अन्त हो गया। उस समय सभी सामन्त वहाँ पर मौजूद थे। धौकल सिंह के पैदा होने के पहले इस बात का कोई प्रमाण न रखा गया था कि भीमसिंह की विधवा रानी गर्भवती है, इसलिये रानी के उत्तर को सुनकर सभी सामन्तों ने इस बात को मान लिया कि धौकलसिंह भीमसिंह की रानी से पैदा नहीं हुआ। सामन्त सवाई सिंह ने धौकल सिंह के जन्म के बाद मानसिंह के विरुद्ध वड़ी-बड़ी योजनायें बना रखी थी। वे सव यद्यपि निराधार हो गयी, परन्तु सवाई सिंह निराश न हुआ। उसके अंत: करण में अनेक प्रकार की कल्पनाएँ उठने लगीं। उसका सबसे पहला कर्तव्य था, सावधानी के साथ धौकल सिंह का पालन-पोषण करना। पोकरण का दुर्ग इसके लिये बहुत सुरक्षित और सुदृढ़ न था। इसलिये धौकल सिंह को शेखावटी में ले जाकर छत्रसिंह भाटी अभय सिंह को सौंप दिया। इसके बाद वह अपनी योजना को सजीव वनाने में फिर लग गया। वह साहसी और शूरवीर होने के साथ-साथ षड़यन्त्र रचने का कार्य भी खूब जानता था। सवाई सिंह ने स्वयं अपने व्यवहारों से अपनी शत्रुता का परिचय मानसिंह को दिया था। परन्तु अव उसने राजनीति से काम लिया। उसने शत्रुता का भाव बदलकर मित्रता का भाव आरंभ किया। इससे राजा मानसिंह उसका विश्वास करने लगा। उसने समझा कि इतने दिनों तक विरोध करने के वाद सवाई मानसिंह ने मित्र वनकर रहने में अपना कल्याण अनुभव किया है। इसका फल यही हुआ कि मानसिंह ने भी सवाई सिंह के प्रति अच्छे व्यवहार आरंभ किये। सवाई सिंह ने जिस होने वाली दुर्घटना को सोच करके मानसिंह के साथ इस प्रकार के व्यवहार आरंभ किये थे, वह घटना धीरे-धीरे सामने आने लगी। मारवाड़ के स्वर्गीय राजा भीमसिंह ने मेवाड़ के राणा की लड़की कृष्णाकुमारी के साथ विवाह करने का प्रस्ताव किया था। राजकुमारी कृष्णा अत्यन्त सुन्दरी थी। विवाह का कोई निर्णय भी न हो पाया था कि इसी बीच में भीमसिंह की मृत्यु हो गयी। सवाई सिंह ने छिपे तौर पर जयपुर के राजा जगतसिंह को सन्देश भेजा कि मेवाड़ के राणा की लड़की अत्यन्त सुयोग्य और सुन्दरी है। इसलिए उसके साथ विवाह करने का प्रस्ताव आप राणा के पास भेजिए। इस संदेश को पाकर जगतसिंह को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने राजकुमारी कृष्णा के साथ विवाह करने का निश्चय कर लिया और वहुमूल्य उपहारों के साथ उसने चार हजार सैनिकों का एक दल राणा के पास उदयपुर भेज दिया। इसी समय सवाईसिंह ने राजकुमारी कृष्णा के साथ विवाह करने के लिये मानसिंह को प्रोत्साहित किया। उसने कृष्णा कुमारी की अनेक प्रकार से प्रशंसा की और मानसिंह को समझाया कि यह विवाह स्वर्गीय भीमसिंह के साथ होने जा रहा था। अब उसके अधिकारी आप हैं। जगतसिंह के साथ मेवाड़ की राजकुमारी का विवाह होने से मारवाड़ के गौरव को आघात पहुँचता है। सवाईसिंह के इस प्रकार समझाने पर मानसिंह ने अपने सामन्तों को बुलाने के लिये आदेश दिया और उसके बाद तीन हजार राठौरों की अश्वारोही सेना लेकर वह रवाना हुआ। जयपुर से मूल्यवान उपहारों को लेकर जो सेना मेवाड़ के लिए रवाना हुई थी, हीरासिंह उसका नायक था। राठौर सेना ने मेवाड़ की सीमा के भीतर जाकर जयपुर के राजा का समस्त उपहार लूट लिया। जयपुर की सेना पराजित होकर वहाँ से भाग गयी। जगतसिंह ने मानसिंह के इस व्यवहार पर तुरन्त युद्ध की घोषणा की। दोनों तरफ से लड़ाई की तैयारी होने लगी। 493
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४४७
दिखावट