पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मासिक वेतन के स्थान पर भूमि दी जाती थी। लेकिन जग्गू ने जो सेना तैयार की, वह सभी पैदल थी और उनको मासिक वेतन दिये जाने की व्यवस्था की गई। इस सेना के सैनिकों ने यूरोपियन शैली से युद्ध करने की शिक्षा पाई थी। मारवाड़ की इस सेना को देखकर उदयपुर और जयपुर के राजाओं ने भी इसी प्रकार की अपने यहाँ सेनाएँ रखीं। जग्गू ने मारवाड़ में जो नई सेना रखी थी, उसमें सिन्धी, अरबी और रुहेले व कई प्रकार के राजपूत थे। उस सेना का नियंत्रण और शासन मारवाड़ के राजा के अधिकार में रहा। इन सात सौ वैतनिक सैनिकों का प्रभुत्व और प्रभाव राज्य में पूर्ण रूप से काम करने लगा। उनके वेतन के लिये राज्य के सामन्त धन-संग्रह करते थे। लेकिन वह सेना मारवाड़ के राजा की अधीनता में थी। कुछ ही दिनों के बाद इस वैतनिक सेना के द्वारा सामन्तों की उपेक्षा होने लगी। उस समय सामनतों ने अपनी निर्वलता को अनुभव किया। उस नई सेना के साथ सामन्तों का यहीं से विरोध आरम्भ हुआ। मारवाड़ की देखा-देखी मेवाड़, जयपुर और कोटा के राजाओं भी अपने यहाँ वैतनिक सेनाएँ रखी थीं। परन्तु कोटा को छोड़कर और किसी राज्य ने वैतनिक सेना का लाभ नहीं उठाया। मारवाड़ की इस नवीन सेना को शक्तिशाली बनाकर जग्गू ने राजा विजय सिंह और दीवान फतेहचन्द के साथ परामर्श किया और मारवाड़ में फैली हुई अराजकता तथा अत्याचार को दूर करने के लिए तैयारी की। राज्य के आस-पास पहाड़ी जातियों के आतंक वहुत बढ़ गये थे। उनको इधर बहुत दिनों से मारवाड़ के राजा का कोई भय न रह गया था। इसलिये उन अत्याचारी जातियों का दमन करना भी अत्यन्त आवश्यक था। इस प्रकार के सभी कार्यों के लिये धन की आवश्यकता थी। मारवाड़ राज्य का खजाना इन दिनों में खाली पड़ा हुआ था। विजय सिंह की निर्वलता में राज्य का रुपया कहीं पर भी वसूल न होता था। विना धन के राज्य की कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती थी। इसलिये जग्गू धन की चिन्ता में रहने लगा। उसकी माता विजय सिंह की धात्री थी। इसलिये विजयसिंह के जन्म के साथ-साथ राज्य की तरफ से उसकी माता को पाँच हजार रुपये वार्षिक मिलने लगे थे। जग्गू को मालूम था कि उसकी माता के पास एक अच्छी सम्पत्ति है। इसलिये जव उसको और कहीं से धन की सहायता न मिल सकी तो उसने अपनी माता से प्रार्थना करने का इरादा किया। जग्गू इस समय किसी प्रकार धन एकत्रित करके मारवाड़ राज्य का सुधार करना चाहता था। उसने माता से इसके लिये प्रार्थना की और तुरन्त पचास हजार रुपये देने के लिये उसको विवश किया। उसने माता से यह भी कह दिया कि यदि तुम इतने रुपये न दे सकोगी तो मैं आत्म-हत्या करके मर जाऊँगा। जग्गू की माता अपने बेटे की इस बात को सुनकर घवरा उठी और उसने अपने पास से पचास हजार रुपये लाकर वेटे को दे दिये। इस धन को पाकर जग्गू ने पहाड़ी जातियों को दमन करने की तैयारी की। इस समय मारवाड़ी सेना को घोड़ों की बहुत आवश्यकता थी और उन दिनों में घोड़ों का वडा अभाव हो रहा था। इसलिये जव घोड़े न मिल सके तो जग्गू अपनी नई सेना को नागौर तक दूसरी सवारियों पर विठाकर ले गया। उस समय सामन्तों के पूछने पर जग्गू ने बताया कि पहाड़ी जातियों का दमन करने के लिये यह सेना जा रही है। नागौर के दुर्ग में कई सौ तोपें रखी हुई थीं, उनको लेकर अपनी सेना के साथ जग्गू पहाड़ों की तरफ रवाना हुआ और वहाँ पहुँचकर उसने पहाड़ की लुटेरी जातियों पर आक्रमण 477