पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४३९

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। विजय सिंह के पास दंड के वाकी रुपयों को अदा करने के लिये अब कोई उपाय न था। राज्य के प्रधान सामन्त वन्दी बनाकर मराठा शिविर में रखे गये थे। बाकी रुपयों को वसूल करने के लिये माधव जी सिंधिया ने मारवाड़ के नगरों और गाँवों में फिर से लूट करने के लिये अपनी सेना को आदेश दिया। उस समय मराठा सैनिकों के अत्याचारों से राज्य में चारों तरफ हाहाकार मच गया। स्थान-स्थान से रोने और चिल्लाने की आवाजें आने लगी। छोटे-छोटे बच्चे जान से मारे गये। स्त्रियों के सम्मान नष्ट किये गये। मराठों ने अत्याचार में कोई बात वाकी न रखी। तुंगा के मैदानों में मराठों को पराजित करके राठौढ़ सेना ने अजमेर को अपने अधिकार में कर लिया था और वहाँ का शासन दुभराज को सौंप दिया था। पाटन और मेड़ता के युद्ध क्षेत्रों में राठौड़ सेना को पराजित करके मराठों ने फिर अजमेर पर अधिकार कर लिया। वहाँ के शासक दुभराज ने जव सुना कि मराठों की विशाल सेना भयानक अत्याचारों के साथ अजमेर में प्रवेश कर रही है तो उसने अफीम खाकर आत्महत्या कर ली। मराठों ने वहाँ पहुँचकर विना किसी प्रकार के युद्ध के अधिकार कर लिया और अजमेर में मराठों का झंडा फहराने लगा। विजय सिंह मराठों के साथ होने वाली पराजय और उसके फलस्वरूप मारवाड़ में उनके अत्याचारों को थोड़े दिनों में बिलकुल भूल गया। उसके जीवन में आरंभ से ही राजपूती स्वाभिमान का अभाव था। राठौड़ों के प्राचीन गौरव को भूलकर उसने विलासिता का आश्रय लिया और ओसवाल जाति की एक सुन्दरी युवती पर आसक्त होकर उसे अपनी उपपत्नी वनाया। उसके शासनकाल में मारवाड़ राज्य का भयानक रूप से पतन हुआ। अब उसकी इस विलासिता के कारण राज्य का सर्वनाश आरंभ हुआ। परन्तु विजय सिंह को इसकी परवाह न थी। ओसवाल युवती ने विजयसिंह को अंधा बना दिया। उसको उचित और अनुचित कर्मों का ज्ञान न रहा। उस युवती के प्रेम को पाकर विजय सिंह ने सब कुछ भुला दिया और अपनी प्रधान रानी के सम्मान को ठुकरा कर उसने उस युवती को प्रधानता दी। इन दिनों विजयसिंह के मनोभाव बहुत पतित हो गये थे। उसने जीवन की सम्पूर्ण मर्यादा को भुलाकर केवल उस युवती को महत्त्व दिया था। वह युवती विजयसिंह की इस अवस्था से पूर्णरूप से परिचित थी और वह कभी-कभी उसके इस अंधे प्रेम को ठुकरा दिया करती थी। उस समय के भट्ट ग्रंथों में लिखा गया है कि उस युवती ने अनेक मौकों पर विजयसिंह को अपनी जूतियों से मारा था। परन्तु इस पर भी विजयसिंह के स्वाभिमान को आघात न पहुँचा। किसी भी पुरुष के पतन की यह चरम सीमा मानी जा सकती है। विजय सिंह के इस पतन से मारवाड़ राज्य में अशान्ति और अराजकता बढ़ने लगी। इस पर भी विजयसिंह की आँखें नहीं खुली। मारवाड़ में इन दिनों विजयसिंह का नहीं, उसकी उप-पत्नी का शासन चल रहा था। उस युवती ने ऐसी जाति में जन्म लिया था, जिसमें किसी राजपूत को राजस्थान की व्यवस्था के अनुसार, विवाह करने का कोई अधिकार न था। इसीलिये वह उपपत्नी के रूप में मानी गयी और उसे विजय सिंह की रानी होने का अधिकार न मिल सका। इतना सब होने पर भी वह युवती अपने आपको गौरवपूर्ण समझती थी और विजयसिंह की बड़ी रानी से भी वह अपने को श्रेष्ठ समझती थी। उस युवती का विश्वास था कि मुझ से जो लड़का पैदा होगा, वह विवाहित रानियों के लड़कों के होने पर भी इस राज्य का उत्तराधिकारी होगा। लेकिन जब उसके कोई लड़का पैदा न हुआ तो अपने अधिकारों को सुरक्षित बनाने के लिए उसने गुमानसिंह के पुत्र 485