किया। वे जातियाँ बहुत आसानी के साथ परास्त हो गयीं। उन पर विजयी होकर जग्गू ने अपनी सेना के साथ थल नगरी पर आक्रमण किया। उस समय लोगों की समझ में आया कि मारवाड़ की इस वेतन भोगी सेना को रखने का क्या उद्देश्य है । उस दुर्ग पर जग्गू के अधिकार कर लेने पर मारवाड़ के सभी सामन्त भयभीत हो उठे और वे अपने-अपने सम्मान की रक्षा करने के लिये जोधपुर की राजधानी से बीस मील पूर्व की तरफ बीसलपुर में एकत्रित हुए। राज्य के सामन्तों को एकत्रित देखकर विजयसिंह चिन्तित हो उठा । जग्गू जिस प्रकार सामन्तों को अधिकार में लाने की चेष्टा कर रहा था, उसका परिणाम विजय सिंह को प्रतिकूल दिखाई देने लगा। वह किसी प्रकार सामन्तों को शान्त करने का उपाय सोचने लगा। खीची वंश का राजपूत गोर्धन अपने बल और पराक्रम के द्वारा राजा बख्तसिंह का परम् स्नेही हो गया था। मरने के समय बख्तसिंह ने गोर्धन से विजय सिंह की सहायता करने के लिए कहा था। विजय सिंह को यह बात पहले से मालूम थी । इसलिये इस संकट के समय गोर्धन को बुलाकर विजय सिंह ने पूछा कि इस समय में हमें क्या करना मुनासिब
गोर्धन मारवाड़ राज्य की वर्तमान परिस्थितियों को समझता था और राज्य के सामन्तों की अनियन्त्रित दशा से भी वह अपरिचित न था। वह दूरदर्शी और बुद्धिमान था। उसने विजय सिंह को अपनी सम्मति देते हुए कहा :- "किसी भी दशा में राज्य के सामन्तों को शत्रु बनाना अच्छा नहीं हो सकता। इसलिये मर्यादा के अनुसार उनको सम्मान देना और उनके प्रति सद्भाव प्रकट करना इस समय अधिक हितकर साबित हो सकता है। यदि ऐसा न किया गया और यदि सामन्तों ने मिलकर और संगठित हो कर विरोध किया तो अनिष्ट होने की पूरी संभावना है। इसलिये अपनी सेना को साथ में न लेकर आप स्वयं उस स्थान को जावें, जहाँ पर सभी सामन्त एकत्रित होकर परामर्श कर रहे हैं और अपने सद्भाव तथा शिष्टाचार से सामन्तों को संतोष देने की चेष्टा करें। इसका परिणाम आपके लिये हितकर होगा।" गोर्धन की बातों को सुनकर विजयसिंह को संतोष मिला। वह सामन्तों के पास जाने की तैयारी करने लगा। उस समय गोर्धन स्वयं साथ में चलने को लिये तैयार हुआ और वह राजा विजयसिंह को लेकर बीसलपुर में एकत्रित सामन्तों से भेंट के लिये पहुँच गया और विजय सिंह को एक स्थान पर छोड़कर उसने सामन्तों से जाकर कहा मिलने के लिये राजा विजय सिंह की सवारी बीसलपुर आ गयी है। इसलिये आप लोग चलकर उनका स्वागत करिये।" गोर्धन की इस बात पर किसी सामन्त ने ध्यान न दिया और न वे विजयसिंह से मिलने के लिये तैयार हुए। यह देखकर गोर्धन वहाँ से लौटा और वह मारवाड़ के प्रधान सामन्त राजा अह्वा के शिविर में विजयसिंह को लेकर गया। यहाँ पर दूसरे सामन्त भी आकर एकत्रित हो गये। उसी समय विजय सिंह ने सभी सामन्तों की ओर देखकर प्रश्न किया-“आप सब लोगों ने हमको क्यों छोड़ दिया है ?" चम्पावत सामन्त ने विजयसिंह के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, “राजन, हम लोग विभिन्न राजपूत शाखाओं में पैदा हुए हैं। परन्तु हम लोगों का मूल वंश एक ही है।" चम्पावत सामन्त के बाद अन्य सामन्तों की बातचीत आरम्भ हो गयी और जो विवाद उत्पन्न हुआ। उसमें विजयसिंह को अपना उद्देश्य सफल होता हुआ दिखायी न पड़ा। इसलिये उसने सोच-विचार कर बड़ी गंभीरता के साथ कहा "राज्य में किस प्रकार की 'आप लोगों से 478