पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४२८

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उसके सम्बन्ध में पता लगाने की कोशिश नहीं की। राठौड़ सेना घवरा कर इधर-उधर भागने लगी। इस समय राठौड़ सेना के साथ मेड़ता के दूसरे क्षेत्र में विजयसिंह मराठों के साथ युद्ध कर रहा था। वह इस युद्ध में एक लाख सैनिकों की सेना लेकर आया था। उसने आश्चर्य के साथ सुना कि राठौड़ सेना एक साथ युद्ध के क्षेत्र से भाग रही है। विजयसिंह घबरा उठा। जो राठौड़ सेना उसके साथ शत्रुओं से लड़ रही थी, मारवाड़ की सेना के भागने का समाचार उससे भी अप्रकट न रहा। बिना सोचे-समझे उस सेना के राठौड़ भी युद्ध क्षेत्र से भागने लगे। विजयसिंह के सामने भयंकर परिस्थिति पैदा हो गयी। किसी प्रकार शत्रु के सामने से हटकर विजयसिंह वहाँ से भाग गया और एक कृषक के यहाँ जाकर उसने प्राणों की रक्षा की। रूपनगर के राजा सामन्त सिंह के युवक वेटे की राजनीति से विजयसिंह की एक लाख सेना को पराजित होना पड़ा। इस विजय का कोई भी श्रेय मराठा सेना को न मिला। फिर भी विजय उसी की मानी गयी। राठौड़ सेना के भाग जाने पर रामसिंह विजयी होकर युद्ध के क्षेत्र में घूमने लगा। उसने मारवाड़ के दुर्गों पर अधिकार कर लिया। मराठा सेना मारवाड़ के नगरों में घूम-घूम कर लूट-मार करने लगी। मराठा सेना का प्रधान जय अप्पा इस युद्ध में भयानक रूप से मारा गया था। इसलिए राठौड़ सेना के भाग जाने के बाद मराठों ने भीषण अत्याचार आरंभ किये, उस निर्दयता को देखकर विजय सिंह घबरा उठा। उसने अजमेर मराठों को दे दिया और कर देना भी उसने स्वीकार कर लिया। मारवाड़ राज्य में अजमेर सबसे बड़ी विशेषता रखता है। इसलिये अजमेर के निकल जाने पर मारवाड़ का राज्य निर्बल पड़ गया। रूप नगर के युवक राजकुमार की राजनीति के द्वारा मराठा सेना ने राठौड़ों पर विजय प्राप्त की। इसलिये जय अप्पा ने रूप नगर के सिंहासन पर उस युवक को बिठाने का इरादा किया । उसको सुनकर उस युवक “पहले रामसिंह को जोधपुर के सिंहासन पर बैठना चाहिये। इससे रूपनगर का उद्धार बड़ी आसानी के साथ हो जायेगा।" इसके कई दिनों बाद जयअप्पा मारा गया।। उससे रामसिंह के साथ राजपूतों पर संदेह पैदा हो गया। सेनापति जयअप्पा की मृत्यु हो जाने पर मराठों का समस्त राजपूतों पर अविश्वास पैदा हुआ । उन लोगों ने रामसिंह के समस्त राजपूतों पर आक्रमण किया। विजयसिंह का दूत रावत कुबेर सिंह संधि के सम्बन्ध में मराठों के पास आया था। इस आक्रमण में वह भी मारा गया। नागौर राज्य के ताऊसर नाम के एक ग्राम में जयअप्पा के स्मारक में एक मंदिर बनवाया गया। राठौड़ों के साथ संधि हो जाने के बाद मराठों ने रामसिंह के पक्ष को छोड़ दिया। इसलिये रामसिंह के सामने फिर से कठिनाइयाँ पैदा हो गयीं। उसने जोधपुर का सिंहासन प्राप्त करने के लिए बाईस वर्ष तक लगातार युद्ध किया। मराठों के अलग हो जाने के बाद रामसिंह फिर असहाय अवस्था में पहुँच गया। इस समय उसकी सहायता करने वाला कोई न था। इसलिये उसने विजय सिंह के यहाँ जाकर आश्रय लिया। मराठा सेनापति मेड़ता के इस युद्ध में मारा गया था, इस पर दो प्रकार के मत पाये जाते हैं। विजय-विलास नामक ग्रंथ में लिखा है कि जयअप्पा युद्ध के संकट में पड़कर रोगी हो गया था ।उसकी चिकित्सा करने के लिये राठौड़ राजा ने सूरजमल नामक अपना चिकित्सक भेजा। सूरजमल ने वहाँ जाने से इंकार करते हुए कहा – “आप मुझसे जयअप्पा को विष देने के लिये कह सकते हैं। लेकिन मैं ऐसा न करूंगा।" यह सुनकर विजयसिंह ने कहा "मैं ऐसा न कहूँगा । आप वहाँ जाकर अच्छी चिकित्सा करें।" सूरजमल ने जाकर जयअप्पा की चिकित्सा की और उसने बहुत जल्दी उसे नीरोग कर दिया । ने कहा 1. 474