक्तिशाली था। अपने स्वभाव की उग्रता के कारण जीवन के आरम्भ में वह अपने सामन्तों के निकट अप्रिय हो गया था। उसमें पहले भी अनेक अच्छाईयाँ थीं। परन्तु वह व्यवहार कुशल न था। अपनी इसी अयोग्यता के कारण वह सिंहासन से उतारा गया था। कुछ भी हो विजय सिंह की विशाल सेना के सामने मराठों की एक छोटी सेना लेकर रामसिंह विजयी हुआ। इस दशा में विजय सिंह की अपेक्षा रामसिंह को राजनीतिज्ञ और सुयोग्य मानना किसी प्रकार अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। निर्वासित अवस्था में रामसिंह ने जयपुर में परलोक की यात्रा की । उसके न रहने के बाद विजय सिंह ने निश्चित होकर अपना राज्य शासन चलाया। मराठों ने अजमेर पर अधिकार करके न केवल मारवाड़ राज्य से कर वसूल किया, बल्कि उसके बाद भी वे लोग लूट-मार करके धन एकत्रित करते रहे और उस सम्पत्ति से उन्होंने अपनी शक्तियाँ प्रबल बना ली। मराठों ने इतना ही अत्याचार नहीं किया, बल्कि वे अनेक दूसरे उपायों से राजपूतों को निर्बल बनाने का काम करते रहे । मराठों ने सदा दो राजपूतों को लड़ाने की चेष्टा की और किसी एक का पक्ष लेकर वे दूसरे का सर्वनाश करते रहे। इस प्रकार मराठों ने अपनी प्रबल शक्तियों के द्वारा राजपूतों को भयानक क्षति पहुँचाई। अनेक अत्याचारों से मारवाड़ और उसके आस-पास वहुत अशांति बढ़ गयी। मराठों के उपद्रव के कारण कृषक खेती का कार्य न कर सकते थे। व्यवसायी सदा उनसे डरते थे। मारवाड़ में विजय सिंह की निर्बलता बढ़ जाने के कारण राज्य के समस्त सामन्त स्वतंत्र हो रहे थे। राज्य व्यवस्था नष्ट हो गई थी और मारवाड़ में सर्वत्र अराजकता बढ़ जाने के कारण सदा लूट-मार होती रहती थी। इस लूट-मार और अत्याचार से खेती का कार्य नष्ट हो गया। व्यवसाय बन्द हो गया और लोगों को राज्य का कोई भय न रह गया। विजय सिंह की मान-मर्यादा महलों से लेकर बाहर तक सर्वत्र नष्ट हो गयी। अन्य राज्यों की अपेक्षा मारवाड़ के सामन्त अधिक स्वतंत्र और सदा शक्तिशाली रहे थे। उनकी इस स्वतंत्रता का कारण यह था कि उनके पूर्वजों के बल-पौरूष से मारवाड़ राज्य की प्रतिष्ठा हुई थी। यही कारण था कि इस राज्य के सभी सामन्त अधिक स्वाधीनता और सुखों का सदा से भोग करते चले आ रहे थे। विजय सिंह के प्रभाव के नष्ट हो जाने से वहाँ के सामन्तों में जो स्वच्छन्दता पैदा हो गयी थी, वह धीरे-धीरे बढ़ती गई और राज्य की एक घटना ने उस स्वच्छन्दता को अधिक नियन्त्रणहीन बना दिया था। पोकरण चम्पावत लोगों की जागीर थी। वहाँ का सामन्त निसन्तान होकर मर गया था। वह मरने के पहले राजा अजीत सिंह के दूसरे पुत्र देवी सिंह को गोद लेने के लिये अपनी स्त्री से कह गया था।1 गोद लेने की प्रथा के अनुसार जब इस विषय में कुछ अधिकारियों का कहना है कि देवीसिंह अजीत का बेटा नहीं था और न वह पोकरण की जागीर का दत्तक पुत्र बनाया गया था। 1. 475