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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४३८

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जोधपुर में विजय सिंह को मिला। उसी समय उसने जयपुर के राजा के पास अपने दूत के द्वारा संदेश भेजा कि माधव जी सींधिया की एक बहुत बड़ी सेना मारवाड़ पर आक्रमण करने के लिए आ रही है। इसलिए आप तुरन्त जयपुर की एक शक्तिशाली सेना मराठों को पराजित करने के लिए भेज दीजिए। विजय सिंह के दूत के द्वारा यह संदेश पाकर जयपुर के राजा ने विचार किया कि हमारी माँग पर मराठों के साथ युद्ध करने के लिए मारवाड़ की राठौर सेना आयी थी और अब इस अवसर पर राजा विजय सिंह की माँग पर मराठों से युद्ध करने के लिए जयपुर की सेना जानी चाहिए ।इसलिए उसने जयपुर की एक सेना तैयार करके विजय सिंह के पास भेज दी। जयपुर की यह सेना मारवाड़ पहुँच गयी। मराठा सेना के आ जाने पर जिस समय राठौर युद्ध के लिए तैयार हो रहे थे, जयपुर की सेना ने राठौर सेना के साथ झगड़ा कर लिया। इस दशा में राठौड़ों को मराठों को प्रवल सेना के साथ केवल अपने बल पर युद्ध करना पड़ा। पाटन के युद्ध क्षेत्र में मराठों के साथ राठौड़ों ने भीषण युद्ध किया। परन्तु मराठा सेना के अत्यधिक और प्रबल होने के कारण राठौड़ सेना पराजित हो गयी। राजा विजयसिंह ने अपनी राजधानी में जयपुर की सेना का विश्वासघात सुना। उससे उसको अत्यन्त क्रोध और दुख हुआ। मराठों से साथ पराजित होकर राठौरों ने फिर से युद्ध के लिये तैयारी की। सन् 1791 ईसवी में राठौरों ने मेड़ता के मैदानों में मराठों के साथ फिर युद्ध किया। इस दूसरे युद्ध में प्राणों का मोह छोड़कर राठौर राजपूतों ने मराठों के साथ संग्राम किया परन्तु शत्रु-सेना के सामने संख्या में बहुत कम होने के कारण इस दूसरे युद्ध में भी राठौरों की पराजय हुई। माधव जी सिंधिया ने विजयी होकर राजा विजयसिंह से साठ लाख रुपये की माँग की। विजय सिंह लगातार दो युद्धों में मराठों से पराजित हो चुका था। अब उसके सामने कोई आशा न रह गयी थी, इसलिये अपनी विवश अवस्था में उसने माधव जी सींधिया की माँग के अनुसार साठ लाख रुपये देना स्वीकार कर लिया। विजय सिंह के सामने इस स्वीकृति के सिवा और कोई रास्ता न था। जयपुर के राजा प्रताप सिंह की सहायता करके उसने मराठों की संधि तोड़ी था और माधवजी सिंधिया के साथ उसने नई शत्रुता पैदा की थी। चार वर्षों के उपरान्त जब मराठों ने मारवाड़ पर आक्रमण किया, उस समय जयपुर की सेना ने विश्वासघात किया और उसके फलस्वरूप राठौड़ों को पराजित होकर उनके राजा विजयसिंह को दंड स्वरूप साठ लाख रुपये देना स्वीकार करना पड़ा। इन दिनों में मारवाड़ की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। जोधपुर के खजाने में इतना रुपया न था, जिससे दंड की यह भारी रकम अदा की जा सके। इस दशा में उस रुपये की अदायगी कैसे हो, विजय सिंह की समझ में यह किसी प्रकार न आया। जोधपुर के खजाने में जो कुछ मौजूद था, उसको निकाल कर देने पर भी साठ लाख रुपये अदा न हो सके। इस दशा में माधव जी सिंधिया के आदेश से मराठा सेना ने मारवाड़ के नगरों में धन की लूट की और उससे जो सम्पत्ति एकत्रित हुई, उससे भी दंड के बाकी रुपये पूरे न हो सके। उस दशा में मारवाड़ के प्रधान सामन्तों और राज्य के श्रेष्ठ आदमियों को कैद करके उनके महलों और प्रासादों की लूट की गई। इससे जो धन एकत्रित हुआ, उससे भी दंड के बाकी रुपयों की पूर्ति न हो सकी। 484